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साथी भगत सिंह से कुछ कम नहीं थे राजगुरु

शहीद राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, उन्नीस सौ आठ को पुणे जिले के खेड़ा गांव में हुआ था, जिसका नाम अब राजगुरु नगर हो गया है। उनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और माता का नाम पार्वती बाई था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च, उन्नीस सौ इकतीस को फांसी दी गई थी

By Edited By: Fri, 22 Mar 2013 01:54 PM (IST)

नई दिल्ली। शहीद राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, उन्नीस सौ आठ को पुणे जिले के खेड़ा गांव में हुआ था, जिसका नाम अब राजगुरु नगर हो गया है। उनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और माता का नाम पार्वती बाई था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च, उन्नीस सौ इकतीस को फांसी दी गई थी

आजादी का प्रण:

राजगुरु स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगा का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। 1919 में जलियांवाला बाग में जनरल डायर के नेतृत्व में किए गए भीषण नरसंहार ने राजगुरु को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बागी और निर्भीक बना दिया तथा उन्होंने उसी समय भारत को विदेशियों के हाथों आजाद कराने की प्रतिज्ञा ली और प्रण किया कि चाहे इस कार्य में उनकी जान ही क्यों न चली जाए वह पीछे नहीं हटेंगे।

सुनियोजित गिरफ्तारी:

जीवन के प्रारंभिक दिनों से ही राजगुरु का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था। राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और ख़ुद को अंग्रेजी सिपाहियों से गिरफ्तार कराया था। यह सब पूर्व नियोजित था।

अदालत में बयान:

अदालत में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे पंजाब में आजादी की लड़ाई के एक बड़े नायक लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे। अंग्रेजों के विरुद्ध एक प्रदर्शन में पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी।

प्रसिद्ध तिकड़ी (सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु) :

राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर सांडर्स को गोली मारी थी। राजगुरु ने 28 सितंबर, 1929 को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी। जिसके अगले दिन उन्हें पुणे से गिरफ्तार कर लिया गया था।

राजगुरु पर लाहौर षड़यंत्र मामले में शामिल होने का मुकदमा भी चलाया गया।

फांसी का दिन:

राजगुरु को भी 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे लाहौर के केंद्रीय कारागार में उनके दोस्तों भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी पर लटका दिया गया।

इतिहासकार बताते हैं कि फांसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फिरोजपुर जिले के हुसैनीवाला में कर दिया था।

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