जानें- Orbiter ने किस तकनीक से खोजी Lander Vikram की लोकेशन, कैसे करती है काम
Lander Vikram की लोकेशन पता चल जाने के बाद इसरो को उम्मीद है कि जल्द ही इससे संपर्क साध लिया जाएगा। लैंडर का पता थर्मल इमेज तकनीक से चला है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 09 Sep 2019 09:51 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। इसरो की तरफ से चंद्रयान 2 को लेकर बड़ी खबर आई है। इसरो के चेयरमेन के. सिवन ने कहा है कि लैंडर विक्रम (Lander Vikram) की लोकेशन का पता लगा लिया गया है। हालांकि उन्होंने ये भी माना है कि फिलहाल इससे संपर्क नहीं हो पाया है, लेकिन वैज्ञानिक इसके लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। आपको बता दें कि 6-7 सितंबर की रात 1:55 बजे लैंडर विक्रम को चांद की सतह पर उतरना था। लेकिन, लैंडिंग से कुछ मिनट पहले ही जब वह चांद की सतह से दो किमी. की दूरी पर था तभी कुछ तकनीकी समस्या के चलते विक्रम का संपर्क मिशन कंट्रोल से टूट गया। इसकेबाद लैंडर विक्रम को लेकर अनिश्चितता का दौर लगातार बना हुआ था। भारतीयों के ऊपर विक्रम की लैंडिंग का जुनून इस कदर हावी था कि लाखों लोग मोबाइल और कंप्यूटर के जरिए इस पलके साक्षी बन रहे थे।
ऐसे पता चली विक्रम की लोकेशन
बहरहाल, अब जबकि ऑर्बिटर के जरिए इसकी लोकेशन का पता चल गया है तो यह जाननाऔर बताना जरूरी हो गया है कि आखिर वो कौन सी तकनीक है जिसके जरिए इसका पता लगाया गया है। इसरो की तरफ से जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक ऑर्बिटर ने लैंडर विक्रम की थर्मल इमेज क्लिक (Thermal Images Click by Orbiter) की है। इस खबर से साथ एक बात और पुख्ता हो गई है कि विक्रम चांद की सतह पर लैंड करने के बाद ही किसी हादसे का शिकार हुआ है।
बहरहाल, अब जबकि ऑर्बिटर के जरिए इसकी लोकेशन का पता चल गया है तो यह जाननाऔर बताना जरूरी हो गया है कि आखिर वो कौन सी तकनीक है जिसके जरिए इसका पता लगाया गया है। इसरो की तरफ से जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक ऑर्बिटर ने लैंडर विक्रम की थर्मल इमेज क्लिक (Thermal Images Click by Orbiter) की है। इस खबर से साथ एक बात और पुख्ता हो गई है कि विक्रम चांद की सतह पर लैंड करने के बाद ही किसी हादसे का शिकार हुआ है।
काम आए थर्मल इमेजेज कैमरे
आपको बता दें कि विक्रम और ऑर्बिटर दोनों में ही हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगे हुए हैं। ऑर्बिटर एक साल तक चांद के चक्कर लगाता रहेगा। इस दौरान वह थर्मल इमेजेज कैमरे की मदद से चांद की थर्मल इमेज (Thermal Images of Moon) भी लेगा और इसको धरती पर इसरो के मिशन कंट्रोल रूम को भेजेगा। दरअसल, इस तरह के कैमरे अमुक चीज से उत्पन्न गर्मी का पता लगाते हुए उसकी थर्मल इमेज (Thermal Images) तैयार करते हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि हर चीज का अपना एक तापमान होता है। इसका ही उपयोग इस थर्मल इमेज के लिए होता है। कैमरे से निकली किरणें इस जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल मेंबदल देती हैं। आपको यहां पर बता दें कि इंफ्रारेड कैमरे और थर्मल इमेजेज कैमरे में एक बुनियादी फर्क ये होता है कि इंफ्रारेड कैमरे रोशनी के जरिए किसी चीज का पता लगाते हैं जबकि थर्मल इमेजेज कैमरे इससे भी आगे जाकर किसी चीज को तलाश कर सकते हैं। प्रोसेस कर सामने आती है इंफ्रारेड इमेज
कैमरे से मिली जानकारी को एक वीडियो मॉनिटर पर थर्मल इमेज बनाने और तापमान गणना करने के लिए प्रोसेस किया जाता है। इनसे ही एक तस्वीर उभरकर सामने आती है जो इंफ्रारेड इमेज कहलाती है। सन 1800 में पहली बार सर विलियम हेर्सल ने इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रम की खोज की थी। हेर्सल एक खगोलविद थे और उन्होंने कई दूरबीनों का निर्माण किया था। उन्होंने ही स्पेक्ट्रम से निकलने वाली अलग-अलग रंगों की रोशनियों के तापमान को मापा था।
आपको बता दें कि विक्रम और ऑर्बिटर दोनों में ही हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगे हुए हैं। ऑर्बिटर एक साल तक चांद के चक्कर लगाता रहेगा। इस दौरान वह थर्मल इमेजेज कैमरे की मदद से चांद की थर्मल इमेज (Thermal Images of Moon) भी लेगा और इसको धरती पर इसरो के मिशन कंट्रोल रूम को भेजेगा। दरअसल, इस तरह के कैमरे अमुक चीज से उत्पन्न गर्मी का पता लगाते हुए उसकी थर्मल इमेज (Thermal Images) तैयार करते हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि हर चीज का अपना एक तापमान होता है। इसका ही उपयोग इस थर्मल इमेज के लिए होता है। कैमरे से निकली किरणें इस जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल मेंबदल देती हैं। आपको यहां पर बता दें कि इंफ्रारेड कैमरे और थर्मल इमेजेज कैमरे में एक बुनियादी फर्क ये होता है कि इंफ्रारेड कैमरे रोशनी के जरिए किसी चीज का पता लगाते हैं जबकि थर्मल इमेजेज कैमरे इससे भी आगे जाकर किसी चीज को तलाश कर सकते हैं। प्रोसेस कर सामने आती है इंफ्रारेड इमेज
कैमरे से मिली जानकारी को एक वीडियो मॉनिटर पर थर्मल इमेज बनाने और तापमान गणना करने के लिए प्रोसेस किया जाता है। इनसे ही एक तस्वीर उभरकर सामने आती है जो इंफ्रारेड इमेज कहलाती है। सन 1800 में पहली बार सर विलियम हेर्सल ने इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रम की खोज की थी। हेर्सल एक खगोलविद थे और उन्होंने कई दूरबीनों का निर्माण किया था। उन्होंने ही स्पेक्ट्रम से निकलने वाली अलग-अलग रंगों की रोशनियों के तापमान को मापा था।