PV Narasimha Rao: संन्यास का मन बना चुके पीवी नरसिम्हा राव ने 'पवार पॉलिटिक्स' को पछाड़कर संभाली थी सत्ता
PV Narasimha Rao कांग्रेस पार्टी शोक में डूबी थी लेकिन नेतृत्व संकट का भी समाधान करना था। ऐसे में राजनीतिक हलकों में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चलने लगा। बारिश की जद में घिरे जून के महीने में चुनाव परिणाम सामने आये। यह वो साल है जब जून में रिकॉर्ड बारिश हुई थी शायद आसमान भी दूरदर्शी प्रधानमंत्री राजीव गांधी को खोने का गम मना रहा था।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। साल 1991, कोई भी राजनीतिक पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। ऐसे में 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव का एलान हुआ और कांग्रेस पार्टी को 545 में से 232 सीटें मिलीं, लेकिन ऐसा महसूस किया जा रहा था कि कांग्रेस को रिकॉर्ड तोड़ सीटें मिलेंगी। हालांकि, सहानुभूति के बावजूद पार्टी को बहुमत नहीं मिला।
यह वो दौर था जब पीवी नरसिम्हा राव ने राजनीति से संन्यास लेने का मन बना लिया था, परंतु अचानक से नरसिम्हा राव को सत्ता की कमान सौंप दी गई। दरअसल, लोकसभा चुनावों के बीच 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी। ऐसे में मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने चुनाव प्रक्रिया पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी थी।
- तीन चरणों में लोकसभा चुनाव हुए थे। 20 मई को पहले चरण के चुनाव संपन्न हो चुके थे। हालांकि, चुनाव प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।
- उस दौर में देश में कांग्रेस के लिए सहानुभूति देखने को मिली। हालांकि, इसका चुनाव पर ज्यादा असर तो नहीं दिखाई दिया, लेकिन कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई।
राजीव गांधी की हत्या के बाद सवाल खड़ा होने लगा कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? इसी सवाल के साथ कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह ने आपात बैठक बुलाई और सोनिया गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा, लेकिन सोनिया गांधी ने इससे इनकार कर दिया था। ऐसे में कई नेता खुद को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखने लगे थे।
गहन विचार-विमर्श के बाद आया था राव का नाम
कांग्रेस पार्टी शोक में डूबी थी, लेकिन नेतृत्व संकट का भी समाधान करना था। ऐसे में राजनीतिक हलकों में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चलने लगा।
हालांकि, राजनीतिक हलकों में दो और नाम थे, जिन्होंने बाद में कांग्रेस को अलविदा भी कहा। यह नाम अर्जुन सिंह और शरद पवार का था, लेकिन सोनिया गांधी की तरफ से तत्कालीन उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के नाम पर मुहर लगाई गई थी, लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला देते इस ऑफर को ठुकरा दिया था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे परमेश्वर नारायण हक्सर ने ही शंकर दयाल शर्मा का नाम सुझाया था। हालांकि, बात नहीं बनने पर एक बार फिर से गहन विचार-विमर्श शुरू हुआ और नरसिम्हा राव का नाम सामने आया। ऐसे में 29 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई और नरसिम्हा राव को पार्टी अध्यक्ष चुना गया और शरद पवार ने चुप्पी साध ली।
ऐसा कहा जाता है कि शरद पवार को चुनाव परिणामों का इंतजार था। अगर परिणामों उम्मीद से बढ़कर रहते तो शायद नरसिम्हा राव को काफी मुश्किलात का सामना करना पड़ता।
बारिश की जद में घिरे जून के महीने में चुनाव परिणाम सामने आये। यह वो साल है जब जून में रिकॉर्ड बारिश हुई थी, शायद आसमान भी दूरदर्शी प्रधानमंत्री राजीव गांधी को खोने का गम मना रहा था। इसी बीच, 18 जून को कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत हासिल नहीं कर पाई। कांग्रेस ने 232 सीटों पर कब्जा किया और 20 जून को नरसिम्हा राव को संसदीय दल का नेता चुना गया।
जब नरसिम्हा राव ने ली पद एवं गोपनीयता की शपथ
यह वो दौर था जब चंद्रशेखर सरकार की फिजूलखर्ची की वजह से देश आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। इसी बीच, नरसिम्हा राव ने 21 जून को ऐतिहासिक शपथ ली।
मैं पीवी नरसिम्हा राव... ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा। मैं भारत की प्रभुता और अखंडता का अक्षुण्ण रखूंगा। मैं संघ के प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करूंगा, तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा।
नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, पर उन्होंने लोकसभा चुनाव तो लड़ा नहीं था। ऐसे में नरसिम्हा राव ने आंध्र प्रदेश की नांदयाल सीट से उपचुनाव लड़ा और विजयी हुए।
मिसेज गांधी से बढ़ने लगी थीं दूरियां
एक जिंदगी काफी नहीं में स्वर्गीय पत्रकार कुलदीप नैयर ने लिखा, नरसिम्हा राव ने यह ध्यान रखा था कि उनके कार्यकाल के दौरान सोनिया गांधी पार्टी से दूर ही रहें, जिसे एक तरह से वे खुद ही नियंत्रित कर रहे थे। इसमें कोई शक नहीं था कि सोनिया गांधी तब चुप बैठी रही थीं। वे किसी ऐसे अवसर की ताक में थीं कि उन्हें बिना मांगे ही पार्टी अध्यक्ष का पद सौंप दिया जाए।
कहा तो यहां तक जाता है कि नरसिम्हा राव से सोनियां गांधी जैसी उम्मीदें रखती थीं, वो उसपर खरे नहीं उतरे। हालांकि, यह किसी से छिपा नहीं है कि नरसिम्हा राव का दौर समाप्त होने के बाद पार्टी ने उनसे दूरियां बना ली थीं और तो और उनका पार्थिव शरीर भी कांग्रेस मुख्यालय में नहीं रखा गया था। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे 10 जनपथ के दरवाजे पूरी तरह से नरसिम्हा राव के दरवाजे बंद हो गए थे।
ऐतिहासिक बजट
नरसिम्हा राव के कार्यकाल में देश ने ऐतिहासिक बजट पेश किया था। आर्थिक संकट का सामना कर रही नरसिम्हा राव सरकार में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और कोटा राज खत्म किया। बता दें कि कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत ने नरसिम्हा राव को मनमोहन सिंह का नाम सुझाया था।
मनमोहन सिंह ने आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए बजट भाषण की शुरुआत विक्टर ह्यूगो को कोट करते हुए की। उन्होंने कहा था,
दुनिया में कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ चुका हो।
इन्हीं शब्दों के साथ वित्त मंत्री ने 19,000 शब्दों वाला खाका पेश किया था, जिसने भारत की पूरी तस्वीर और तकदीर दोनों को बदल कर रख दिया था।