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मोदी सरकार और विपक्ष के बीच फिर होगा दिलचस्प मुकाबला, इन समितियों पर टिकी I.N.D.I.A की निगाहें

केंद्र सरकार और विपक्षी गठबंधनों के बीच एक बार फिर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा। दरअसल 24 संसदीय स्थाई समितियों के गठन की कवायद शुरू हो गई है। उधर विपक्षी दलों ने भी सियासी हलचल बढ़ा दी है। इस बार विदेश वित्त और रक्षा संबंधी अहम समितियों पर विपक्ष अपना जोर लगाएगा। कांग्रेस का कहना है कि इस बार सत्तापक्ष मनमर्जी नहीं कर पाएगा।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Published: Fri, 05 Jul 2024 09:08 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jul 2024 10:00 PM (IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी। (फाइल फोटो)

संजय मिश्र, जागरण, नई दिल्ली। नई लोकसभा के सांसदों की शपथ के बाद अब संसद की सभी प्रमुख स्थाई समितियों के नए सिरे से गठन की सरगर्मी शुरू हो गई है। 18वीं लोकसभा में संख्या बल के इजाफे का विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन को संसदीय स्थाई समितियों में फायदा मिलेगा। संसदीय परंपरानुसार सबसे महत्वपूर्ण लोक-लेखा समिति (पीएसी) की अध्यक्षता मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को मिलनी तय है।

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इन स्थाई समितियों पर विपक्ष की निगाहें

वहीं विपक्षी दलों की रणनीति इस बार विदेश, रक्षा और वित्त मंत्रालय से संबंधित अहम संसदीय स्थाई समितियों की कमान अपने हाथ में लेने की है। पिछली लोकसभा में सत्ताधारी भाजपा ने इन तीनों समितियों की अध्यक्षता अपने पास ही रखी थी। कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक जैसे विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों को भी इसका फायदा मिलेगा और इन दलों को कम से कम एक-एक स्थाई समितियों की अध्यक्षता मिलनी तय है।

जल्द नाम मांगेंगे लोकसभा अध्यक्ष

संसदीय स्थाई समितियों के गठन की सरगर्मी को लेकर लोकसभा स्पीकर की ओर से अलग-अलग समितियों के लिए जल्द ही नाम मांगे जाएंगे और इसके मद्देनजर ही आईएनडीआईए में शामिल सभी दलों के नेताओं के बीच अनौपचारिक मंत्रणाओं का दौर शुरू हो गया है। विपक्षी सूत्रों ने कहा कि जहां तक विपक्षी सदस्यों की समितियों में भागीदारी की बात है तो आनुपातिक भागीदारी का फार्मूला है जिसकी वजह से इसमें कोई दिक्कत नहीं आएगी।

पिछली बार विपक्ष को नहीं मिली इन समितियों की अध्यक्षता

सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच रस्साकशी की आशंका केवल वित्त, रक्षा, विदेश और सार्वजनिक विभागों से संबंधित समितियों की अध्यक्षता को लेकर ही है। भाजपा सरकार के पिछले दोनों कार्यकाल में वित्त और विदेश मंत्रालय की स्थाई समितियों की अध्यक्षता विपक्ष को नहीं मिली थी।

मनमर्जी नहीं कर पाएगा सत्तापक्ष: कांग्रेस नेता

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इन दोनों समितियों को अध्यक्षता मुख्य विपक्षी दल को देने की परंपरा रही थी जिसे पिछली बार तोड़ा गया और इस बार हम इसे फिर से बहाल करने के पक्ष में है। उनके अनुसार मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के दोनों कार्यकाल के दौरान विभागों संबंधी समिति की अध्यक्षता विपक्ष को दी गई थी। इसलिए इस बार विपक्ष की सदन में संख्या को देखते हुए सत्तापक्ष पिछली लोकसभा की तरह अपनी मनमर्जी नहीं कर पाएगा।

किसे कितनी समितियों की मिल सकती कमान

मंत्रालयों-विभागों से संबंधित संसद की 24 स्थाई समितियां हैं जिनमें 16 लोकसभा तथा आठ राज्य की हैं। संख्या बल के आधार पर सत्तापक्ष को 14 तो विपक्ष को 10 समितियों की कमान मिलने की संभावनाएं हैं। वित्त, विदेश, रक्षा के साथ पीएसी लोकसभा की है जिसमें इस सदन के 15 सांसद तो राज्यसभा के सात सांसद सदस्य होते हैं।

पांच साल लोक-लेखा समिति के अध्यक्ष रहे अधीर रंजन

वहीं प्राक्कलन समिति (इस्टिमेट कमिटी) के सभी 30 सदस्य लोकसभा से होते हैं और इसकी अध्यक्षता सत्ताधारी दल के पास होती है। जबकि संसद में 1968 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल में पीएसी बनी और तभी से इसकी अध्यक्षता विपक्ष को देने की परंपरा रही है। पिछली लोकसभा में कांग्रेस को आधिकारिक विपक्ष का दर्जा हासिल नहीं था मगर सबसे बड़े विपक्षी पार्टी के नेता के रूप में उसके नेता अधीर रंजन चौधरी ने पांच साल तक लोक-लेखा समिति की अध्यक्षता की।

पीवी नरसिंह राव की सरकार के दौरान भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी भी पांच साल तक पीएसी के अध्यक्ष रहे थे। गृह मंत्रालय, शिक्षा, कानून व न्याय, सड़क परिवहन, पर्यटन व संस्कृति तथा स्वास्थ्य मंत्रालय से संबंधित स्थाई समितियां राज्यसभा की हैं मगर इनमें भी दोनों सदनों की संख्या के हिसाब आनुपातिक भागादारी होती है जिसमें लोकसभा के 15 और राज्यसभा के सात सदस्य शामिल हैं। 17वीं लोकसभा के कार्यकाल में गृह मंत्रालय की संसदीय समिति की अध्यक्षता राज्यसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा को मिली थी।

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