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पान सिंह तोमर के पड़ोसी गांव में खूनी खेल, लेपा गांव में आज बिछ गईं लाशें; जानिए क्या है पूरा विवाद

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के लेपा गांव में शुक्रवार को एक व्यक्ति ने जमीनी विवाद के चलते 6 लोगों की हत्या कर दी। इस घटना के होने के बाद पान सिंह का नाम भी चर्चाओं में है। ठीक ऐसे ही पान सिंह तोमर भी डकैत बना था।

By Versha SinghEdited By: Versha SinghUpdated: Fri, 05 May 2023 04:35 PM (IST)
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लेपा गांव से है पान सिंह तोमर का पुराना रिश्ता,
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में आज बिल्कुल फिल्मी अंदाज में हत्या करने का मामला सामने आया है। इस हत्या करने वाले व्यक्ति को पान सिंह तोमर से जोड़ कर देखा जा रहा है।

लेपा गांव, जहां पर शुक्रवार सुबह जमीन के विवाद को लेकर 6 लोगों की हत्या कर दी गई। लेपा गांव के पास का ही गांव भिड़ोसा है। जहां का डकैत पान सिंह तोमर था। पान सिंह न केवल सेना के जवान थे, बल्कि एशियन गेम्स की स्‍टेपलचेस के गोल्ड मैडल विजेता भी थे। यानि जमीन को लेकर हत्याओं और डकैत बनने का मुरैना यानि चंबल का पुराना इतिहास रहा है।

बता दें कि मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के सिहौंनिया थाना क्षेत्र के लेपा गांव में जमीन को लेकर हुए विवाद में दो गुटों के बीच खूनी संघर्ष हो गया। इस दौरान दोनों गुटों के बीच जमकर लाठी चली और बंदूकों से फायरिंग की गई, जिससे 6 लोगों की मौत हो गई। घटना की सूचना मिलते ही सिंहौनिया सहित आस-पास के थानों से पुलिस बल को मौके पर भेजा गया है। घटना के बाद से लेपा गांव में तनाव की स्थिति बनी हुई है।

वहीं, डकैत पान सिंह की जमीन पर भी गांव के ही कुछ दबंगों ने कब्जा कर रखा था। लेकिन उनकी गुहार न पुलिस ने सुनी थी और न ही राजस्व विभाग ने। ऐसे में उन्हें बंदूक लेकर खुद बीहड़ में उतरना पड़ा था। यही कहानी जिले के कई ऐसे कई पीडि़तों की है जिन्हें मजबूरी में डकैत बनना पड़ा है।

लेपा गांव के नजदीक है पान सिंह तोमर का गांव

लेपा गांव के पास ही भिड़ोसा गांव है, जो डकैत पान सिंह तोमर का गांव है। दोनों गांवों को लेपा-भिड़ोसा के नाम से जाना जाता है। जानकारी के अनुसार, जमीन विवाद को लेकर ही पान सिंह तोमर भी डकैत बना था। गौर करने वाली बात तो यह है कि दिमनी से विधायक रविंद्र तोमर का गांव भी भिड़ोसा है। इसलिए यह गांव जिले में अपनी खास पहचान रखता है।

आज की कहानी एक ऐसे लड़के की जो अपनी मां द्वारा कसम देने पर बागी बना था। नाम है पान सिंह तोमर..

ऐसा था पान सिंह तोमर का शुरुआती करियर

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के भिदौसा गांव में 1 जनवरी 1932 को एक बच्चे का जन्म हुआ था। उस बच्चे ने चलने सीखने वाली उम्र में दौड़ना शुरू कर दिया था। पूरे गांव के लोग 4 साल के बच्चे को फुल स्पीड में दौड़ते हुए देख अचंभित थे। बच्चा 17 साल का हुआ तो फौज की राजपूताना राइफल्स में उसका सिलेक्शन हो गया।

साल 1949 से लेकर 1979 तक फौज में नौकरी की। फौज की नौकरी करते हुए 7 बार राष्ट्रीय बाधा दौड़ का चैंपियन बना। एशियन गेम्स टोक्यो, जापान में भारत को रिप्रेजेंट भी किया।

वह लड़का अपने करियर की ऊंचाई पर था। मिल्खा सिंह समेत देश के बड़े-बड़े लोग उसकी दौड़ की तारीफ करते थे, लेकिन तभी कुछ ऐसी घटना घटी कि उसे फौज की नौकरी छोड़ बीहड़ का रुख करना पड़ा। सरकार का दुश्मन बनना पड़ा।

पान सिंह 6 फुट का हट्टा-कट्टा जवान था। सेना में जाने के बाद दिन-रात मेहनत करता था, इसलिए भूख भी बहुत लगती थी। सामान्य कोटा वाले फौजियों की खुराक निश्चित हुआ करती थी। खाने में गिनती की रोटियां मिलती थीं।

उन रोटियों से पान सिंह का पेट नहीं भरता था, इसलिए उसने स्पोर्ट्स कोटा जॉइन कर लिया। दरअसल, फौज की कैंटीन के एक बावर्ची ने उसे बताया था कि स्पोर्ट्स वालों को खाना पेटभर मिलता है।

फिर क्या था दौड़ने में तो पान सिंह तोमर बचपन से ही माहिर था। स्पोर्ट्स कोटा जॉइन कर पान सिंह दौड़ने लगा और उसे पेट भर खाने को भी मिलने लगा। फिर उसकी पोस्टिंग रुड़की के बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप में कर दी गई।

रुड़की में फौज की भीतरी दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और जीतता गया। उसके ट्रेनर ने उसे बाधा दौड़, यानी स्टीपलचेज की ट्रेनिंग देनी भी शुरू कर दी थी।

जिसके बाद पान सिंह तोमर ने जम कर प्रैक्टिस की और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लग गया। साल 1950 से लेकर 1960 के बीच उसने 7 बार नेशनल स्टीपल चैम्पियनशिप जीती थी।

इन जीतों के बाद आर्मी के तमाम बड़े अफसरों के साथ खुद मिल्खा सिंह भी पान सिंह की तारीफ करने लग गए थे। अब पान सिंह आम सिपाही से सूबेदार बन चुके थे।

भारत ने लगाई थी सिंह से जीत की आस

साल 1952 में पान सिंह को टोक्यो, जापान में होने वाले एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए जापान भेजा गया था। ऐसा कहा जाता था कि उन दिनों पूरी दुनिया में ही पान सिंह के लेवल का कोई दूसरा खिलाड़ी था ही नहीं। पान सिंह को ही जीत का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था, लेकिन पान सिंह जापान में रेस में हार गया।

दरअसल, पान सिंह को बिना जूतों के दौड़ने की आदत थी। प्रैक्टिस से लेकर अब तक हुई किसी भी प्रतियोगिता में पान सिंह ने कभी भी जूते नहीं पहने थे।

जूता पहनकर दौड़ने में वो कभी सहज नहीं रहा, लेकिन एशियन गेम्स के नियमों के अनुसार उसे मजबूरन वहां जूता पहन कर दौड़ना पड़ा था और यही कारण था कि पान सिंब तोमर इस प्रतियोगिता में हार गए थे।

जमीनी विवाद के कारण छोड़ दी थी नौकरी

नौकरी करते समय पान सिंह के जीवन में सब कुछ ठीक था। इसी बीच गांव में उसकी जमीन को लेकर विवाद शुरू हो गया। पान सिंह ने नौकरी के तय समय से पहले ही अपनी नौकरी छोड़ दी और गांव में रहकर खेती करने का फैसला कर लिया।

दरअसल, पान सिंह और उसके चाचा की कुल मिलाकर ढाई बीघा जमीन थी। सवा बीघा पान सिंह की और सवा बीघा उसके चाचा की। चाचा को पैसों की जरूरत थी, इसलिए उसने पूरी ढाई बीघा जमीन गांव के दबंगों बाबू सिंह और जंडेल सिंह तोमर के पास गिरवी रख दी।

कुछ दिनों बाद बाबू सिंह तोमर ने पूरी जमीन पर कब्जा कर चाचा को खेती करने से मना कर दिया। नौकरी छोड़ पान सिंह तोमर गांव पहुंचा तो उसने पंचायत बुलाई। पंचायत ने फैसला सुनाया कि पान सिंह और उसका चाचा बाबू सिंह को उसके पैसे चुकाएं और जमीन वापस ले लें। पान सिंह तैयार हो गया, लेकिन बाबू तोमर जमीन वापस करने के मूड में नहीं था।

पंचायत के फैसले के बाद भी बाबू तोमर पान सिंह की जमीन को वापस करने को तैयार नहीं हो रहा था। पान सिंह के बेटे ने भी इसका विरोध किया तो उन्होंने बेटे की पिटाई कर दी। पान सिंह पुलिस के पास गया तो पुलिस ने उल्टा उसी का मजाक बनाया। पान सिंह ने दरोगा को अपने देश के लिए जीते हुए मेडल तक दिखाए, लेकिन उसने उसकी कोई कद्र नहीं की।

पान सिंह कलेक्टर के पास गया। कलेक्टर साहब गांव आए, उन्होंने वही फैसला किया जो पहले पंचायत कर चुकी थी। उस जमीन पर चाचा ने जो खेती की थी बाबू ने सारी फसल में आग लगवा दी। पान सिंह ने हिम्मत नहीं हारी वो लगातार बड़े-बड़े अफसरों के पास जाता रहा।

बाबू तोमर ने पान सिंह की मां को था पीटा

पान सिंह का बड़े-बड़े अफसरों तक जाना बाबू तोमर और जंडेल तोमर को रास नहीं आ रहा था। एक दिन उन्होंने पान सिंह को घर जाकर मारने का प्लान बनाया। वो घर की तरफ बढ़े, घर पर बीवी, बच्चे और मां थी। मां ने उन लोगों को बंदूक के साथ गुस्से में घर की तरफ आते देखा तो बहु और पोतों को घर से भाग जाने के लिए कह दिया।

मां ने दी थी पान सिंह को बदला लेने की कसम

पान सिंह के घर के अंदर बाबू तोमर और उसके 8-10 साथी दरवाजा तोड़ते हुए जबरदस्ती घुसे। वहां देखा तो केवल पान सिंह की बूढ़ी मां मौजूद थी। वो इतने गुस्से में थे कि पान सिंह के ना मिलने पर उन्होंने बंदूक के बट से उसकी मां को पीटा था।

जब पान सिंह घर वापस आया और उसने अपनी मां की हालत देखी तो उसके सीने में आग लग गई। घायल मां ने पान सिंह से टूटे हुए लफ्जों से कहा, तुझे पैदा होते ही मर जाना चाहिए था। अगर सुबह होने से पहले तूने अपनी मां का बदला नहीं लिया तो मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।

घटना के बाद मां के कसम देते ही पान सिंह ने बंदूक उठाई और भाई-भतीजे के साथ निकल गया। पान सिंह ने अगले दिन का सूरज निकलने से पहले, सुबह 4 बजे के करीब बाबू तोमर को उसके घर में घुस कर गोली मार दी।

सुबह पान सिंह की मां की भी मौत हो गई। इसके बाद पान सिंह बाबू के भाई जंडेल सिंह को मारता है। कुछ दी दिनों में बाबू तोमर के रिश्तेदार लायक सिंह और हवलदार सिंह को भी गोली मार देता है।

इन 4 हत्याओं के बाद पुलिस पान सिंह के पीछे पड़ जाती है। पुलिस से बचने के लिए पान सिंह अपने भाई, भतीजों और परिवार के कुछ लोगों के साथ चंबल के बीहड़ की तरफ भाग गया था। उसे लगा की जंगलों में वह पुलिस से बच सकता है।

फूलन देवी और मलखान सिंह भी डरते थे

बता दें कि जब पान सिंह तोमर बीहड़ पहुंचा तो वहां पान सिंह ने कुछ ही दिनों बाद अपनी एक गैंग बना ली थी। गैंग में आधे लोग परिवार के थे और आधे ऐसे थे जो पान सिंह को अपना रोल मॉडल मानने लग गए थे और समाज और पुलिस द्वारा सताए और परेशान किए हुए थे। साल भर में उसकी गैंग में 30 से ज्यादा लोग शामिल हो चुके थे।

इसके बाद पान सिंह ने उसकी गैंग में शामिल सभी लोगों को फौज की ट्रेनिंग दी। कुछ ही महीनों में उसकी गैंग इतनी बलशाली हो गई थी कि पुलिस भी पान सिंह की गैंग का सामना करने से डरती थी। उसकी गैंग के अन्य डाकू उसे सूबेदार चाचा कहकर बुलाते थे।

घाटी का शेर कहकर बुलाते थे लोग

पान सिंह का एनकाउंटर करने वाले DSP एमपी सिंह ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि पान सिंह तोमर खुद भी फौज में था। इसलिए वह पुलिस के सभी पैंतरों को अच्छा तरह से समझता था। उसकी लूट, अपहरण और हत्याओं की वारदातों की वजह से पूरी चंबल घाटी में उसका खौफ हो गया था।

पुलिस वाले तो उसके नाम से ही डरने लगे थे। 6 फुट के हट्टे-कट्टे पान सिंह से उस दौर के बड़े डाकू फूलन सिंह और मलखान सिंह भी खौफ खाने लगे थे। लोग उसे घाटी का शेर कहकर बुलाने लगे थे।

मजाकिया था पान सिंह तोमर

पान सिंह की गैंग के सदस्य और उसके सगे भतीजे बलवंत सिंह ने एक टीवी को दिए गए इंटरव्यू में बताया था कि सूबेदार चाचा बेहद मजाकिया किस्म के थे। पुलिस के साथ बड़ी से बड़ी मुठभेड़ करने के वक्त भी वो मजाकिया बातें करते थे। यहां तक कि वो जिसका भी वो अपहरण करते थे उसके साथ भी मजाक किया करते थे।

बीहड़ में लोगों को खाने-पीने का सामान नहीं मिलता था, इसलिए पान सिंह की गैंग बीहड़ के आस-पास के गांवों में डेरा डाला करती थी। उसकी गैंग गांव के किसी भी रसूखदार के घर पहुंचती और उन्हें खाना खिलाने को कहती। एक दिन पान सिंह अपनी गैंग के साथ भिंड के एक गांव में गुर्जर के घर पहुंचा और उससे खाना बनाने के लिए कहा।

जिसके बाद घर के मुखिया ने इसकी जानकारी पुलिस को दे दी। पुलिस बिना देरी किए पान सिंह की गैंग पर हमला बोल देती है। हमले में पान सिंह का भाई मातादीन मारा गया। पान सिंह और बाकी गैंग वहां से बच निकले।

कुछ दिनों बाद पान सिंह को पता लगता है कि गुर्जर ने उसकी मुखबिरी की थी। पान सिंह दोबारा उसी गांव में पहुंचता है और गुर्जर परिवार के 6 लोगों को एक साथ गोली मार देता है।

मारने के बाद अपने लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करता है सरकार और पुलिस को बता देना पान सिंह को पकड़ पाना उनकी औकात से बाहर है। इस हत्या की घटना से MP सरकार हिल गई थी।