एक साथ चुनाव कराने से प्रभावित नहीं होता लोकतांत्रिक ढांचा, चुनाव आयोग ने 40 वर्ष पहले दिया था सुझाव
विधि आयोग 2018 की अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन कर चुका है।आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आज भी देश में सदनों का समयपूर्व भंग होना और मध्यावधि चुनाव बहुत हो रहा है इसलिए एक साथ चुनाव कराने से भारत का लोकतांत्रिक ढांचा किसी तरह प्रभावित नहीं होता।आजादी के बाद शुरुआत के चार चुनाव अधिकांशत साथ-साथ हुए थे।
By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Mon, 04 Sep 2023 11:55 PM (IST)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। एक बार फिर एक देश-एक चुनाव (One Nation One Election) की चर्चा गर्म है। विपक्ष सरकार की पहल को शक की नजर से देख रहा है और मंशा पर सवाल उठा रहा है। लेकिन विधि आयोग 2018 की अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन कर चुका है।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आज भी देश में सदनों का समयपूर्व भंग होना और मध्यावधि चुनाव बहुत हो रहा है इसलिए एक साथ चुनाव कराने से भारत का लोकतांत्रिक ढांचा किसी तरह प्रभावित नहीं होता।
आजादी के बाद चार चुनाव हुए थे एक साथ
केंद्र सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है। इसके बाद यह बहस चल निकली है कि एक साथ चुनाव हो सकते हैं या नहीं। इससे देश के संघीय ढांचे को नुकसान तो नहीं पहुंचेगा। लेकिन आजादी के बाद शुरुआत के चार चुनाव 1951-52 से 1967 तक अधिकांशत: साथ-साथ हुए थे, लेकिन इसके बाद यह चक्र टूट गया।40 साल पहले चुनाव आयोग ने की थी सिफारिश
दरअसल, यह कोई पहला मौका नहीं है, जब एक देश-एक चुनाव का मुद्दा उठा है। 40 वर्ष पहले 1983 में भी चुनाव आयोग ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने की सिफारिश की थी। इसके कारण बताते हुए आयोग ने कहा था कि एक साथ चुनाव से खर्च घटेगा और सहूलियत भी होंगी।यह भी पढ़ें- One Nation One Election: 'एक देश, एक चुनाव' की पहल के खिलाफ I.N.D.I.A को एकजुट करने में जुटी कांग्रेस
विधि आयोग ने किया था EC की सिफारिश का समर्थन
चुनाव आयोग की 1983 में की गई इस सिफारिश को विधि आयोग ने 30 अगस्त, 2018 को जारी अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में शामिल किया और इसका समर्थन भी किया था। हालांकि, उस रिपोर्ट में विधि आयोग ने संविधान और कानून में कई संशोधन भी सुझाए थे ताकि इसे सुचारू रूप से लागू किया जा सके।