Pervez Musharraf Policy: सामने शांति वार्ता, पीछे आतंकवाद को पनाह; रिश्तों में भरोसे को पूरी तरह कर दिया खत्म
लंबी बीमारी के बाद रविवार को दिवंगत हुए जनरल परवेज मुशर्रफ ने पहले पाक सेना के चीफ के तौर पर और बाद में बतौर राष्ट्रपति भारत को लेकर जो नीतियां अख्तियार की उसका असर आज तक भारत-पाक के बीच दिख रहा है।
By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Sun, 05 Feb 2023 06:23 PM (IST)
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। लंबी बीमारी के बाद रविवार को दिवंगत हुए जनरल परवेज मुशर्रफ ने पहले पाक सेना के चीफ के तौर पर और बाद में बतौर राष्ट्रपति भारत को लेकर जो नीतियां अख्तियार की उसका असर आज तक भारत-पाक के बीच दिख रहा है। दोनो देशों के रिश्तों में विश्वास कभी घुल नहीं पाया। भारत को लेकर उनकी नीतियां जबरदस्त दोहरेपन का शिकार रही। जब वह सामने बतौर राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री से बात कर रहे होते थे तब उनकी सेना कश्मीर में आतंकियों की नई फौज भेजने में जुटी होती थी।
मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध की साजिश को दिया था अंजाम
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा से जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में ऐतिहासिक सुधार के अवसर बने थे तब मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध की साजिश को अंजाम दिया था। बाद में जब कश्मीर मुद्दे के समाधान को लेकर आगरा में वाजपेयी सरकार के साथ एक संधि की संभावना बनी तो ऐन वक्त पर मुशर्रफ ने पैर पीछे खींच कर यह सुनिश्चित कर दिया कि दोनो देशों के बीच भरोसा पनप ना पाये।
पुरानी दिल्ली में हुआ था मुशर्रफ का जन्म
सच्चाई यह है कि मुशर्रफ शायद आखिरी ऐसे पाक राष्ट्रपति थे जो चाहते तो रिश्तों में नया मोड़ ला सकते थे लेकिन अफसोस कि पुरानी दिल्ली की गलियों में जन्मे मुशर्रफ कारगिल घुसपैठ के जनक थे और भरोसे की नींव को पूरी तरह दरका दिया। बाद में कई गोपनीय रिपोर्ट में यह बात साबित हुई कि तत्कालीन पीएम शरीफ को इसकी जानकारी नहीं थी और पाक सेना के भी बहुत ही कम अधिकारियों को इसके बारे में पता था। इसकी तैयारी तभी शुरू हो गई थी जब वाजपेयीन ने ऐतिहासिक पहल करते हुए दिल्ली से लाहौर की बस यात्रा की थी।
युद्ध में पाकिस्तान की हुई हार
लाहौर के मिनारे-पाकिस्तान जा कर वाजपेयी ने भारत की तरफ से सबसे मजबूत संदेश दिया था कि अब रिश्तों को पाटने की कोशिश की जाए। पाक के पीएम शरीफ का अंदाज भी सकारात्मक था। लेकिन पाक सेना प्रमुख जनरल मुशर्रफ ने अफगानी आतंकियों की एक बड़ी टीम के साथ पाक सेना के जवानों को कारगिल भेज कर युद्ध की शुरुआत कर दी थी। भारतीय सेना के पराक्रम से पाकिस्तान की हार हुई और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारी बेइज्जती भी सहनी पड़ी।लोकतांत्रिक सरकार को बर्खास्त कर हथियाई थी सत्ता
मुशर्रफ के खिलाफ राजनीतिक पहल की सुगबुगाहट भी सुनाई दी लेकिन शरीफ की लोकतांत्रिक सरकार को रातों रात बर्खास्त कर मुशर्रफ ने सत्ता हथिया लिया। कुछ महीनों बाद सारे लोकतांत्रिक सिद्दांतों का माखौल उड़ाते हुए उन्होंने अपने आप को नया राष्ट्रपति भी घोषित कर दिया। इसके बाद का उनके नौ वर्षों के कार्यकाल में कम से कम दो बार गंभीरता से भारत व पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता हुई। दोनो देशों के विदेश मंत्रियों और विदेश सचिवों के बीच संस्थागत तरीके से हर लंबित मुद्दे पर बात की।