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Ratan Tata: भारत के आर्थिक विकास में पारसियों ने निभाई अहम भूमिका, पढ़ें टाटा का पूरा सफर

रतन टाटा के निधन से भारतीय उद्योग जगत में पारसी समुदाय के अद्वितीय और महत्वपूर्ण योगदान की बहुत सारे लोगों को जानकारी मिल रही है। पारसी उद्यमियों जैसे टाटागोदरेजवाडियामिस्त्री वगैरह ने आधी दुनिया को अपने यहां आगे बढ़ने के भरपूर अवसर दिए।इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति बताती हैं कि वह 1974 में टाटा मोटर्स में इंजीनियर थीं और उनका टाटा समूह के चेयरमेन जेआरडी टाटा से संपर्क रहता था।

By Jagran News Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Mon, 21 Oct 2024 05:30 PM (IST)
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रतन टाटा के निधन के बाद से बढ़ रहा पारसी समुदाय का जिक्र (फाइल फोटो)
विवेक शुक्ला, नई दिल्ली। रतन टाटा के निधन से भारतीय उद्योग जगत में पारसी समुदाय के अद्वितीय और महत्वपूर्ण योगदान की बहुत सारे लोगों को जानकारी मिल रही है। पर अब भी यह बताने की भी जरूरत है कि पारसी उद्यमियों जैसे टाटा,गोदरेज,वाडिया,मिस्त्री वगैरह ने आधी दुनिया को अपने यहां आगे बढ़ने के भरपूर अवसर दिए। इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति बताती हैं कि वह 1974 में टाटा मोटर्स में इंजीनियर थीं और उनका टाटा समूह के चेयरमेन जेआरडी टाटा से संपर्क रहता था।

बताइये आधी सदी पहले कितनी महिला इंजीनियर देश की निजी कंपनियों में काम कर रही थीं। एक बात और। पारसी औद्योगिक घरानों में संपत्ति विवाद की खबरों का ना होना भी हैरान करता है। यह उनकी सफलता की एक अहम वजह माना जाता है, जो उन्हें अन्य समुदायों से अलग करता है।

लक्ष्य मुनाफा कमाना ही नहीं

दरअसल पारसी बीती कई सदियों से, अपनी दूर दृष्टि, मेहनत और नवाचार के साथ भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इन्होंने भारत के औद्योगिक इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई है। इनके कारोबार का एक मात्र लक्ष्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना कभी नहीं रहा। ये लाभ कमाने और फिर उस लाभ के बड़े अंश को लोक कल्याण के कामों में खर्च करने में यकीन करते रहे। पहले बात टाटा समूह से शुरू कर लेते हैं। 

टाटा समूह के विभिन्न कार्य

  • भारत का सबसे बड़ा व्यावसायिक समूह टाटा 1868 में जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित हुआ था
  • शुरुआती सालों में कपड़े, होटल और लोहे के कारखाने में दिया योगदान
  • आज  आईटी, ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव स्थापित कर चुका है।
  • टाटा समूह का योगदान सिर्फ उद्योगों तक ही सीमित नहीं है।
  • बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, अनुसंधान और विकास जैसे क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण है। 

रतन टाटा की सौतेली मां ने लैक्मी को बढ़ाया

टाटा समूह में रतन टाटा की सौतेली मां सिमोन टाटा को सौंदर्य प्रसाधन की कंपनी लैक्मे का विस्तार करने का मौका मिला उन्होंने लैक्मे में सैकड़ों औरतों को नौकरी देकर स्वावलंबी बनाया। ये लगभग साठ साल पुरानी बातें हैं। राजधानी के खालसा कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे नोवी कपाड़िया कहते थे कि पारसी समुदाय में औरतों को हमेशा जीवन के सभी क्षेत्रों में बराबरी मिलती है। वे लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करते।

 ताले से लेकर रेफ्रिजरेटर बनाए

टाटा समूह की स्थापना के लगभग दो दशक बाद 1897 में स्थापित गोदरेज समूह के संस्थापक विरजी गोदरेज थे। गोदरेज समूह, अत्याधुनिक तकनीक के साथ उपभोक्ता वस्तुओं, फर्नीचर और अचल संपत्ति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में एक प्रमुख नाम है। गोदरेज ने अपने यहां आधी दुनिया को शिखर पर जगह देने में कभी कसर नहीं छोड़ी। नायरिका होल्कर 12,000 करोड़ रुपये की कंपनी गोदरेज एंड बायस की मैनेजिंग डायरेक्टर बनीं। 

कौन हैं नायरिका होल्कर?

नायरिका ताले से लेकर रेफ्रिजरेटर तक बनाने वाली इस 125 साल पुरानी कंपनी में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी रही हैं। उन्हें गोदरेज समूह के चेयरमेन जमशेद गोदरेज के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था। जमशेद गोदरेज की भांजी हैं नायरिका। जमशेद गोदरेज ने उन्हें गुरु दक्षिणा देते हुए सलाह दी है कि वह फाइनेंस के मामले में कंजरवेटिव रुख अपनाएं और कंपनी के लिए अगले 125 साल की योजना बनाकर चलें।

नायरिका ने 2017 में गोदरेज के बोर्ड को जॉइन किया था। उन्होंने अमेरिका को कोलोराडो कॉलेज से फिलॉसफी और इकनॉमिक्स में बीए करने के बाद यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से एलएलबी और एलएलएम की डिग्री ली है।

क्या है वाडिया समूह?

टाटा और गोदरेज से पहले सन 1736 में स्थापित हो गया था वाडिया समूह। इसका इतिहास भारत के आधुनिक इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। यह समूह शुरुआत में कपड़े के व्यापार से शुरू हुआ और बाद में विमानन, पेय पदार्थ, बैंकिंग, रीयल एस्टेट और अन्य क्षेत्रों में अपना प्रभाव स्थापित किया। वeडिया समूह के चेयरमैन नुस्ली वाडिया ने अपने ग्रुप की एक महत्वपूर्ण कंपनी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया था विनीता बाली को। नुस्ली वाडिया ने विनीता बाली में काबिलियत देखी और उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंप दी।

विनीता ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए भी किया। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा ग्रुप की कंपनी वोल्टास से की थी। 

भारत और अफ्रीका में कंपनी के बाजार में इनका रहा अहम रोल

उन्होंने चौदह वर्षों तक कैडबरी इंडिया में काम किया, जहां उन्होंने भारत और अफ्रीका में कंपनी की बाजार का विस्तार किया। वर्ष 1994 में, उन्होंने कोका कोला में विपणन निदेशक के रूप में कार्य किया और उसके बाद वे लैटिन अमेरिका के लिए विपणन उपाध्यक्ष नियुक्त हुईं।  कहने का मतलब यह है कि वाडिया समूह ने विनीता बाली की मेरिट को पहचाना और उन्हें अहम जिम्मेदारी दी।

बेशक, भारत के पारसी उद्योग घरानों में शाहपुरजी पलनजी मिस्त्री समूह भी अहम है। यह  भारत के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।शापूरजी पालोनजी समूह  का टाटा समूह से बहुत गहरा संबंध है।पालोनजी शापूरजी मिस्त्री के पुत्र साइरस टाटा समूह के चेयरमेन भी रहे थे।  रतन टाटा की मृत्यु के बाद टाटा ट्रस्ट के चेयरमेन नियुक्त हुए नोएल टाटा के रिश्ते में साले थे साइरस मिस्त्री।

साइरस की बहन की शादी नोएल से हुई है।शापूरजी पालोनजी समूह   इंफ्रास्ट्रक्टर क्षेत्र के अनेक बड़े प्रोजेक्ट देश और देश से बाहर पूरे कर रहा था। इसी ने राजधानी में प्रगति मैदान को रीडवलप किया है। हो सकता है कि यह जानकारी सबको ना हो कि साइरस मिस्त्री के पिता  मुगले आजम फिल्म के निर्माता थे। उन्होंने उसके निर्माण में भरपूर इनवेस्ट किया था। ये बात अलग है कि साइरस मिस्त्री ने कभी फिल्म निर्माण में दिलचस्पी नहीं दिखाई। 

 वैश्विक दृष्टिकोण रखते हैं पारसी उद्यमी

इसके अलावा, पारसी उद्यमी नई तकनीकों को अपनाने और नए उद्योगों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे है।  इनका हमेशा वैश्विक दृष्टिकोण रहता है। ये अपने बिजनेस को भारत से बाहर भी लेकर जाने की कोशिश करते हैं।

 नोवी कपाड़िया कहते थे कि पारसी संस्कृति पारिवारिक मूल्यों और एकता पर जोर देती है। पारसी परिवारों में अपनी संपत्ति के लिए पहले से ही विल और ट्रस्ट बनाना आम है। यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति उनके द्वारा निर्धारित योजना के अनुसार विभाजित हो।

पारसी समाज से आने वाले अरीज पिरोजशा खंबाटा ने मशहूर पेय पदार्थ रसना की मार्फत देश-दुनिया के करोड़ों लोगों का गला तर किया। वे कहा करते थे कि वे सारे भारत के हैं और सारा भारत उनका है। खंबाटा जीवन के अंत तक नए उदमियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। वे मानते थे कि युवाओं को नौकरी की जगह कारोबारी बनने के बारे में सोचना होगा। उन्हें नौकरी देने वाला बनना चाहिए। ये बात  सब पारसी उद्यमियों पर लागू होती है। वे अपने मुलाजिमों को प्रेरित करते रहते हैं कि वे नौकरी से ना चिपके रहें। वे खुद ही आंत्रप्योनर बने। 

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