चार में से हर एक इंसान में टीबी का बैक्टीरिया, दुनिया की एक तिहाई आबादी पर खतरा
Tuberculosis risk risk on global population वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा है कि विश्व में हर चार में से एक व्यक्ति के शरीर में टीबी का बैक्टीरिया मौजूद है...
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Tue, 06 Aug 2019 11:03 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Tuberculosis risk risk on global population विश्व की एक-तिहाई आबादी पर तपेदिक यानी टीबी का खतरा मंडरा रहा है। एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। यूरोपियन रेसपिरेटरी जर्नल में प्रकाशित हुए अध्ययन में बताया गया है कि विश्व में हर चार में से एक व्यक्ति के शरीर में टीबी का बैक्टीरिया मौजूद है। इसे क्षय रोग भी कहा जाता है। यह सबसे घातक संक्रामक रोग है। यह माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकोलोसिस नामक बैक्टीरिया से होता है, जिससे हर साल लगभग 10 मिलियन लगभग एक करोड़ लोग प्रभावित होते हैं।
हर साल 20 लाख लोगों की मौत
वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में पाया है कि टीबी से हर साल लगभग दो मिलियन तकरीबन 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि कई अन्य लोग भी इसके बैक्टीरिया से ग्रसित होते हैं, लेकिन उन्हें सक्रिय टीबी नहीं होती है। यह अध्ययन 3,51,811 लोगों पर किए गए परीक्षणों पर आधारित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने साल 2035 तक दुनिया से टीबी खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। डेनमार्क के आरहोस यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर क्रिश्चियन वेजसे ने कहा कि इस लक्ष्य को उन लोगों का इलाज किए बिना प्राप्त करना मुश्किल है, जिन्हें सक्रिय टीबी नहीं है। क्योंकि अगर शरीर में इसका बैक्टीरिया मौजूद है तो उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी टीबी हो सकती है। इस अध्ययन में बताया गया है कि वर्तमान में दुनिया की लगभग एक-चौथाई आबादी निष्क्रिय टीबी की चपेट में है। इस अध्ययन के लिए डेनमार्क और स्वीडन के शोधकर्ताओं ने 36 देशों के 88 निष्क्रिय टीबी के मामलों के वैज्ञानिक अध्ययनों की समीक्षा की। अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि इनमें से कई देशों की एक चौथाई आबादी निष्क्रिय टीबी की चपेट में है।
वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में पाया है कि टीबी से हर साल लगभग दो मिलियन तकरीबन 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि कई अन्य लोग भी इसके बैक्टीरिया से ग्रसित होते हैं, लेकिन उन्हें सक्रिय टीबी नहीं होती है। यह अध्ययन 3,51,811 लोगों पर किए गए परीक्षणों पर आधारित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने साल 2035 तक दुनिया से टीबी खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। डेनमार्क के आरहोस यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर क्रिश्चियन वेजसे ने कहा कि इस लक्ष्य को उन लोगों का इलाज किए बिना प्राप्त करना मुश्किल है, जिन्हें सक्रिय टीबी नहीं है। क्योंकि अगर शरीर में इसका बैक्टीरिया मौजूद है तो उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी टीबी हो सकती है। इस अध्ययन में बताया गया है कि वर्तमान में दुनिया की लगभग एक-चौथाई आबादी निष्क्रिय टीबी की चपेट में है। इस अध्ययन के लिए डेनमार्क और स्वीडन के शोधकर्ताओं ने 36 देशों के 88 निष्क्रिय टीबी के मामलों के वैज्ञानिक अध्ययनों की समीक्षा की। अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि इनमें से कई देशों की एक चौथाई आबादी निष्क्रिय टीबी की चपेट में है।
संक्रामक है टीबी
टीबी आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। जब टीवी ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआइ उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी दूसरे व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लिआइ कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। इसलिए टीबी मरीजों को चाहिए कि वह जब भी खांसे तो कपड़े या रुमाल का प्रयोग करें।
टीबी के प्रकार
पल्मोनरी : अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह पल्मोनरी टीबी कहलाता है। टीबी का बैक्टीरिया 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में फेफड़ों को प्रभावित करता है। इसके मरीजों के सीने में दर्द और लंबे समय तक खांसी व बलगम जमा रहता है। लेकिन, लगभग 25 फीसद से ज्यादा मामलों में किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।एक्स्ट्रा पल्मोनरी : अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता है तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहलाती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पल्मोनरी टीबी के साथ भी हो सकती है। अधिकतर मामलों में संक्रमण फेफड़ों से बाहर भी फैल जाता है और शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है। जिसके कारण फेफड़ों के अलावा अन्य प्रकार के टीबी हो जाते हैं। अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप
पल्मोनरी : अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह पल्मोनरी टीबी कहलाता है। टीबी का बैक्टीरिया 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में फेफड़ों को प्रभावित करता है। इसके मरीजों के सीने में दर्द और लंबे समय तक खांसी व बलगम जमा रहता है। लेकिन, लगभग 25 फीसद से ज्यादा मामलों में किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।एक्स्ट्रा पल्मोनरी : अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता है तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहलाती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पल्मोनरी टीबी के साथ भी हो सकती है। अधिकतर मामलों में संक्रमण फेफड़ों से बाहर भी फैल जाता है और शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है। जिसके कारण फेफड़ों के अलावा अन्य प्रकार के टीबी हो जाते हैं। अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप