समुद्र मंथन से हुई थी अदभुत और अलौकिक परिजात वृक्ष की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण से जुड़ी है कहानी
परिजात के वृक्ष के बारे में जितना कहा जाए कम ही होगा। समुद्र मंथन से निकला ये वृक्ष अदभुत और अलौकिक है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 23 Aug 2020 12:43 PM (IST)
नई दिल्ली (रेणु जैन)। अयोध्या में प्रभु श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का शिलान्यास करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां परिजात का पौधा लगाया। पौधारोपण के महत्व को उन्होंने बड़ी ही सहजता से सबको बता दिया। हमारे शास्त्रों में भी एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना सौ गायों का दान देने के समान माना गया है। उस पर परिजात जैसा अति लाभदायक पौधा तो गुणों की खान है। परिजात को हरसिंगार, प्राजक्ता, शैफाली, शिउली नाम से भी जाना जाता है। 10 से 15 फीट ऊंचा यह पेड़ अगस्त-सितंबर से दिसंबर माह तक अपने खूबसूरत व खुशबूदार फूलों से महकता रहता है।
समुद्र मंथन से हुई उत्पत्ति हमारे शास्त्रों में परिजात को अत्यंत शुभ और पवित्र वृक्ष की श्रेणी में रखा गया है। इस वृक्ष की विशेषता है कि इसमें काफी मात्रा में फूल खिलते हैं। ये फूल सूर्यास्त के बाद खिलना शुरू होते हैं तथा सूर्य के आगमन के साथ ही सारे फूल जमीन पर झर जाते हैं। अगले दिन यह फिर फूलों से सज जाता है। परिजात की उत्पत्ति के विषय में एक कथा है कि इसका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया था। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी परिजात के फूलों का प्रयोग किया जाता है। पुराणों में बताते हैं कि इसके वृक्ष को छूने भर से थकान मिनटों में गायब हो जाती है तथा शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। इस दैवीय वृक्ष से भगवान श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी की प्रेम कहानी भी जुड़ी है।
कई गुणों से भरपूर परिजात का वृक्ष अधिकांशत: मध्य भारत और हिमालय की निचली तराइयों में पाया जाता है। शरद ऋतु की सूचना देने वाले इसके फूल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। आयुर्वेद में परिजात के फूलों को हृदय के लिए बेहद फायदेमंद बताया गया है। इस वृक्ष की पत्तियों को पीसकर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है। इसकी पत्तियों से बने तेल का त्वचा रोगों के इलाज में भरपूर इस्तेमाल होता है। इसकी पत्तियों की चाय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। हालांकि इन नुस्खों का प्रयोग किसी विशेषज्ञ की राय से ही करना चाहिए। कहते हैं कि यदि मधुमक्खी इसके पेड़ पर छत्ता बनाए तो उससे निकलने वाला शहद और भी ज्यादा गुणकारी हो जाता है। इसके फूलों से निकलने वाले तेल का उपयोग सौंदर्य सामग्री बनाने में भी होता है।
संरक्षित दुर्लभ वृक्ष परिजात की कलम लगाना आसान नहीं होता, इसलिए दुर्लभ वृक्ष मानते हुए भारत सरकार ने इसे संरक्षित वृक्षों की श्रेणी में रखा है। दुनियाभर में इसकी सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। अलौकिक सौंदर्य के कारण परिजात पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प भी है।