क्या है सेकुलर सिविल कोड, जिसका PM मोदी ने किया जिक्र, लागू होने पर देश में क्या-क्या बदलेगा?
संविधान का अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करता है। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर इसकी चर्चा छेड़ी है लेकिन उनके भाषण में खास बात यह थी कि उन्होंने उसे नया शब्द दिया कहा देश की मांग सेकुलर सिविल कोड की है। आइए जानते हैं इससे क्या-क्या बदलेगा।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। संविधान का अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करता है। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर इसकी चर्चा छेड़ी है, लेकिन उनके भाषण में खास बात यह थी कि उन्होंने उसे नया शब्द दिया, कहा देश की मांग सेकुलर सिविल कोड की है।
यह भी पढ़ें: PM मोदी का एलान: अगले पांच वर्षों में देश में मेडिकल की 75 हजार नई सीटों का होगा सृजन, नहीं जाना पड़ेगा विदेश
धर्म के आधार पर भेदभाव है
प्रधानमंत्री का इशारा विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ में शादी, तलाक, गुजाराभत्ता, गोद लेना व संरक्षक तथा उत्तराधिकार के नियमों को लेकर भिन्नता की ओर था क्योंकि इनमें सिर्फ धर्म के आधार पर भेदभाव है। जबकि संविधान के अनुच्छेद 44 का मर्म यही है कि कानून सभी नागरिकों के लिए समान होना चाहिए।समान नागरिक संहिता लागू होगी तो क्या होगा?
समान नागरिक संहिता लागू होगी तो शादी, तलाक, भरणपोषण, गोद लेना व संरक्षक और उत्तराधिकार व विरासत के नियम कानून सभी धर्मों के लिए समान हो जाएंगे। पर्सनल लॉ देखे जाएं तो हिंदू महिला के अधिकार अलग हैं और मुस्लिम महिला के अधिकार अलग। दोनों हर तरह से समान हैं लेकिन धर्म अलग होने के कारण संपत्ति पर, बच्चा गोद लेने संरक्षक बनने के अधिकार यहां तक कि शादी के नियम और तलाक व गुजारा भत्ता के अधिकार भी दोनों के अलग अलग हैं।
समानता लाने की जरूरत
महिलाओं के इन अधिकारों में ज्यादा असमानता मुस्लिम और हिन्दू पर्सनल लॉ में देखने को मिलती है लेकिन ईसाइयों के भी कुछ कानून ऐसे हैं जिनमें भिन्नता है और समानता लाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कर चुका है लेकिन स्पष्ट निर्देश कभी नहीं दिया।शादी योग्य आयु भी अलग-अलग
विभिन्न धर्मों में नियमों में असमानता देखी जाए तो लड़की-लड़के की शादी की आयु अलग है। अभी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख के लिए 18 और 21 वर्ष आयु है जबकि शरीयत एक्ट में लड़की के मासिक धर्म शुरू होने पर शादी योग्य माना जाता है। तलाक के आधार और प्रक्रिया में भी हिन्दू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में अंतर है।