समाज में अपराध: कानून व्यवस्था ढ़ीली, अंगुली टेढ़ी करनी पड़ेगी
सबसे ज्यादा जरूरी है कि कानून व्यवस्था को कड़ा किया जाए। जो लोग सीधे तरीके से नहीं मानते उन्हें सुधारने के लिए टेढ़ा तरीका अपनाना ही पड़ता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। महिला अपराधों में वृद्धि की बड़ी वजह यह है कि 2012 में निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनकी मदद करने के लिए कई समितियां बनाई गईं। इन समितियों ने महिलाओं को उम्मीदें तो दिखाईं लेकिन, कोई मदद नहीं कर पाईं। देश में पुलिस कर्मियों की कमी इन अपराधों के बढ़ने का प्रमुख कारण है। पूरे देश में पुलिस विभाग अंडरस्टाफ है। इसमें भी अधिकतर पुलिस कर्मियों को वीआइपी सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया जाता है। वीआइपी ही नहीं, बल्कि उनके पूरे परिवार के लिए कांस्टेबल लगा दिए जाते हैं। जो बच जाते हैं, वे सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने में नाकाफी होते हैं। इसमें भी महिला कांस्टेबल की संख्या बेहद कम है।
दिल्ली में पुलिस कर्मियों में सिर्फ 9 फीसद महिला कर्मी हैं, जबकि देश में यह आंकड़ा मात्र 7 फीसद है। विभाग कहता है कि 33 फीसद भर्तियां होनी हैं, लेकिन वे होती नहीं हैं। समाज में मूल्यों में गिरावट तो कबसे हो चुकी है। अब महिलाएं अपने ही घरों में सुरक्षित नहीं हैं। आज का माहौल देखकर लगता है कि आगे हालात और बदतर होंगे। इस गिरावट को रोकने के लिए समाज को रौशनी में लाना तो जरूरी है ही, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कानून व्यवस्था को कड़ा करना। जो लोग सीधे तरीके से नहीं मानते उन्हें सुधारने के लिए टेढ़ा तरीका अपनाना ही पड़ता है।
पुलिस कर्मियों की कमी और लापरवाही के चलते पुलिस की नाक के नीचे गुनाहों के अड्डे बन रहे हैं। इन सब खामियों की डोर जुड़ती है राजनीति से। महिला सुरक्षा का मुद्दा सिर्फ चुनावी वादों तक सीमित रह गया है। गृह मंत्रालय ने तीन हजार करोड़ का जो निर्भया फंड बनाया उसका अब तक सही इस्तेमाल नहीं हो पाया है।
संसद में महिला सुरक्षा का मुद्दा नहीं उठता क्योंकि महिलाओं की राजनीतिक आवाज बुलंद नहीं है। जो गिनी चुनी महिलाएं संसद में मौजूद हैं, उनका करियर खुद पुरुषों के हाथ में है। पुरुष नेता तो वैसे ही इस मुद्दे को अनदेखा करते हैं। जब तक महिलाओं की राजनीतिक आवाज बुलंद नहीं होगी तब तक महिला सुरक्षा के प्रति कड़ा कानून व्यवस्था लागू नहीं हो पाएगी और न तो अपराधियों के मन में डर जागेगा।
सबसे ज्यादा जरूरी है कि कानून व्यवस्था को कड़ा किया जाए। जो लोग सीधे तरीके से नहीं मानते उन्हें सुधारने के लिए टेढ़ा तरीका अपनाना ही पड़ता है।
रंजना कुमारी
निदेशक, सेंटर फॉर सोशल रिसर्च
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