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यहां पेड़ों और जंगलों को पूजते हैं लोग, नहीं चलाते कुल्हाड़ी

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में जंगलों के संरक्षण की एक अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है।

By Arti YadavEdited By: Updated: Sun, 31 Dec 2017 02:01 PM (IST)
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यहां पेड़ों और जंगलों को पूजते हैं लोग, नहीं चलाते कुल्हाड़ी
कुल्लू, रवींद्र पंवर ब्यूरो। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में जंगलों के संरक्षण की एक अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है। देव आस्था के साथ पेडों, जंगलों को पूजने की यह प्रथा महज अंधविश्वास नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की एक कारगर युक्ति है, जिसे समझदार पूर्वजों ने सदियों पहले स्थापित कर दिया था। यह उनकी दूरदृष्टि का परिचायक भी है।

घाटी के लोग आज भी उस 'देव आज्ञा' का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते हैं। कुछ जंगलों को देव आस्था से जो़ड़ दिया गया था, जहां कोई भी व्यक्ति पेड़-पौधों पर कुल्हाड़ी या दराता नहीं चलाता है। जंगलों को उनके प्राकृतिक स्वरूप में रहने दिया जाता है। जंगल से लकड़ी या पत्ते लाना भी निषिद्ध है। यही नहीं, जंगल में कहीं आग न लग जाए, इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है और इसके लिए इन जंगलों के इर्द-गिर्द बसे गांवों का हर बाशिंदा धूम्रपान से भी परहेज करता है। फोजल क्षेत्र सहित आठ ऐसे जंगल हैं, जिनमें दराता व कुल्हाड़ी नहीं चलती।

वन विभाग भी करता है सहयोग

राज्य का वन विभाग भी गांव के लोगों का सहयोग व समर्थन करता है। इन जंगलों में वन विभाग कभी कटान नहीं करवाता। वन्य क्षेत्रों में बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है और सूचना बोर्ड लगे हुए हैं। इसके अलावा शारीरिक शुद्धि के बिना कोई भी महिला-पुरुष इन जंगलों में प्रवेश नहीं कर सकता है। स्थानीय लोग अंधविश्वासी कतई नहीं हैं, उन्हें अच्छी तरह से पता है कि इन नियमों का क्या महत्व है। वे जानते हैं कि इन जंगलों के कारण ही उनके इलाके के जलस्रोत बचे हुए हैं।

देवताओं के नाम पर जंगल लोगों ने जंगलों को देवताओं का नाम दे रखा है। इनमें लगवैली फॉरेस्ट बीट के फलाणी नारायण जंगल, पंचाली नारायण, माता फूंगणी व धारा फूंगणी जंगल मुख्य हैं। बंजार वेली में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का कुछ वन क्षेत्र, शांगड़ के साथ लगता जंगल, मणिकर्ण घाटी में पुलगा का जंगल व जीवनाला रेंज के तहत भी दो-तीन हेक्टेयर जंगल को प्राचीन समय से ही प्रतिबंधित रखा गया है।

यहां कुछ जंगलों को सदियों से पवित्र जंगल के रूप में मान्यता मिली है। इनका सम्मान किया जाता है और इन्हें हर तरह से संरक्षित किया जाता है। -कुबेर दत्त शर्मा, पुजारी

लगवैली में फूंगणी माता लोगों की मांग पर विभाग की ओर से ऐसे जंगलों के रास्तों व मंदिरों की मरम्मत भी करवाई जाती है। -नीरज चढ्डा, वन मंडलाधिकारी कुल्लू