यूएई में कॉप-28 (पर्यावरण बदलाव पर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आयोजित बैठक) में भारत अपनी मंशा भी जताने जा रहा है। लेकिन समस्या यह है कि नये ताप बिजली संयंत्र लगाने को लेकर अधिकांश राज्य सरकारें और बिजली क्षेत्र की निजी कंपनियां बहुत उत्साहित नहीं हैं।
एक बड़ी वजह यह है कि नए बिजली संयंत्रों की अधिकतम आयु 30-35 वर्ष ही होगी, क्योंकि भारत ने वर्ष 2070 तक देश को कार्बन न्यूट्रल (पर्यावरण में कोई भी कार्बन उत्सर्जन नहीं) करने का फैसला किया है।
अभी सिर्फ सरकार का प्रस्ताव है: अधिकारी
दैनिक जागरण ने बिजली मंत्रालय की घोषणा के बाद देश की कुछ दिग्गज बिजली कंपनियों से बात की। इन्हें नये ताप बिजली संयंत्र लगाने के सरकार के प्रस्ताव का स्वागत तो किया है इस बारे में स्पष्ट तौर पर वादा करने को तैयार नहीं है कि वह नये संयंत्र लगाएंगे।
चूंकि इस बारे में अभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार से बातचीत चल रही है, इसलिए इन कंपनियों के अधिकारियों ने अपनी पहचान गुप्त रखने का अनुरोध किया।
नए संयंत्र को स्थापित करने को लेकर विचार नहीं कर रही कंपनियां
तकरीबन 4,000 मेगावाट क्षमता वाली एक कंपनी के शीर्ष अधिकारी का कहना है किसी दूसरी ताप बिजली संयंत्र का अधिग्रहण कर अपनी क्षमता बढ़ाने का विकल्प तो हमारा खुला हुआ ,है लेकिन एकदम नया संयंत्र स्थापित करने को लेकर कोई विचार नहीं हुआ है।
एक अन्य कंपनी के अधिकारी का कहना है कि अभी सिर्फ सरकार का प्रस्ताव है। केंद्र सरकार ने राज्यों से भी कहा है कि वह कोयला खदान अधिग्रहित करने की राह की कठिनाइयों को तेजी से दूर करें। लेकिन जमीनी तौर पर देखना होगा कि सरकार का प्रस्ताव में और क्या-क्या प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कई मुद्दे हैं जिनका समाधान निकालना होगा। मसलन, सरकार का कहना है कि वर्ष 2030-31 तक नये संयंत्र स्थापित करना होगा। इसके लिए हमें काफी ज्यादा बायलर और टरबाइन की जरूरत होगी।
जो भी ताप बिजली संयंत्र लगाया जाएगा उसकी लागत भी ज्यादा आएगी
10-15 वर्ष पहले हमने देश में तेजी से ताप बिजली संयंत्र इसलिए लगा पाए थे कि चीन से बड़ी संख्या में टरबाइन व बायलर आयात किया गया था। इसको लेकर काफी ज्यादा विवाद भी पैदा हुआ था। अभी भारत और चीन के जो रिश्ते हैं उसे देखते हुए फैसला करना होगा कि क्या चीन से फिर से उक्त उपकरणों का आयात किया जाएगा या नहीं। इसी तरह से एक अन्य कंपनी के अधिकारी ने बताया कि अब जो भी ताप बिजली संयंत्र लगाया जाएगा उसकी लागत भी ज्यादा आएगी और उसे मौजूदा संयंत्रों के मुताबिक कम समय के लिए ही उपयोग में लाया जाएगा।
वजह यह है कि इन संयंत्रों को अब ज्यादा सख्त पर्यावरण सुरक्षा मानकों का पालन करना होगा। साथ ही सरकार की तरफ से घोषित कार्बन न्यूट्रल होने की समय सीमा (वर्ष 2070) होने से इन्हें अपनी लागत भी कम समय में निकालनी होगी। यह काम सरकार की तरफ से नये प्रोत्साहनों के बगैर नहीं हो सकेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि कंपनियों को अपनी सोच बदलनी होगी। केंद्र सरकार की तरफ से पिछले पांच-सात वर्षों से सिर्फ रिनीवेबल ऊर्जा सेक्टर (सौर, पवन आदि) पर जोर दिया जा रहा था।
आर के सिंह ने कई बिजली कंपनियों से की बातचीत
अदाणी समूह से लेकर टाटा समूह तक और जिंदल समूह से लेकर एनटीपीसी जैसी सरकारी कंपनियों ने सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। 21 नवंबर को केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह ने राज्यों सरकारों, केंद्री बिजली प्राधिकरण, एनटीपीसी, आरइसी, पीएफसी, बीएचइएल और निजी ऊर्जा कंपनियो के प्रतिनिधियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की थी।
बिजली मंत्री ने कहा था कि सरकार वर्ष 2030-31 तक मौजूदा ताप बिजली क्षमता में 80 हजार मेगावाट अतिरिक्त क्षमता जोड़ना चाहती है। सिर्फ रिनीवेबल ऊर्जा के भरोसे पूरे देश में चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति नहीं हो सकती। अभी 27 हजार मेगावाट क्षमता की ताप बिजली संयंत्रों पर काम जारी है लेकिन इसके अलावा 60 हजार मेगावाट अतिरिक्त क्षमता जोड़ने पर काम करना होगा।सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर, 2023 में देश की कुल स्थापित बिजली क्षमता 4,25,535 मेगावाट है। जिसमें थर्मल पावर परियोजनाओं की क्षमता 2,39,072 मेगावाट है। रिनीवेबल सेक्टर की क्षमता 1,78,982 मेगावाट है।
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