जो कभी विवादों और अपने ऊपर उठे सवालों से घबराया नहीं वह थे ‘अज्ञेय’
अज्ञेय ने कभी अपनी रचनाओं पर उठे विवादों और सवालों की परवाह नहीं की, सिर्फ लिखते गए। उनकी रचनाओं और कविताओं में कई साहित्यकारों की झलक भी दिखाई देती है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। मुलतान जेल में अज्ञेय ने अपनी कहानी ‘अमरवल्लरी’ लिखी, जो बाद में छपने के लिए दिल्ली जेल से जैनेंद्र कुमार के हाथों प्रेमचंद को भेजी गई। प्रेमचंद ने उसे साप्ताहिक ‘जागरण’ में ‘अज्ञेय’ नाम से छापा, क्योंकि क्रांतिकारी का नाम उजागर नहीं किया जाना था। यह उस हिंदी साहित्यकार की पहली प्रकाशित कहानी थी, जो बाद में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ था।
ऐसी थी अज्ञेय की जीवन-यात्राजो पुल बनाएँगे
वे अनिवार्यतः
पीछे रह जाएँगे।
सेनाएँ हो जाएँगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगे राम;
जो निर्माता रहे
इतिहास में बन्दर कहलाएँगे
नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे
छाया प्यार के छलावे बिछाती
मुकुर से उठाई हुई
मुस्कान मुस्कुराती
ये आँखें -
नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं...
अज्ञेय नई कविता के जनक हैं। प्रत्येक युग नई परिस्थितियां, नई मान्यताएं और नए विचार लेकर आता है। उसके अपने आदर्श, सिद्धांत और मानदण्ड होते हैं जो नए साहित्य को जन्म देते हैं । बहुत समय तक जब कोई प्रवृत्ति अपना अधिकार जमाए बैठी रहती है तब उस पर प्रतिक्रिया होने लगती है, लेकिन अज्ञेय की अगुवाई में आरंभ हुई नयी कविता के साथ दूसरी तरह की परेशानी थी। दरअसल, यहां सवाल उसके नएपन को लेकर उठे।
नई कविता पर बड़ा सवाल
एक बड़ा सवाल ये भी किया कि इस कविता में ऐसा नया क्या था जो इसे दूसरी कविताओं से अलग करता था। दूसरा सवाल ये भी उठा कि यह नयी होने के साथ-साथ कविता भी थी कि नहीं? लिहाजा इसके कविता होने पर भी सवाल उठने लगा। विदित हो कि नई कविता की गद्यात्मकता को लेकर तमाम विवाद हुए, बहुत विरोध भी हुआ, परंतु अज्ञेय इन सवालों और विवादों से जरा भी नहीं डिगे। उनपर नई कविता की विषय-वस्तु को भी लेकर बहुत सारे आरोप लगाए गए। कई साहित्यकारों ने बाकायदा अज्ञेय के खिलाफ मोर्चा भी तक खोल दिया था और उन्हें समर्थन भी मिला।
सभ्यता : गति है
कि हटते जाओ अपने-आप
और छोड़ो नहीं
ऐसी कोई छाप
कि दूसरों को अस्वस्तिकर हो
जीवन से प्रेम करते ‘अज्ञेय’
अज्ञेय को कोई नया कवि कहे न कहे, उन्हें इसका हर्ष-विषाद नहीं। कोई उनकी कविता को नयी कविता माने या न माने, इसकी भी उन्हें जरा भी चिंता नहीं रही। अज्ञेय का आत्मबोध आत्मलीनता तक सीमित नहीं है। अज्ञेय का आत्मबोध व्यक्ति सत्य और व्यापक सत्य के बीच एक नया संबंध बनाता है। अज्ञेय जीवन से प्रेम करते हैं पर इस प्रेम को निस्संग विस्मय का सा भाव बताते हैं।
हिंदी कहानियों को दी नई दिशाअज्ञेय की कविता मानवता की पक्षधर है। जटिलता उसका दोष हो सकता है पर उसके पतन की वजह नहीं बन सकता है। उनकी कविता जीवन और मनुष्यता के बीच की कड़ी है। उनका लगभग समग्र काव्य ‘सदानीरा’ (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध सर्जना और सन्दर्भ तथा केंद्र और परिधि नामक ग्रंथो में संकलित हुए हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ अज्ञेय ने तारसप्तक, दूसरा सप्तक और तीसरा सप्तक जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का भी संपादन किया। इसके अलावा उन्होंने पुष्करिणी और रूपांबरा जैसे काव्य-संकलनों का भी उन्होंने संपादन किया। अज्ञेय वत्सलनिधि से प्रकाशित आधा दर्जन निबंध- संग्रहों के भी संपादक हैं। प्रख्यात साहित्यकार अज्ञेय ने यद्यपि कहानियां कम ही लिखीं और एक समय के बाद कहानी लिखना बिलकुल बंद कर दिया, परंतु हिन्दी कहानी को आधुनिकता की दिशा में एक नया और स्थायी मोड़ देने का श्रेय भी उन्हीं को प्राप्त है।
वाह रे बड़े मियां, बर्फी हिंदू और इमरती मुसलमान, वाह भई वाह
पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ।
उसी के लिए स्वर-तार चुनता हूँ।
ताना : ताना मज़बूत चाहिए : कहाँ से मिलेगा?
पर कोई है जो उसे बदल देगा,
जो उसे रसों में बोर कर रंजित करेगा, तभी तो वह खिलेगा। मैं एक गाढ़े का तार उठाता हूँ :
मैं तो मरण से बँधा हूँ; पर किसी के-और इसी तार के सहारे काल से पार पाता हूँ।