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Pandit Jasraj Passes Away: बेगम अख्तर की गजल की दीवानगी ने छुड़वा दिया था स्कूल

Pandit Jasraj Passes Awayरोजाना बेगम अख्तर का रिकॉर्ड ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे..’ बजता था। पंडित जसराज स्कूल न जाकर वहीं बैठकर उसे सुनते..

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 18 Aug 2020 09:58 AM (IST)
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Pandit Jasraj Passes Away: बेगम अख्तर की गजल की दीवानगी ने छुड़वा दिया था स्कूल
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Pandit Jasraj Passes Away पंडित जसराज के संगीत सफर का आगाज तीन साल की उम्र में ही हो गया था। उन दिनों उस्ताद अब्दुल करीम खान साहब का रिकॉर्ड निकला था पिया बिन नहीं आवत चैन..। उसमें एक सरगम थी। उसी सरगम को जसराज चलते फिरते हमेशा गाते थे। पिता जी अक्सर उसे गाने को कहते। आम तौर पर संगीत में की गई गलती पर गुरु नाराज होते हैं, लेकिन उनके पिता उनकी गलतियों पर नाराज नहीं होते थे। वह हंसते थे। 30 नवंबर, 1934 को उनके पिता जी को हैदराबाद रियासत का संगीतकार नियुक्त होना था। शाम चार बजे उनका कार्यक्रम था। उसी दिन सुबह 11 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

छह साल की उम्र में जसराज ने स्कूल जाना शुरू किया। स्कूल के रास्ते में एक रेस्तरां पड़ता था। वहां रोजाना बेगम अख्तर का रिकॉर्ड ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे..’ बजता था। वह स्कूल न जाकर वहीं बैठकर उसे सुनते थे। उनके बड़े भाई राजा भैया रोजाना स्कूल जाने को कहते। वह टाल जाते। ऐसे करते-करते महीनों गुजर गए। उस उम्र में भी उनमें संगीत की दीवानगी इस कदर थी कि उसके अलावा कुछ सूझता नहीं था। वह घर पर तबले को यूं ही पिटते थे।

यह देखकर मंझले भाई पंडित प्रताप नारायण ने उन्हें तबला बजाना सिखाना शुरू किया। कम उम्र के बावजूद वह अच्छा बजाते थे। यह देखकर उनके बड़े भाई और गुरु पंडित मणिराम ने उन्हें अपने साथ तबले पर संगत में रखना शुरू कर दिया, जबकि दोनों भाइयों में बीस साल का अंतर था। पंडित मणिराम अच्छे गायक थे। उस समय घर की आíथक स्थिति खराब थी। तबला बजाने से थोड़ी आमदनी हो जाती थी। 14-15 बरस की आयु तक उन्होंने बड़े भाई साथ तबला बजाया।

दिखा भक्ति का मार्ग: जसराज के चाचा पं. ज्योतिराम भी बहुत बड़े गायक थे। वह अहमदाबाद में रहते थे। वहां गाने के शौकीन लोगों को चाचा ने बता रखा था कि उनका भतीजा (पंडित मणिराम) बहुत अच्छा गाता है। हालांकि उस समय उनके भाई की आवाज उस समय खराब हो चुकी थी। उनके वोकल कॉर्ड में दिक्कत थी। डॉक्टर उनके गले पर शॉक लगाता था, तब दो घंटे आवाज सही रहती थी। वहां उनकी मुलाकात साणंद के महाराजा जयवंत सिंह वाघेला से हुई। एक दिन राजा साहब बोले, ‘पंडित जी आज देवी मां आपको आवाज देगी। रात 12 बजे नहा धोकर मंदिर आ जाइए।’ उनके साथ जसराज भी थे। संगीत की पूरी तैयारी थी। राजा साहब की शर्त बस इतनी थी कि पंडित मणिराम सिर्फ ईश्वर के नाम पर गाएंगे। उस रात वाकई कमाल हुआ। वह रात 12 बजे से सुबह छह बजे तक लगातार साफ आवाज में गाते रहे। उस दिन जसराज का साक्षात्कार दो गुरु से हुआ। पहला उनके संगीतज्ञ गुरु व बड़े भाई पंडित मणिराम और दूसरे आध्यात्मिक गुरु जयवंत सिंह, जिन्होंने उन्हें भक्ति का मार्ग बताया।