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नहीं रहे कुष्ठ रोगियों की जिंदगी सवांरने वाले पद्माश्री दामोहर गणेश बापट, पढ़ें उनके जीवन की कहानी

छत्तीसगढ़ के समाज सेवी और पद्माश्री पुरस्कार से सम्मानीत दामोदर गणेश बापट इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए।

By Ayushi TyagiEdited By: Updated: Sat, 17 Aug 2019 08:21 PM (IST)
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नहीं रहे कुष्ठ रोगियों की जिंदगी सवांरने वाले पद्माश्री दामोहर गणेश बापट, पढ़ें उनके जीवन की कहानी

बिलासपुर, जेएनएन। अपने लिए तो हर कोई जी लेता है लेकिन, जो दूसरों के लिए जिएं और उनकी जिंदगी सवांरे ऐसे लोग बहुत कम मिलते है। ऐसे ही एक शख्स थे जिन्होंने अपना जीवन समाज सेवा करने में ही लगा दिया। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ समाज सेवी दामोदर गणेश बापट दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए हैं। पद्मश्री गणेश बापट का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। 

लंबे समय से बीमार थे बापट 
बापट काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 87 वर्षीय बापट ने बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में आखिरी सांस ली। पट मूल रुप से ग्राम पथरोट, जिला अमरावती (महाराष्ट्र) के हैं। 

 

कुष्ठ रोगियों के लिए समर्पित कर दिया अपना पूरा जीवन 
गणेश बापट मरीजों के साथ रहते थे साथ ही उनके हाथ से पकाया हुआ खाना भी खाया करते थे। खाने पीने के अलावा वह उनका दर्द भी साझा करते थे। कहा जाता है कि बापट ने लगभग 26 हजार मरीजों की जिंदगी संवारी है।

पिता का देहांत के बाद ढुंढी नौकरी 
बापट ने  नागपुर से बीए व बीकॉम किया और जब उनके पिता का दिहांत हो गया तब उन्होंने नौकरी ढूंढने की कोशिश की। बचपन से ही उनके मन में सेवा की भावना थी। इसलिए वह नौ साल की उम्र में राष्ट्रीय सेवा संघ के साथ जुड़ गए। शिक्षक के रुप में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की और वो आदीवासी इलाकों में बच्चों को पढ़ाते थे। इस दौरान वह मरीजों से भी मिलने के लिए जाया करते थे।

 

आश्रम में करते थे कुष्ठ रोगियों की सेवा 
छत्तीसगढ़ के चांपा से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ द्वारा संचालित आश्रम में कुष्ठ रोगियों की सेवा करते  थे। इस कुष्ठ आश्रम की शुरुआत 1962 में कुष्ठ पीड़ित सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे ने की थी। 1972 में यहां  वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता गणेश बापट पहुंचे और कात्रे जी के साथ मिलकर उन्होंने कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक आर्थिक पुनर्वास के लिए सेवा के साथ कई कार्यक्रमों की शुरुआत भी की।