बांध मांगे पानी और जनता मांगे बिजली, मध्य प्रदेश में इन दिनों बिजली उत्पादन का संकट
Power Crisis In MP बिजली कटौती का मुद्दा प्रदेश में गर्म है। नगरीय निकाय और विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच कांग्रेस इस पर आक्रामक है तो भाजपा सरकार किसी तरह इस संकट का हल निकालने में जुटी है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 03 Sep 2021 10:43 AM (IST)
संजय मिश्रा, भोपाल। Power Crisis In MP बिजली उत्पादन में एक तरह से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे मध्य प्रदेश में इन दिनों बिजली का संकट होने लगा है। पिछले कुछ वर्षो से प्रदेश में यह दिक्कत नहीं थी। शहरी क्षेत्र हों या ग्रामीण निर्बाध ढंग से बिजली की आपूर्ति की जा रही थी। अगस्त के आखिरी सप्ताह में ग्रामीण क्षेत्रों में अचानक बिजली कटौती होने से लोगों का ध्यान इस संकट की ओर गया है। निर्बाध विद्युत आपूर्ति में रहने के अभ्यस्त लोगों के लिए एकाध घंटे भी कटौती सहन करना मुश्किल होता है। बिना पूर्व सूचना दिए हुई बिजली कटौती ने विपक्ष को मुद्दा थमा दिया।
आम जन के हक में खड़ा होने के दावे के साथ विपक्षी कांग्रेस ने विरोध का झंडा उठा लिया। शहर से लेकर गांव तक बिजली कटौती के खिलाफ आवाज मुखर होने लगी। भाजपा के कई विधायकों ने भी जनता के समर्थन में बयान जारी कर बिजली विभाग की मुश्किल बढ़ा दी। आखिरकार मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा। उनके सख्त निर्देश के बाद अधिकारियों ने अब बिजली की व्यवस्था दुरुस्त करने की कवायद तेज कर दी है। बांध में पानी की कमी और कोयले के संकट के साथ ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के अटपटे बयानों ने भी बिजली संकट को लेकर विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया। बिजली गुल हो रही थी, लेकिन ऊर्जा मंत्री कहते रहे कि बिजली का कोई संकट नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में भी यह मुद्दा उठा। कई मंत्रियों ने कटौती होने की बात कही और समाधान निकालने पर जोर दिया।
आखिरकार मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को संकट का हल निकालने के लिए तत्काल उपाय करने के निर्देश दिए। उन्होंने साफ कह दिया कि कटौती रोकने के लिए चाहे जो इंतजाम करना पड़े वे करें। प्रदेश में हाइड्र, थर्मल और सौर ऊर्जा बिजली उत्पादन के मुख्य स्रोत हैं। इनसे 10 हजार मेगावाट से कुछ कम का उत्पादन होता रहा है जबकि लगभग 11 हजार से अधिक मेगावाट बिजली की मांग औसतन रही है। पावर परचेज एग्रीमेंट के तहत निजी क्षेत्रों से भी बिजली ली जाती है। सेंट्रल ग्रिड से भी बिजली लेने की व्यवस्था है। हाल के दिनों में दिक्कत यह हुई कि कम वर्षा होने के कारण हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से संबंधित बांध करीब 30 फीसद ही भर पाए हैं। जबलपुर से खंडवा तक के क्षेत्रों में बारिश नहीं होने से बांधों में पर्याप्त पानी ही नहीं है जिससे बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है।
विंध्याचल ताप विद्युत गृह से 1150 से 1200 मेगावाट बिजली मिलती है, लेकिन यहां से करीब 550 मेगावाट बिजली ही मिली। बिजली संकट की एक बड़ी वजह सिंगाजी, सारणी, बिरसिंहपुर, चचाई जैसे पावर प्लांट में बिजली उत्पादन प्रभावित होना है। एक दलील यह भी दी गई कि इस मौसम में बिजली की मांग अधिक नहीं होने के कारण उपकरणों का रखरखाव किया जाता है। इससे बिजली आपूर्ति प्रभावित होती है। प्रदेश के कई क्षेत्रों में अभी रखरखाव का काम किया जा रहा है और इसी दौरान आपूर्ति कम होने से ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली संकट गहरा गया है।
फिलहाल इस संकट का हल होता नहीं दिखाई दे रहा है, क्योंकि नर्मदा पट्टी में अच्छी बारिश जरूरी है। बांध पानी से नहीं भरेंगे तो बिजली उत्पादन प्रभावित रहेगा ही। इस समय प्रदेश में हाइड्रो, थर्मल और सौर ऊर्जा पावर प्लांट से कुल क्षमता का आधा उत्पादन भी नहीं हो पा रहा है। सेंट्रल ग्रिड से तो बिजली मिल रही है, लेकिन निजी क्षेत्र से आपूर्ति नहीं हो पा रही है, जबकि निजी क्षेत्रों से बिजली लेने के लिए करोड़ों रुपये का करार हुआ है। कोल इंडिया का 1150 करोड़ रुपये का बकाया होने से पर्याप्त मात्र में कोयला नहीं मिल पा रहा है। इससे थर्मल पावर प्लांटों से उत्पादन प्रभावित हुआ है। बिजली संयंत्रों के लिए प्रतिदिन 60 से 70 हजार टन कोयला की आवश्यकता है, जबकि इसके बदले लगभग 25 हजार टन कोयला ही मिल पा रहा है। इससे संयंत्र पूरी क्षमता से नहीं चल रहे हैं।
थर्मल (ताप विद्युत) पावर प्लांट की उत्पादन क्षमता 5400 मेगावाट है, लेकिन इन दिनों उत्पादन दो हजार मेगावाट के आसपास हो पा रहा है। हाइड्रो पावर प्लांट से 2435 मेगावाट क्षमता के सापेक्ष करीब 300 मेगावाट का उत्पादन हो रहा है। रीवा अल्ट्रा सोलर प्लांट से 260 मेगावाट के आसपास बिजली मिल रही है। प्रदेश में बिजली के मामले में एक बड़ा बोझ पावर पर्चेज एग्रीमेंट (पीपीए) है। इस एग्रीमेंट के तहत सरकार ने निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों से अनुबंध कर रखा है कि उनसे निश्चित मेगावाट तक बिजली खरीदी जाएगी। निश्चित मात्र में बिजली नहीं खरीदने पर भी एक निश्चित राशि बिजली कंपनियों को दी जाएगी।
यह करार 21 हजार मेगावाट बिजली के लिए वर्ष 2025 तक का है। जिन कंपनियों से सरकार ने यह करार किया है कि उनसे बिजली नहीं खरीदने पर भी हर साल 4200 करोड़ रुपये फिक्स चार्ज के रूप में देने पड़ते हैं। यदि सरकार ने करार वाली निजी कंपनियों से बिजली नहीं खरीदी तो उन्हें डेढ़ रुपये प्रति यूनिट की दर से फिक्स चार्ज का भुगतान करना पड़ता है। बहरहाल, बिजली कटौती का मुद्दा प्रदेश में गर्म है। नगरीय निकाय और विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच कांग्रेस इस पर आक्रामक है तो भाजपा सरकार किसी तरह इस संकट का हल निकालने में जुटी है।[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]