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Parliament Session: छोटी-छोटी गलतियों पर जेल नहीं जाएंगे अखबारों-पत्रिकाओं के प्रकाशक- अनुराग ठाकुर

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दावा किया कि पहले का बिल मीडिया पर दबाव बनाने वाला था जबकि यह बिल अवसर देने वाला है। अब अखबारों और पत्रिकाओं के पंजीकरण के लिए दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने होंगे और छोटी-छोटी गलितियों पर प्रकाशकों को जेल भी नहीं जाना होगा। गुरुवार को यह विधेयक लोकसभा से भी पारित हो गया।

By Jagran News Edited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 21 Dec 2023 08:50 PM (IST)
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केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर (फोटो: एएनआई)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। प्रेस और नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक-2023 को लेकर मीडिया व विरोधी दलों की आशंकाओं को खारिज करते हुए सूचना प्रसारण मंत्री ने इसे अंग्रेजों और कांग्रेस शासनकाल की गुलामी की मानसिकता से मुक्त बताते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दावा किया कि पहले का बिल मीडिया पर दबाव बनाने वाला था, जबकि यह बिल अवसर देने वाला है। अब अखबारों और पत्रिकाओं के पंजीकरण के लिए दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने होंगे और छोटी-छोटी गलितियों पर प्रकाशकों को जेल भी नहीं जाना होगा। गुरुवार को यह विधेयक लोकसभा से भी पारित हो गया।

क्या कुछ बोले केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री?

प्रेस और नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक पर चर्चा के दौरान अनुराग ठाकुर ने कहा कि यह विधेयक गुलामी की मानसिकता और अपराधीकरण से छुटकारा दिलाने वाला है। डिजिटल इंडिया, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग देने वाला है। यह अंग्रेजों के जमाने के प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण बिल- 1867 के स्थान पर लाया गया है। इसमें प्रकाशक को टाइटल या पंजीकरण के लिए डीएम या अन्य स्थानीय अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर नहीं काटने होंगे, बल्कि सारी प्रक्रिया आनलाइन और समयबद्ध होगी। इसके पारित होने से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति मिलेगी, उस समय बने कानून से मुक्ति मिलेगी और छोटी-छोटी गलितयों पर भी जेल में डाले जाने का डर भी चला गया।

'आजाद भारत में चक्कर काटने का नाम नहीं'

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उस समय के कानून से मीडिया को दबाया जाता था, अब बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पीआरबी कानून 1867 में तब एक सोच थी कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े लोग अपना अखबार न निकाल पाएं, इसलिए उन्हें डीएम के चक्कर काटने पड़ते थे, जेल की सजा का प्रविधान भी रखा गया। आजाद भारत में चक्कर काटने का नाम नहीं, केवल बटन दबाकर डिजिटल इंडिया के माध्यम से यह होगा। पहले इसके आठ स्टेप थे, कई महीने लगते थे। अब एक ही बार में होगा। दो से तीन महीने में सारी औपचारिकताओं के बाद प्रमाण पत्र मिल जाएगा। वहीं, कांग्रेस अंग्रेजों की सोच को लेकर ही आगे चली। उस समय किताब को भी इसके अधीन लिया था, अब उसमें से किताब को निकाल दिया गया है।

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उन्होंने कहा कि 2011 में यूपीए सरकार, इस संबंध में जो बिल लाई थी, के बिल में छोटे अपराध पर भी जेल का प्रविधान था। मोदी सरकार ने उसमें से पांच वह प्रविधान निकाल दिए। सिर्फ एक रखा है कि बिना अनुमति के समाचार पत्र या पत्रिका निकालने पर नोटिस देकर छह माह का समय दिया जाएगा, उसके बाद कार्रवाई होगी। कोई गैर कानूनी और आतंकवादी कार्रवाई में शामिल होगा तो उसको समाचार पत्र या पत्रिका चलाने की अनुमति नहीं मिलेगी।

AIMIM सांसद ने एडिटर्स गिल्ड का दिया हवाला

उल्लेखनीय है कि यह विधेयक राज्यसभा में मानसून सत्र में ही पारित हो गया था। लोकसभा से ध्वनि मत से यह विधेयक पारित होने से पहले विपक्षी सांसदों के इसके कुछ प्रविधानों पर प्रश्न भी खड़े किए। एआईएमआईएम सांसद सैयद इम्तियाज जलील ने कहा,

जिनके लिए यह बिल लाया गया है, उसी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने माना है कि यह विधेयक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करेगा।

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इम्तियाज जलील ने कहा कि प्रेस रजिस्ट्रार के पास पर्याप्त अधिकार होते हुए भी प्रेस में निरीक्षण और जांच का अधिकार अन्य एजेंसियों को दिए जाने का जो प्रविधान इस बिल में किया गया है, वह प्रेस पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने का प्रयास है। उन्होंने कुछ प्रविधानों के दुरुपयोग की भी आशंका जताई।