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देश में कॉटन के उत्पादन में गिरावट की आशंका, कपड़ों की कीमतों में हो सकती है बढ़ोतरी

कॉटन के वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 फीसद है और भारत कॉटन का प्रमुख निर्यातक भी है। पिछले सीजन में 42 लाख बेल्स कॉटन का उत्पादन किया गया। पिछले सीजन में 71 लाख बेल्स का पुराना स्टॉक भी था।

By Jagran NewsEdited By: Amit SinghPublished: Wed, 19 Apr 2023 08:17 PM (IST)Updated: Wed, 19 Apr 2023 08:17 PM (IST)
देश में कॉटन के उत्पादन में गिरावट की आशंका

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कॉटन के चालू सीजन (अक्टूबर-सितंबर) 2022-23 में पिछले कॉटन सीजन के मुकाबले 10 लाख बेल्स (एक बेल 170 किलोग्राम) तक कम उत्पादन की आशंका है। अगर यह अनुमान सही रहा तो गारमेंट्स के दाम में भी अगले तीन-चार महीनों में बढ़ोतरी हो सकती है। कॉटन का उत्पादन कम होने से कॉटन के दाम बढ़ेंगे जिससे यार्न, फैबरिक भी महंगे होंगे और इससे गारमेंट की उत्पादन लागत बढ़ेगी।

बढ़ सकती हैं कॉटन की कीमतें

भारत में कॉटन की कीमत 62,000-63,000 प्रति कैंडी (एक कैंडी 356 किलोग्राम) चल रही है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक इस साल जून-जुलाई तक कॉटन की कीमत 70,000-75,000 रुपए प्रति कैंडी तक जा सकती है। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज (सिटी) के पूर्व अध्यक्ष संजय जैन के मुताबिक कॉटन उत्पादन में कमी की आशंका सही साबित हुई तो निश्चित रूप से गारमेंट की कीमतों में भी बढ़ोतरी होगी। हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता है यह अनुमान कहां तक सही साबित होगा।

मांग में कमी से गारमेंट के दाम नहीं बढ़े

फिलहाल मांग में कमी से गारमेंट के दाम नहीं बढ़ रहे हैं। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुमान के मुताबिक चालू कॉटन सीजन में कॉटन का उत्पादन 303 लाख बेल्स तक रह सकता है। पिछले सीजन में कॉटन का उत्पादन 307 लाख बेल्स होने का अनुमान लगाया गया था जो उससे पूर्व के सीजन से 10 फीसद से अधिक कम था। ऐसे में पिछले दो सीजन से कॉटन का उत्पादन कम हो रहा है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक चालू सीजन में कॉटन की घरेलू खपत 311 लाख बेल्स तक रह सकती है।

वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 फीसद

कॉटन के वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 फीसद है और भारत कॉटन का प्रमुख निर्यातक भी है। पिछले सीजन में 42 लाख बेल्स कॉटन का उत्पादन किया गया। पिछले सीजन में 71 लाख बेल्स का पुराना स्टॉक भी था। चालू सीजन में उत्पादन कम होने और स्टॉक में कमी की आशंका से कॉटन की कीमत पहले से ही तेज है। सरकार ने कॉटन के आयात पर 11 फीसद का शुल्क लगा रखा है, इसलिए कॉटन का आयात करना भी मिलर्स को महंगा पड़ रहा है। यार्न बनाने वाली मिलों की तरफ से कॉटन आयात पर शुल्क हटाने की मांग की जा रही है।


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