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कतर का OPEC से बाहर जाना भारत के लिए हो सकता है फायदेमंद सौदा

मिडिल ईस्ट की बड़ी इकनॉमी वाले देश कतर ने ओपेक से अलग होने का फैसला लेकर कई देशों को चौका दिया है। हालांकि कतर का यह फैसला भारत के लिए अच्‍छा साबित हो सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 03 Dec 2018 06:16 PM (IST)
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कतर का OPEC से बाहर जाना भारत के लिए हो सकता है फायदेमंद सौदा
नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। मिडिल ईस्ट की बड़ी इकनॉमी वाले देश कतर ने ओपेक से अलग होने का फैसला लेकर कई देशों को चौका दिया है। इसकी वजह एक ये भी है कि कुछ यूरोपीय देशों ने कतर में इस वजह से बड़ा निवेश किया हुआ है जिससे वह ओपेक में अपनी पैंठ बना सकें। ऐसे में कतर का फैसला उनके लिए न सिर्फ चौकाने वाला है बल्कि अपने फैसले पर मंथन करने वाला भी है। हालांकि इस फैसले का असर भविष्‍य में जरूर दिखाई देगा। बहरहाल, आपको बता दें कि कतर बीते 57 वर्षों से इसका सदस्‍य है। कतर ओपेक में 1961 में शामिल हुआ था। उसने यह फैसला गैस उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये लिया है। हालांकि उसका यह फैसला जनवरी 2019 से प्रभावी होना है, लेकिन इसके दुष्‍प्रभावों को लेकर अभी से ही कुछ देशों में उदासी छा गई है। हालांकि कतर का यह फैसला भारत के लिए अच्‍छा साबित हो सकता है। 

इसलिए लिया कतर ने फैसला
हालांकि आर्थिक मामलों की जानकार राधिका पांडे का कहना है कि कतर का ताजा फैसला अपने घरेलू उत्‍पादन बढ़ाने के मद्देनजर लिया गया है। लिहाजा इस फैसले का असर नकारात्‍मक तो मुश्किल ही होगा। वहीं जहां तक ओपेक पर असर की बात है तो इसका वहां भी नकारात्‍मक असर नहीं पड़ेगा, क्‍योंकि ओपेक में इस देश का शेयर काफी कम है। इसके अलावा ओपेक के होने वाले फैसलों में भी उसका कम ही सहयोग है। लिहाजा भारत और ओपेक के दूसरे सहयोगी देशों पर भी इसका असर न के ही बराबर होगा।

भविष्‍य में बढ़ सकता है सहयोग
राधिका मानती हैं कि भविष्‍य में भारत और कतर के बीच के संबंध ही यह तय करेंगे वहां से हम कितना तेल खरीदते हैं। अभी तक कतर को भारत एक ओपेक सहयोगी देश की तरह ही देखता आया है। आने वाले समय में इसमें बदलाव जरूर हो सकता है और हम अपनी तेल की मांग पूरी करने के लिए उसकी तरफ रुख कर सकते हैं। कतर के ओपेक से अलग होने का सबसे बड़ा फायदा यह भी होगा कि यदि भविष्‍स में ओपेक तेल उत्‍पादन में कटौती का फैसला लेता है तो भारत कतर से तेल खरीद का फैसला स्‍वतंत्र रूप से ले सकता है। उनका यह भी कहना है कि भविष्‍य में जिस तरह से भारत लिक्‍विड नेचुरल गैस की तरफ जा रहा है उसमें भी वह कतर से सौदा कर सकता है। यहां पर ये जानना जरूरी है कि भारत उर्जा के लिए क्रूड ऑयल से धीरे-धीरे दूसरे वैकल्पिक साधनों की तरफ बढ़ रहा है। इसमें भी कतर भारत के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। यहां पर ये भी जानना जरूरी है कि भारत के प्रमुख तेल निर्यातक देश इराक, सऊदी अरब और ईरान हैं। यूएई का चौथा नंबर है। तेल के अलावा भारत के कतर के साथ ज्यादा व्यापारिक रिश्ते भी नहीं हैं, लेकिन भविष्‍य में इसमें बदलाव जरूर होगा।

ओपेक से बाहर होने की वजह 
आपको बता दें कि । कच्‍चा तेल के उत्‍पादन के साथ-साथ गैस उत्‍पादन पर ध्‍यान देने की एक बड़ी वजह ये भी है कि वह विश्व में द्रवीकृत प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक है। दुनिया भर के नेचुरल गैस प्रोडक्शन में इसकी 30% हिस्सेदारी है। कतर के लिए जहां अब कच्‍चे तेल में अधिक संभावनाएं नहीं बची हैं वहीं उसे गैस उत्‍पादन में अधिक संभावना दिखाई दे रही है। इसके अलावा कतर के इस संगठन से अलग होने की एक दूसरी बड़ी वजह उसका सऊदी अरब से बिगड़ता रिश्‍ता भी माना जा रहा है। वहीं ओपेक में सऊदी अरब का दबदबा चलता है और दोनों देशों के बीच जून 2017 से संबंध खराब चल रहे हैं।

अमेरिका नहीं बनेगा रोड़ा
यहां पर ध्‍यान रखने वाली बात ये भी है कि कतर और सऊदी अरब के बीच संबंध काफी समय से खराब हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि सऊदी अरब का साथ देने वाला अमेरिका कहीं ईरान की तरह उस पर तो कोई प्रतिबंध नहीं लगाएगा। हालांकि इससे राधिका साफ इंकार करती हैं। उनका कहना है कि ईरान और कतर का मामला अलग-अलग है। वह यह भी मानती हैं कि शॉर्ट टर्म में ऐसा कुछ इसलिए भी नहीं देखने को मिलेगा क्‍योंकि कतर तेल उत्‍पादन में बेहद छोटा खिलाड़ी है। लिहाजा फिलहाल ऐसा नहीं दिखाई देता है कि यदि भारत और कतर तेल के सौदे में करीब आते हैं तो अमेरिका इस पर नकारात्‍मक फैसला लेगा।

कतर के फैसले का ओपेक पर असर
यहां पर ये भी जानना जरूरी है कि अभी तक कतर के तेल उत्पादन को ओपेक कंट्रोल कर रहा था। वहीं इससे अलग होने की सूरत में वह भारत समेत दूसरे देशों को कच्‍चे तेल का आयात पहले की अपेक्षा अधिक मात्रा में कर सकेगा। ऐसे में उसके ऑयल बॉन्ड अंतरराष्ट्रीय बाजार में उछल सकते हैं। ऐसी स्थिति में कतर के निवेशकों को फायदा होगा। इसके बाहर होने से तेल कीमतों को लेकर ओपेक का एकाधिकार खत्म हो सकता है। क्योंकि, ओपेक के सदस्य देश मिलकर उत्पादन बढ़ाने या घटाने का फैसला करते हैं। फिलहाल कतर ओपेक का 11वां बड़ा तेल उत्पादक देश है। कतर ने अक्टूबर के महीने में रोजाना 6.10 लाख बैरल तेल का प्रोडक्शन किया था।

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