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Criminal Laws: दिए गए नाम असंवैधानिक नहीं... तीन आपराधिक कानूनों के नाम हिंदी में करने के फैसले पर संसदीय समिति ने लगाई मुहर

Criminal Laws भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली समिति ने संविधान के अनुच्छेद 348 के शब्दों का संज्ञान लिया जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के साथ-साथ अधिनियमों विधेयकों और अन्य कानूनी दस्तावेज में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अंग्रेजी होनी चाहिए। समिति ने पाया कि चूंकि संहिता का पाठ अंग्रेजी में है इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रविधानों का उल्लंघन नहीं करता है।

By Jagran NewsEdited By: Prince SharmaUpdated: Wed, 22 Nov 2023 05:43 AM (IST)
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यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रविधानों का उल्लंघन नहीं करता है।

पीटीआई, नई दिल्ली। गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने कुछ राजनीतिक दलों और उनके नेताओं द्वारा की जा रही आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा है कि तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों को हिंदी में दिए गए नाम असंवैधानिक नहीं हैं।

भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली समिति ने संविधान के अनुच्छेद 348 के शब्दों का संज्ञान लिया, जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के साथ-साथ अधिनियमों, विधेयकों और अन्य कानूनी दस्तावेज में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अंग्रेजी होनी चाहिए। राज्यसभा को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया कि समिति ने पाया कि चूंकि संहिता का पाठ अंग्रेजी में है, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रविधानों का उल्लंघन नहीं करता है।

11 अगस्त को लोकसभा में किया गया था पेश

समिति गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट है और मानती है कि प्रस्तावित कानून को दिया गया नाम भारत के संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन नहीं है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसए-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) को 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था। प्रस्तावित कानून क्रमशः भारतीय दंड संहिता, 1860, आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम, 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे।

विधेयक अंग्रेजी में लिखे गए तो नहीं हैं उल्लंघन

समिति के विचार-विमर्श के दौरान केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने द्रमुक के एन आर इलांगो, दयानिधि मारन और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह सहित कुछ विपक्षी सांसदों की आपत्तियों को दूर करने का भी प्रयास किया। भल्ला ने कहा था कि किसी भी संवैधानिक प्रविधान का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है क्योंकि विधेयक और उनके पाठ अंग्रेजी में लिखे गए हैं। जैसा कि अनुच्छेद 348 में सभी विधेयकों, अधिनियमों और अध्यादेशों में अंग्रेजी भाषा के उपयोग का प्रविधान है, अगर विधेयकों को अंग्रेजी में लिखा गया है तो कोई उल्लंघन नहीं है।गौरतलब है कि मद्रास बार एसोसिएशन ने तीनों विधेयकों के नाम हिंदी में रखने के केंद्र के कदम को संविधान विरुद्ध बताया था।

कांग्रेस ने हिंदी नाम पर उठाया सवाल:

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने केंद्र द्वारा विधेयकों को हिंदी नाम देने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया था। कहा था कि मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विधेयकों का हिंदी नाम नहीं दिए जाने चाहिए।

जब अंग्रेजी का उपयोग किया जाता है तो इसे अंग्रेजी नाम दिया जा सकता है। जब कानूनों का मसौदा तैयार किया जाता है तो यह अंग्रेजी में किया जाता है और बाद में इसका हिंदी में होता है। विधेयक के प्रविधानों का मसौदा अंग्रेजी में तैयार किया है और इसे हिंदी नाम दिया है।

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