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क्या है सेकुलर सिविल कोड, जिसका PM मोदी ने किया जिक्र, लागू होने पर देश में क्या-क्या बदलेगा?

संविधान का अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करता है। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर इसकी चर्चा छेड़ी है लेकिन उनके भाषण में खास बात यह थी कि उन्होंने उसे नया शब्द दिया कहा देश की मांग सेकुलर सिविल कोड की है। आइए जानते हैं इससे क्या-क्या बदलेगा।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 15 Aug 2024 09:21 PM (IST)
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Independence Day 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फोटो- एएनआई)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। संविधान का अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करता है। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर इसकी चर्चा छेड़ी है, लेकिन उनके भाषण में खास बात यह थी कि उन्होंने उसे नया शब्द दिया, कहा देश की मांग सेकुलर सिविल कोड की है।

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धर्म के आधार पर भेदभाव है

प्रधानमंत्री का इशारा विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ में शादी, तलाक, गुजाराभत्ता, गोद लेना व संरक्षक तथा उत्तराधिकार के नियमों को लेकर भिन्नता की ओर था क्योंकि इनमें सिर्फ धर्म के आधार पर भेदभाव है। जबकि संविधान के अनुच्छेद 44 का मर्म यही है कि कानून सभी नागरिकों के लिए समान होना चाहिए।

समान नागरिक संहिता लागू होगी तो क्या होगा?

समान नागरिक संहिता लागू होगी तो शादी, तलाक, भरणपोषण, गोद लेना व संरक्षक और उत्तराधिकार व विरासत के नियम कानून सभी धर्मों के लिए समान हो जाएंगे। पर्सनल लॉ देखे जाएं तो हिंदू महिला के अधिकार अलग हैं और मुस्लिम महिला के अधिकार अलग। दोनों हर तरह से समान हैं लेकिन धर्म अलग होने के कारण संपत्ति पर, बच्चा गोद लेने संरक्षक बनने के अधिकार यहां तक कि शादी के नियम और तलाक व गुजारा भत्ता के अधिकार भी दोनों के अलग अलग हैं।

समानता लाने की जरूरत

महिलाओं के इन अधिकारों में ज्यादा असमानता मुस्लिम और हिन्दू पर्सनल लॉ में देखने को मिलती है लेकिन ईसाइयों के भी कुछ कानून ऐसे हैं जिनमें भिन्नता है और समानता लाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कर चुका है लेकिन स्पष्ट निर्देश कभी नहीं दिया।

शादी योग्य आयु भी अलग-अलग

विभिन्न धर्मों में नियमों में असमानता देखी जाए तो लड़की-लड़के की शादी की आयु अलग है। अभी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख के लिए 18 और 21 वर्ष आयु है जबकि शरीयत एक्ट में लड़की के मासिक धर्म शुरू होने पर शादी योग्य माना जाता है। तलाक के आधार और प्रक्रिया में भी हिन्दू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में अंतर है।

बच्चे के संरक्षण के नियम भी अलग

तीन तलाक खत्म होने के बावजूद मुस्लिमों में तलाक ए हसन, तलाक ए अहसन तलाक ए बाइन और तलाक ए किनाया आज भी लागू है। गुजाराभत्ता व बच्चा गोद लेना और बच्चे के संरक्षण के नियम भी सभी समान नहीं हैं। मुसलमानों में बच्चा गोद नहीं लिया जा सकता। वसीयत का भी अधिकार नहीं है।

तीन तलाक अवैध घोषित हो चुका

समान नागरिक संहिता का लक्ष्य पाना अब बहुत कठिन नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से आए विभिन्न फैसले और नये प्रस्तावित कानूनों को देखा जाए तो इसके कई पहलू पूरे हो चुके हैं। जैसे सभी धर्मों के लिए विवाह की आयु समान करने का विधेयक संसदीय समिति के समक्ष लंबित है। तीन तलाक सुप्रीम कोर्ट से अवैध घोषित हो चुका है।

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून बना

शादी, उत्तराधिकार, संपत्ति आदि का मसला संविधान की समवर्ती सूची में आता है इसलिए इस पर केंद्र के अलावा राज्य भी कानून बना सकते हैं। इसी के तहत उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता का कानून बनाया है राष्ट्रपति से मंजूरी मिल चुकी है अभी उसकी नियमावली तैयार हो रही है। नियमावली अधिसूचित होते ही कानून लागू हो जाएगा। आजादी के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा जहां समान नागरिक संहिता लागू होगी। गोवा में आजादी के पहले से समान नागरिक संहिता लागू है। 

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