बरकरार है प्रिंट मीडिया की धमक
एबीसी मानती है कि डिजिटल मीडिया का दायरा बढ़ रहा है। समाचारपत्रों के इंटरनेट संस्करण भी लोकप्रिय हो रहे हैं।
By Ravindra Pratap SingEdited By: Updated: Mon, 08 May 2017 11:03 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, मुंबई। टेलीविजन और डिजिटल मीडिया की बढ़ती चकाचौंध का प्रिंट मीडिया की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। पिछले दस वर्षो में यह 4.87 फीसद की दर से बढ़ा है। उसमें भी 'दैनिक जागरण' 39,21,267 प्रतियों की औसत दैनिक बिक्री के साथ प्रिंट मीडिया का सरताज बना हुआ है।
ऑडिट ब्यूरो ऑफ सकुर्लेशन (एबीसी) की ओर से सोमवार को मुंबई में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में बताया गया कि 2006 में भारत में विभिन्न भाषाओं के सभी अखबारों की दैनिक बिक्री 3.91 करोड़ थी, जो 2016 में बढ़कर 6.28 करोड़ यानी 2.37 करोड़ अधिक हो गई। यही नहीं, प्रकाशन केंद्रों की संख्या में भी 3.28 फीसद का इजाफा हुआ है। इस दौरान इस प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में करीब 5000 करोड़ का निवेश हुआ है। आने वाले वर्षो में भी बड़ा निवेश होने की संभावना है।यह भी पढ़ें: महिलाओं के 'खतने' की प्रथा पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
अखबारों की बिक्री में सर्वाधिक इजाफा देश के उत्तरी क्षेत्र में दर्ज किया गया है। यह 7.83 फीसद है। जबकि सबसे कम 2.63 फीसद की बढ़त पूर्वी क्षेत्र में देखी गई है। जाहिर है, उत्तर भारत में हिंदी समाचारपत्रों व पत्रिकाओं का ही बोल-बाला है। इसलिए 8.76 फीसद के साथ सर्वाधिक बढ़त भी हिंदी में ही दर्ज की गई है। इसमें भी प्रसार संख्या के अनुसार शीर्ष 10 समाचार पत्रों में चार हिंदी के ही हैं। लंबे समय से तीसरे स्थान पर चल रहे एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक को हटा दिया जाए तो शीर्ष पांच में से चार समाचारपत्र हिंदी के हैं, जिनमें दैनिक जागरण शीर्ष पर है।यह भी पढ़ें: मंत्रालय ने कहा, मातृत्व लाभ उन्हें भी मिलेगा जो अवकाश पर हैं
एबीसी मानती है कि डिजिटल मीडिया का दायरा बढ़ रहा है। समाचारपत्रों के इंटरनेट संस्करण भी लोकप्रिय हो रहे हैं। एबीसी के अनुसार, सुबह समाचारपत्रों के जरिये एक बार खबरें परोसने के बाद दिन में ताजी खबरें पाठकों तक पहुंचाने के लिए डिजिटल मीडिया एक अच्छा माध्यम बनकर उभरा है। लेकिन इससे प्रिंट मीडिया के लिए निकट भविष्य में कोई खतरा नजर नहीं आता।एबीसी का मानना है कि डिजिटल मीडिया के क्षेत्रों में काम कर रहे बड़े मीडिया घरानों के साथ-साथ अन्य माध्यमों को नियंत्रित करने के लिए एबीसी की तर्ज पर एक संस्था की जरूरत है। इस बारे में सरकार भी विचार कर रही है और एबीसी भी। दो-तीन माह में इसके परिणाम सामने आ सकते हैं।