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Uniform Civil Code: पिछले विधि आयोग ने भी परोक्ष रूप से समान नागरिक संहिता का ही दिया था सुझाव

कांग्रेस पिछले यानी 21वें विधि आयोग के परामर्श पत्र को आधार बनाकर यह तर्क रख रही है कि उसने समान नागरिक संहिता को गैर जरूरी बताया था। पर सच्चाई यह है कि 21वें आयोग ने भी समान कानून की बात की थी और परिवार विधियों के जरिए इसका रास्ता बताया था। 21वें विधि आयोग ने लोगों की राय मंगाई विचार विमर्श किया

By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Wed, 28 Jun 2023 10:07 PM (IST)
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पिछले विधि आयोग ने भी परोक्ष रूप से समान नागरिक संहिता का ही दिया था सुझाव
माला दीक्षित, नई दिल्ली। समान नागरिक संहिता पर एक बार फिर बहस तेज है। एक ओर 22वें विधि आयोग ने फिर से इस दिशा में काम शुरू किया है और आम जनता से राय मंगाई है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री की बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए इस बारे में किया गए इशारे ने समान नागरिक संहिता की बहस को फिर गर्मा दिया है।

इसके साथ ही कांग्रेस पिछले यानी 21वें विधि आयोग के परामर्श पत्र को आधार बनाकर यह तर्क रख रही है कि उसने समान नागरिक संहिता को गैर जरूरी बताया था। पर सच्चाई यह है कि 21वें आयोग ने भी समान कानून की बात की थी और परिवार विधियों के जरिए इसका रास्ता बताया था।

21वें विधि आयोग ने लोगों की राय मंगाई विचार विमर्श किया और उसके बाद समान नागरिक संहिता पर कोई रिपोर्ट देने के बजाए विभिन्न परिवार कानूनों जिसमें सेक्युलर लॉ के अलावा विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ में संशोधन करके कानूनी अधिकारों में बराबरी लाने की बात कही थी।

परामर्श पत्र में क्या कुछ कहा?

उस परामर्श पत्र में शादी, तलाक, भरण पोषण, उत्तराधिकार, गोद लेना आदि से संबंधित कानूनों में बदलाव के जो सुझाव दिये गए हैं वे वास्तव में समान नागरिक संहिता की ओर ही ले जाते हैं, क्योंकि समान नागरिक संहिता में भी इन्ही विषयों में समान कानून लागू करने की बात हो रही है।

जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग ने जस्टिस चौहान का कार्यकाल समाप्त होने के आखिरी दिन 31 अगस्त, 2018 को परिवार कानूनों में संशोधन के सुझाव वाले परामर्श पत्र जारी किये थे।

उस परामर्श पत्र के पैरा दो में आयोग ने कहा था,

प्रचलित पर्सनल ला (निजी विधियों) में कई पहलू से महिला वंचित है। आयोग का मानना है कि यह भेदभाव है न कि अंतर, जो असमानता की जड़ है। इस असमानता से निपटने के लिए आयोग ने मौजूदा परिवार कानूनों में संशोधन का सुझाव दिया है और साथ ही पर्सनल ला के भी कुछ पहलुओं को संहिताबद्ध करने का सुझाव दिया है ताकि इन पर्सनल लॉ को लागू करने में व्याख्या में अस्पष्टता को सीमित किया जा सके।

विभिन्न परिवार कानूनों और पर्सनल लॉ में कई तरह के भेदभाव और असमानताएं है जिन्हें संशोधन और पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध करके ठीक किये जाने की जरूरत है ताकि संविधान के भाग तीन में दिये गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो और सभी के कानूनी अधिकारों में समानता और बराबरी कायम हो।

यही उद्देश्य समान नागरिक संहिता का भी है जिसकी बात संविधान के अनुच्छेद 44 में की गई है। सुप्रीम कोर्ट भी अपने कई फैसलों में इसे लागू करने की बात कर चुका है।

शाहबानों के चर्चित केस में कोर्ट ने कहा था कि ''हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 मृतप्राय होकर रह गया है। नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना राज्य का दायित्व है और नि:संदेह इसमें ऐसा करने की विधायी क्षमता है। अगर संविधान का कोई मतलब है तो एक शुरूआत करनी होगी।''

समान नागरिक संहिता में कौन-कौन से विषय आते हैं?

समान नागरिक संहिता में जो विषय आते हैं उनमें शादी, तलाक, भरण पोषण, उत्तराधिकार, गोदलेना, विरासत आदि विषय ही आते हैं और यही विषय परिवार कानूनों के भी हैं। परिवार कानून के ये विषय राज्य सूची में भी आते हैं इसलिए कुछ राज्य आजकल समान नागरिक संहिता तैयार करने में लगे हैं। अब अगर 21वें विधि आयोग के परामर्श पत्र को देखा जाए तो उसमें भी इन्हीं विषयों से जुड़े कानूनों और पर्सनल ला में संशोधन और संहिताबद्ध करने की बात की गई है।

परामर्श पत्र में मुसलमानों में प्रचलित पुरुषों के बहुविवाह की चर्चा की गई है और इसे इसलिए गलत माना गया है क्योंकि यह अधिकार सिर्फ पुरुषों को है।

ऐसे में आयोग ने सुझाव दिया था कि निकाहनामा में ही यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि बहु विवाह एक अपराध है और आइपीसी की धारा 494 (बहु विवाह निषेध और दंडनीय अपराध) सभी समुदायों पर लागू होगी। हालांकि, इस संबंध में कुछ मामले कोर्ट में लंबित थे इसलिए आयोग ने अपनी यह अनुशंसा सुरक्षित रख ली थी।

परामर्श पत्र में कुछ विषमताओं का भी जिक्र

इसके अलावा परामर्श पत्र में सेक्युलर लॉ जैसे स्पेशल मैरिज एक्ट आदि में भी कुछ विषमताओं का जिक्र किया है और उसे ठीक करने के लिए कानून में संशोधन के सुझाव दिये हैं जिसमें 30 दिन के नोटिस पीरियड पर भी चर्चा की गई है। 182 पेज के परामर्श पत्र में सभी धर्मों के पर्सनल ला और परिवार कानूनों पर बहुत विस्तृत चर्चा की गई है जिसे समग्रता से देखा जाए तो सभी के कानूनी अधिकारों की समानता का एक खाका तैयार होता है।

हालांकि, अब समान नागरिक संहिता के मामले पर 22वें विधि आयोग ने विचार शुरू किया है और उसने आम जनता और धार्मिक संगठनों की राय मंगाई है उम्मीद है कि विधि आयोग जल्दी ही इस संबंध में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा।