Move to Jagran APP

देश के पंथनिरपेक्ष ताने-बाने को बिगाड़ने में संलिप्त था पीएफआइ, 'हिट स्क्वाड' के तौर पर गुप्त टीम का किया था गठन

साल 2006 में गठित पीएफआइ 2010 से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर था। यह संगठन कथित तौर पर मार्च 2019 से दिसंबर 2020 के दौरान नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में अहम भूमिका निभाई थी और इसके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए थे।

By AgencyEdited By: Amit SinghUpdated: Thu, 29 Sep 2022 06:01 AM (IST)
Hero Image
पीएफआइ के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा
नई दिल्ली, प्रेट्र: प्रतिबंधित पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआइ) देश के सांप्रदायिक और पंथनिरपेक्ष ताने-बाने को बिगाड़ने में शामिल था। अधिकारियों ने बुधवार को यह बात कही। पीएफआइ और इसके सदस्यों की गतिविधियों की निगरानी करने वाले अधिकारियों के मुताबिक, यह संगठन अपनी कट्टरपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाकर भारत में 'इस्लामी प्रभुत्व' स्थापित करने की मंशा के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा था। इसके अलावा पीएफआइ हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को निशाना बना रहा था।

हिंदू संगठनों के खिलाफ तैयार की टीम

अधिकारियों के मुताबिक, उसने 'हिट स्क्वाड' की तरह एक गुप्त 'सर्विस टीम' का गठन किया गया था, जिसका मुख्य कार्य पीएफआइ के वरिष्ठ नेताओं को सुरक्षा प्रदान करना और अपने क्षेत्रों में हिंदूवादी नेताओं की निगरानी कर उनके खिलाफ कार्रवाई की योजना बनाना था। उन्होंने आरोप लगाया कि पीएफआइ गुप्त रूप से सैन्य अभ्यास जैसे प्रशिक्षण अभ्यास आयोजित करता है, जहां प्रतिभागियों को कुछ धार्मिक समूहों के खिलाफ बल और हिंसा का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें इस्लाम के दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है। अधिकारियों ने आरोप लगाया कि अपने गठन के बाद से ही पीएफआइ हिंदू संगठनों और उसके नेताओं के खिलाफ रहा है और पीएफआइ के पास एक गुप्त हमलावर दस्ता है, जो हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं और कथित रूप से ईशनिंदा में शामिल लोगों को निशाना बनाकर की जाने वाली हत्याओं में शामिल है। पीएफआइ पर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार में शामिल होने और भारत में मुसलमानों को सताए जाने की कहानी गढ़ने का आरोप है।

एक दशक से सरकार के रडार पर थी पीएफआइ

साल 2006 में गठित यह संगठन 2010 से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर था, जब केरल में प्रोफेसर जोसेफ का हाथ काटने की घटना हुई थी। इस मामले में दोषी ठहराए गए कई आरोपित संगठन के सदस्य थे। इसने कथित तौर पर मार्च 2019 से दिसंबर, 2020 के दौरान नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन आयोजित करने में अहम भूमिका निभाई थी और इसके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए थे। दिल्ली दंगे के मामले में भी संगठन की भूमिका को लेकर प्रवर्तन निदेशालय ने जांच की थी। 26 जुलाई को कर्नाटक के बेल्लारी शहर में हुई प्रवीण नेट्टारू की हत्या उन मामलों में से एक थी, जिसने पीएफआइ के हिंसक चरित्र को उजागर किया। नेट्टारू भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्य थे।

विभिन्न माध्यमों से जुटा रहे धन

सरकार ने यह भी दावा है कि पीएफआइ के पदाधिकारी और कैडर अन्य लोगों के साथ मिलकर साजिश कर रहे हैं और एक अच्छी तरह तैयार आपराधिक साजिश के तहत बैंकिंग चैनलों, हवाला और दान के माध्यम से भारत और विदेशों से धन जुटा रहे हैं और फिर स्थानांतरित कर रहे हैं।

केंद्र स्थापित गठित करेगा न्यायाधिकरण

केंद्र 30 दिनों के भीतर एक न्यायाधिकरण भी गठित करेगा जो यह तय करेगा कि पीएफआइ को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं। पीएफआइ प्रतिबंध के खिलाफ अपना बचाव भी कर सकता है।

केंद्र ने राज्यों को भी दिया अधिकार

केंद्र ने एक अन्य अधिसूचना जारी कर राज्य सरकारों को पीएफआइ से जुड़े समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने और उनके खिलाफ संभावित स्थानों की जब्त करने व उनके सदस्यों की गिरफ्तारी करने का अधिकार दिया है।

डिस्क्लेमर: इस समाचार को भारत सरकार के आदेश के बाद पोर्टल से हटा दिया गया है। आपको हुई असुविधा के लिए खेद है।