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अनजान बच्चे से बांसुरी लेकर छुए दिल के तार, 13 साल की उम्र में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने लिखी थी अपनी किस्मत

Pandit Hariprasad Chaurasia Birthday बांसुरी के जादूगर कहे जाने वाले भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक संगीतकार और संगीत निर्देशक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म 1 जुलाई 1938 को प्रयागराज में हुआ था। उन्होंने अपनी जिंदगी में अपनी कला के दम पर काफी प्रसिद्धि हासिल की है। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को अपनी कला के लिए पद्म भूषण और पद्म विभूषण समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Sat, 01 Jul 2023 01:24 PM (IST)
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85 साल के हुए बांसुरी के जादुगर पंडित हरिप्रसाद चौरसिया
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Hariprasad Chaurasia: संगीत एक ऐसा जादू है, जिससे आपका मन किसी भी परिस्थिति में शांत हो जाता है। बांसुरी एक ऐसा यंत्र है, जो विचलित मन को भी शांत कर देता है। कहीं न कहीं यह बात भी सच है कि बांसुरी की धुन आजकल के गाने में कम हो गई है, लेकिन आज भी अगर पुराने गानों में बांसुरी की धुन सुनते हैं, तो खुद को उससे जुड़ा हुआ पाते हैं।

बांसुरी के जादूगर कहे जाते थे हरिप्रसाद

हालांकि, हर एक यंत्र से जादू बिखेरना सबके लिए संभव नहीं होता है। ठीक, उसी तरह बांसुरी से सबके दिलों पर राज करना हर किसी के लिए संभव नहीं है। इसके बावजूद, 'बांसुरी के जादूगर' कहे जाने वाले भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक, संगीतकार और संगीत निर्देशक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने अपने बांसुरी का जादू देश-विदेश में बिखेर दिया है। आज 'बांसुरी का जादूगर' का जन्मदिन है और वह 85 वर्ष के हो गए हैं।

पहलवान बनाना चाहते थे पिता

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म 1 जुलाई, 1938 को प्रयागराज के सेनिया घराने में हुआ था। इनके पिता का नाम छेदीलाल चौरसिया था, जो शुरू से ही इन्हें पहलवान बनाने चाहते थे। जिसके लिए इन्होंने कुछ समय तक ट्रेनिंग भी ली। इसके साथ ही, उन्होंने शॉर्ट-हैंड कला भी सीखी।

परिवार और अपनी इच्छाओं के बीच फंसे थे हरिप्रसाद

इसके बाद भी उनका मन संगीत में रमा हुआ था। पंडित हरिप्रसाद अपनी और परिवार की इच्छाओं के बीच फंसे हुए थे। इसके बाद अचानक एक दिन उन्हें उम्मीद की किरण दिखाई दी। हालांकि, उनकी परिवार संगीत से बहुत दूर था, लेकिन पड़ोस से आने वाली धुन उन्हें संगीत की ओर खींचती थी।

पंडित हरिप्रसाद के दोस्त बताते हैं कि एक दिन उन्होंने किसी बच्चे से बांसुरी मांगी और उसे बजाने लगे। उस समय इन्होंने कहीं से ट्रेनिंग भी नहीं ली थी, लेकिन बांसुरी की वो धुन सबके दिलों में घर कर गई थी।

राजा राम ने ट्रेनिंग देने की ठानी

दरअसल, पंडित हरिप्रसाद ने जिस दौरान यह धुन बजाई उस समय माघ मेला लगा हुआ था। तभी उनके पड़ोसी मशहूर संगीतकार राजा राम भी मौजूद थे। जब उन्होंने हरिप्रसाद को बांसुरी बजाते हुए देखा, तो वो हैरान हो गए और उन्होंने ठान लिया कि वो हरिप्रसाद को ट्रेनिंग देंगे।

यहां से पंडित हरिप्रसाद का संगीत का सफर शुरू हो गया। पंडित राजा राम ने पंडित हरिप्रसाद को ट्रेनिंग दी और आज के समय में हरिप्रसाद चौरसिया और बांसुरी एक-दूसरे के पर्याय हो गए हैं।

13-14 वर्ष की आयु में अपनी कला को दिया बढ़ावा

जिन दौरान राजा राम ने हरि को ट्रेनिंग देनी शुरू की थी, उस दौरान हरि की आयु 13-14 वर्ष थी। यहां से ट्रेनिंग लेने के बाद उनके जीवन में कई बड़े-बड़े बदलाव हुए। उनकी बांसुरी की आवाज दूर-दूर तक पहुंचने लगी और लोगों का इनके धुन की तरफ झुकाव बढ़ता गया।

इस दौरान हरि ने प्रमुख संगीतकार अन्नपूर्णा देवी से भी ट्रेनिंग लेनी चाही, जिसके लिए वह राजी हो गईं, लेकिन उनकी शर्त थी कि इसके लिए हरिप्रसाद को अपनी बांसुरी दायीं ओर की बजाय बायीं ओर से बजानी होगी। हरि ने इस दौरान पंडित भोलानाथ प्रसन्ना से बांसुरी बजाना भी सीखा।

आकाशवाणी से की करियर की शुरुआत

अपनी कला से मिली प्रसिद्धी के बाद हरि को आकाशवाणी प्रयागराज में कार्यक्रम मिलने लगा। 1952 में आकाशवाणी के साथ उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। बांसुरी में महारत हासिल करने के बाद लोगों ने उन्हें सम्मान पूर्वक पंडित बुलाना शुरू कर दिया।

कई बॉलीवुड फिल्मों में दिया संगीत

आकाशवाणी में नौकरी के साथ ही उनकी बेहतरीन दिनों की शुरुआत हुई। दरअसल, यहां से उन्होंने मुम्बई का  रुख किया। यहां उन्होंने संतूर के सबसे बड़े वादक शिव कुमार शर्मा के साथ जोड़ी बनाकर चांदनी, डर, लम्हा और सिलसिला समेत कई बॉलीवुड फिल्मों में अपना संगीत दिया।

पद्म भूषण और पद्म विभूषण से हुए सम्मानित

अपनी कला के लिए पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को 1984 में संगीत नाटक अकादमी, 1992 में पद्म भूषण तथा कोणार्क सम्मान और 2000 में पद्म विभूषण तथा हाफिज अली खान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा, इन्हें फ्रांसीसी सरकार का 'नाइट ऑफ द आर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स' पुरस्कार और ब्रिटेन के शाही परिवार की तरफ से भी उन्हें सम्मान मिला है।