पद्मश्री से सम्मानित असम की गांधीवादी शकुंतला चौधरी का 102 साल की उम्र में निधन
पद्मश्री से सम्मानित असम की 102 वर्षीय गांधीवादी शकुंतला चौधरी का निधन हो गया है। वह लंबे वक्त से कई बीमारियों से जूझ रही थी। पिछले 10 वर्षों से उनका इलाज चल रहा था। रविवार देर रात उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांसे ली।
By Ashisha RajputEdited By: Updated: Mon, 21 Feb 2022 02:30 PM (IST)
गुवाहाटी, पीटीआइ। एक बड़ी दुखद खबर सामने आई है। पद्मश्री से सम्मानित असम की 102 वर्षीय गांधीवादी शकुंतला चौधरी का निधन हो गया है। वह लंबे वक्त से कई बीमारियों से जूझ रही थी। पिछले 10 वर्षों से उनका इलाज चल रहा था। रविवार देर रात उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांसे ली। यह जानकारी दशकों से असम के सरनिया आश्रम में उनके साथ रह रहे कार्यवाहक ने दी। उन्होंने कहा, 'उनके शुभचिंतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनके शव को आश्रम में रखा गया है और उनका अंतिम संस्कार आज नबग्रहा श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीवादी शकुंतला के निधन पर जताया शोकपद्मश्री से सम्मानित गांधीवादी शकुंतला चौधरी के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया है। पीएम मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्वीट कर कहा, 'शकुंतला चौधरी जीगांधीवादी मूल्यों को बढ़ावा देने के उनके आजीवन प्रयासों के लिए याद किया जाएगा। सरानिया आश्रम में उनके नेक काम ने कई लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।'
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, 'उनके निधन से दुखी हूं। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और अनगिनत प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।'असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वकर्मा ने ट्वीट कर कहा
असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वकर्मा ने गांधीवादी शकुंतला चौधरी के निधन पर ट्वीट कर कहा, 'अनुभवी गांधीवादी और पद्मश्री शकुंतला चौधरी के निधन पर गहरा दुख हुआ।' उन्होंने आगे कहा, 'उनका जीवन सरानिया आश्रम, गुवाहाटी में निस्वार्थ सेवा, सत्य, सादगी और अहिंसा के लिए समर्पित था, जहां महात्मा गांधी 1946 में ठहरे थे। उनकी सद्गति ओम शांति के लिए मेरी प्रार्थना!'
वहीं राज्य के कैबिनेट मंत्री केशव महंत और रानोज पेगू ने राज्य सरकार की ओर से शकुंतला चौधरी के पार्थिव शरीर पर सरानिया आश्रम में पुष्पांजलि अर्पित की।गांधीवादी शकुंतला चौधरी के बारे मेंगांधीवादी शकुंतला चौधरी का जन्म गुवाहाटी में हुआ था। उन्हें शकुंतला 'बैदेव' (बड़ी बहन), कह कर प्यार से बुलाया जाता था। वह बचपन से ही एक होनहार छात्रा थीं और आगे चलकर एक शिक्षिका बनीं। यह वही वक्त था, जब वह गुवाहाटी के टीसी स्कूल में अपने कार्यकाल के दौरान एक अन्य गांधीवादी के संपर्क में आईं। अमलप्रोवा दास, उनके पिता थे, जिन्होंने आश्रम की स्थापना के लिए अपनी सरानिया हिल्स की संपत्ति दान कर दी थी।
उनके जीवन का मुख्य आकर्षण विनोबा भावे के साथ उनका घनिष्ठ संबंध था और उनके प्रसिद्ध 'भूदान' आंदोलन के अंतिम चरण के दौरान असम में डेढ़ साल की 'पदयात्रा' में उनकी सक्रिय भागीदारी थी। वह उनके दल का हिस्सा थीं और एक दुभाषिया के रूप में, उन्होंने असमिया में लोगों को अपना संदेश दिया।भावे ने अलग-अलग भाषाई समूहों के लोगों के बीच देवनागरी लिपि को बढ़ावा देने के लिए अपनी खुद की लिपि के साथ पहल की थी, और उन्हें एक मासिक पत्रिका 'असोमिया विश्व नगरी' शुरू करने के लिए कहा था, जिसे उन्होंने कुछ साल पहले तक संपादित किया था। चौधरी 1978 में भावे द्वारा शुरू किए गए 'गाय वध सत्याग्रह', 'स्त्री शक्ति जागरण' में भी सबसे आगे थे और उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर केजीएनएमटी के ट्रस्टी के रूप में भी काम किया।
उनकी सोच गांधीवादी थी, वह सूत कातना पसंद करती थी और हमेशा खादी 'मेखला-सदोर' (महिलाओं के लिए पारंपरिक असमिया पोशाक) पहनती थी।