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Save The Tiger: देश में लगभग हर तीसरे दिन हुई एक बाघ की मौत, तीन वर्ष में 329 बाघों की गई जान

Save The Tiger बीते तीन साल यानी 2019 से लेकर 2021 के बीच देश में 329 बाघों की मौत हुई। इनमें से 68 तो स्वाभाविक मौत मरे लेकिन पांच बाघों की मौत अस्वाभाविक पाई गई। बढ़ते शहरीकरण और सिकुड़ते जंगलों के कारण राष्ट्रीय पशु बेमौत मारे जा रहे हैं।

By Ashisha Singh RajputEdited By: Updated: Tue, 26 Jul 2022 07:05 PM (IST)
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2019 से लेकर 2021 के बीच देश में 329 बाघों की मौत हुई-
नई दिल्ली, एजेंसी। जंगलों में अपनी दहाड़ से दहशत पैदा करने वाले बाघ आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। बढ़ते शहरीकरण और सिकुड़ते जंगलों के कारण राष्ट्रीय पशु बेमौत मारे जा रहे हैं। वैसे तो भारत में बाघों के संरक्षण और प्रजनन के लिए कई पहल की गई हैं और इसके फायदे भी नजर आ रहे हैं, फिर भी बीते तीन साल में लगभग हर तीसरे दिन एक बाघ की मौत हुई है जो चिंता का कारण है और उनके संरक्षण के लिए और गंभीर प्रयास करने का संकेत देती है।

बाघों की विलुप्त होती प्रजाति-

बाघों की विलुप्त होती प्रजातियों की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। यह परंपरा 2010 में सेंट पीट्सबर्ग में हुए टाइगर शिखर सम्मेलन से शुरू हुई थी। इसके तीन दिन पहले मंगलवार को लोकसभा में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अश्विनी चौबे ने जो आंकड़े पेश किए, वे चिंतित करने वाले हैं। इन आंकड़ों के अनुसार बीते तीन साल यानी 2019 से लेकर 2021 के बीच देश में 329 बाघों की मौत हुई।

इनमें से 68 तो स्वाभाविक मौत मरे, लेकिन पांच बाघों की मौत अस्वाभाविक पाई गई। 29 बाघों को शिकारियों ने निशाना बनाया जबकि 30 बाघ लोगों पर हमले में मारे गए। 197 बाघों की मौत के सही कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है और उसकी जांच चल रही है। इस दौरान बाघों के हमले में 125 लोगों की भी जान चली गई। इनमें सबसे ज्यादा 61 लोग महाराष्ट्र में 25 व्यक्ति उत्तर प्रदेश में बाघों के शिकार बने।

इस दौरान 307 हाथियों की भी मौत हुई, जिनमें 202 की मौत करंट लगने से हुई। ट्रेन की चपेट में आने से 45 हाथी मारे गए। शिकार के मामले कम हुए चिंतित करने वाले आंकड़ों के बीच, कुछ राहत की बात यह है कि पहले के मुकाबले बाघों के शिकार में कमी आई है। 2019 में शिकारियों ने 17 बाघों को निशाना बनाया था, 2021 में यह संख्या घटकर चार पर आ गई।

वैसे एक बड़ी राहत की बात यह भी है कि पिछले लगभग एक दशक में भारत में बाघों की आबादी दोगुनी हुई है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब तीन हजार बाघ हैं। यह संख्या विश्व में बाघों की आबादी का 75 प्रतिशत है। देश में 53 टाइगर रिजर्व ऐसा नहीं है कि देश में बाघों को बचाने के लिए पहल नहीं की गई है। 1972 में भारतीय वन्य जीव बोर्ड द्वारा शेर के स्थान पर बाघ को राष्ट्रीय पशु के रूप में अपनाया गया था। उसके अगले ही साल बाघ बचाओ परियोजना शुरू हुई थी। इसके बाद धीरे-धीरे बाघों के लिए आरक्षित क्षेत्रों यानी टाइगर रिजर्व की संख्या बढ़कर 53 हो गई। इनमें उत्तराखंड के दो टाइगर रिजर्व हैं-कार्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व शामिल हैं जिनमें सबसे ज्यादा बाघ रहते हैं।