पृथ्वी की रक्षा कवच का काम करती है ओजोन परत, क्षरण के गंभीर परिणाम आएंगे सामने
ओजोन परत संरक्षण में प्रगति देखने को मिली है पर यह निरंतरता कायम रखनी होगी। ओजोन के स्तर में गिरावट के परिणामस्वरूप ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों को रोकने में अक्षम हो जाती है। भविष्य बचाने के लिए इस दिशा में मजबूत कदम उठाने होंगे।
By TilakrajEdited By: Updated: Wed, 14 Sep 2022 09:53 AM (IST)
नई दिल्ली, सुधीर कुमार। पर्यावरण के मोर्चे पर तमाम बुरी खबरों के बीच एक अच्छी खबर आई है कि ओजोन परत के संरक्षण की दिशा में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। अमेरिका स्थित नेशनल ओशनिक एंड एटमास्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के विज्ञानियों ने कहा है कि समताप मंडल में ओजोन-क्षयकारी पदार्थों की सांद्रता वर्ष 1980 की तुलना में आधी रह गई है। हालांकि, इस दिशा में पूर्ण लक्ष्य अभी दूर है, लेकिन जिस सफलता के संकेत मिले हैं, वह एक बड़ी पर्यावरणीय आपदा के प्रति वैश्विक समुदाय की एकजुटता दर्शाते हैं।
पृथ्वी की रक्षा कवच का काम करती है ओजोन परत
समताप मंडल में स्थित ओजोन परत पृथ्वी की रक्षा कवच का काम करती है, लेकिन ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के बेतहाशा उत्सर्जन से न सिर्फ ओजोन निर्माण की प्राकृतिक प्रक्रिया प्रभावित हुई, बल्कि समताप मंडल में ओजोन की मात्रा भी घटी। ओजोन परत की सांद्रता कम होने से पराबैंगनी किरणें आसानी से धरातल पर पहुंच जाती हैं। इससे धरती पर जीवन कठिन हो जाता है।
दक्षिणी ध्रुव पर ओजोन परत का क्षरण सबसे अधिक
विभिन्न प्रकार के ओजोन-क्षयकारी तत्वों जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, मिथाइल क्लोरोफार्म आदि समताप मंडल में दशकों तक मौजूद रहते हैं और ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं। दक्षिणी ध्रुव पर ओजोन परत का क्षरण सबसे अधिक देखा गया है, जहां सर्दियों के अंत और बसंत के आरंभ में यह परिघटना अधिक दृष्टिगोचर होती है। इसके बाद जब समताप मंडल में तापमान बढ़ना शुरू होता है, तब ओजोन रिक्तीकरण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।ओजोन के स्तर में गिरावट के परिणाम...!
ओजोन के स्तर में गिरावट के परिणामस्वरूप ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों को रोकने में अक्षम हो जाती है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पौधों और फसलों की वृद्धि भी प्रभावित होती है। पैदावार में गिरावट से लेकर पोषक तत्वों में कमी आ जाती है। सामुद्रिक पारितंत्र पर भी इसका पड़ता है, जिससे समुद्री जीवों की जीवटता और प्रजनन क्षमता के साथ-साथ समुद्री खाद्य शृंखला भी प्रभावित होती है।ओजोन परत संरक्षण को लेकर ये करार है महत्वपूर्ण
ओजोन परत संरक्षण की दिशा में 1985 का वियना करार और 1987 के मांट्रियाल प्रोटोकाल का विशेष महत्व है। मांट्रियाल प्रोटोकाल का उद्देश्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और खपत में कटौती करना है, ताकि वातावरण में उनकी उपस्थिति घटाई और ओजोन परत की रक्षा की जा सके। मौजूदा रुझानों से इस दिशा में भले ही अच्छी प्रगति देखने को मिली है। ओजोन परत की सुरक्षा सुनिश्चित करना सबका कर्तव्य है। लिहाजा ऐसे उपकरणों को खरीदने पर जोर देना होगा, जो ओजोन परत के लिए नुकसानदेह न हों। प्रदूषण पर नियंत्रण, दावानल पर रोक और पौधारोपण पर जोर देना भी इस दिशा में महत्वपूर्ण होगा। (लेखक बीएचयू में शोध अध्येता हैं)