महाराष्ट्र में पवार ही पावरफुल, अब सरकार गठन को लेकर क्या होगी आगे की रणनीति
महाराष्ट्र में शरद पवार ने पार्टी में सबसे बड़ा डेमेज कंट्रोल कर लिया है। इसके साथ ही उन्होंने फिर खुद को साबित किया है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 27 Nov 2019 12:59 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। महाराष्ट्र में उप-मुख्यमंत्री के तौर पर अजीत पवार के इस्तीफे के बाद अब भाजपा सरकार चैप्टर पूरी तरह से बंद हो गया है। 23 नवंबर भाजपा ने जो रातोंरात दांव चला उसके तहत एनसीपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजीत पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली। तब से लेकर अब तक सरकार को लेकर राज्य में विपक्ष दिन-रात एक किए हुए था। आज सुबह ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बुधवार में फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दिया था। लेकिन इससे पहले ही सरकार ने महाराष्ट्र की सरकार ने घुटने टेक दिए। महाराष्ट्र की राजनीति में यह विपक्ष की बड़ी जीत है।
उद्धव-शरद का गठजोड़ इस जीत के पीछे दो लोगों का राजनीतिक दिमाग काम कर रहा था। इनमें से पहला नाम एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार का है तो दूसरा नाम शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे का है। भाजपा की सरकार बनने के बाद इन दोनों ने मिलकर अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए जो लामबंदी की उसकी ही बदौलत उन्हें ये देखने को भी मिला। महाराष्ट्र में शरद पवार ने साबित कर दिया है कि उनकी रणनीति के आगे दूसरे राजनीतिक दिग्गज कोई मायने नहीं रखते हैं।
शरद का डेमेज कंट्रोल आपको बता दें कि जिस दिन महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजीत पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उससे एक दिन पहले रात में अजीत एनसीपी-शिवसेना की बैठक में शामिल थे। कई दिनों से सरकार गठन को लेकर लेकर चली मैराथन बैठकों में अजीत ने अपने मतभेद भी खुलकर उजागर किए थे, लेकिन उनके इशारों को समझने में सभी नाकाम साबित हुए। लेकिन भाजपा के साथ सरकार गठित किए जाने का सबसे जोरदार झटका उन्होंने ही एनसीपी को दिया था। यही वजह थी कि पार्टी के डेमेज कंट्रोल को लेकर सबसे पहले उन्होंने ही कवायद शुरू की थी। उन्होंने ही सबसे पहले अपने विधायकों को जगह-जगह से एकत्रित किया और उन्हें एकजुट करने के लिए बार-बार जगह भी बदली। शरद पवार की ही रणनीति थी कि एनसीपी के किसी भी नेता को न तो प्रेस से बात करने की इजाजत दी गई और न ही उनसे किसी को मिलने दिया गया।
कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेनाबहरहाल, अब जबकि महाराष्ट्र में सरकार गिर चुकी है तो काफी हद क नई सरकार के गठन का भी रास्ता साफ हो गया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना अब जल्द ही सरकार के लिए अपना दावा पेश कर देगी। हालांकि इन तीनों पार्टियों में अब तक कई मुद्दों पर समझौता नहीं हुआ है। लेकिन जिस तरह से पवार ने अपनी पावर का इस्तेमाल किया है उसको देखते हुए यह जरूर कहा जा सकता है कि वह पहले से ज्यादा फायदे में अब रह सकते हैं। माना ये भी जा रहा है कि महाराष्ट्र की संभावित सरकार में शरद पवार कुछ बड़े पद अपने पक्ष में करने में सफल हो जाएं।
सरकार में कितने अहम पद अभी तक इन पार्टियों के बीच जो समझौता हुआ है उनमें पांच वर्षों के लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सीएम होंगे। हालांकि शरद पवार ने राज्य में चल रही सियासी उठापठक के बीच यहां तक कहा था कि उन्होंने उद्धव के सामने ढाई-ढाई साल के लिए दोनों पार्टियों का सीएम बनाने की मांग रखी है। उन्होंने यह भी माना था कि उनकी इस मांग पर शिवसेना राजी नहीं हुई है। बहरहाल, इसके बाद भी सरकार में कई दूसरे बड़े पद हमेशा से ही उनकी निगाह में रहे हैं। इसमें डिप्टी सीएम, गृहमंत्री, वित्तमंत्री के अलावा विधानसभा अध्यक्ष का भी पद है।
क्या होगा अजीत का भविष्य महाराष्ट्र की राजनीति में अब सबसे बड़ा सवाल अजीत पवार के राजनीतिक भविष्य को लेकर है। सबसे बड़ा सवाल तो ये ही है कि एनसीपी में उनकी हैसियत क्या होगी। एक बड़ा सवाल ये भी है कि इतने बड़े झटके के बाद क्या वो खुद भी एनसीपी में रहना चाहेंगे। जानकार मानते हैं कि इस सियासी उठापठक में यदि किसी को सबसे अधिक नुकसान हुआ है तो वो अजीत पवार ही है। महाराष्ट्र के सियासी एपिसोड के बाद उनका कद राज्य में कम होना तय है। लेकिन इन सभी के बीच महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट अभी पूरी तरह से टला नहीं है। यह कहना बेहद मुश्किल है कि कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना की सरकार मिलकर एक स्थायी सरकार दे पाएगी। इसकी वजह ये है कि इनके अपने राजनीतिक हित बेहद अलग हैं और इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षांए भी काफी बढ़ी हुई हैं।
अब नई सरकार बनने के बाद की जो कवायद है उसमें सबसे पहले इन तीनों को एकजुट होकर राज्यपाल के पास सरकार बनाने को लेकर अपना दावा पेश करना होगा। इसके बाद राज्यपाल विधानसभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाएंगे। वही सभी विधायकों को शपथ दिलाएंगे। अंतिम दौर में विधानसभा में सरकार अपना बहुमत साबित करेगी। आपको बता दें कि 21 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा के लिए मतदान हुआ था जबकि 24 अक्टूबर को मतगणना हुई थी।
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