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1500 कर्मचारियों के 12 हजार तबादले, बैंक ने बनाई 3 साल में 250 नीतियां

बैंक के चेयरमेन की कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन साल में वो 250 नीति ला चुके हैं, यानि हर चार दिन में एक नई नीति।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 30 May 2018 12:59 PM (IST)
1500 कर्मचारियों के 12 हजार तबादले, बैंक ने बनाई 3 साल में 250 नीतियां
छिंदवाड़ा (आशीष मिश्रा)। सेंट्रल मध्य प्रदेश ग्रामीण बैंक इन दिनों किसानों की बेहतरी के कार्य करने के बजाय कर्मचारियों के साथ बरती जा रही कार्यशैली को लेकर ज्यादा सुर्खियों में है। बैंक के चेयरमेन की कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन साल में वो 250 नीति ला चुके हैं, यानि हर चार दिन में एक नई नीति। इन योजनाओं का जमीनी स्तर पर हालत ये है कि 25 हजार से ज्यादा किसान अपने खाते बैंक में बंद करवा चुके हैं।

बैंक का मुख्यालय छिंदवाड़ा में है, लिहाजा सारे प्रदेश में इन नीतियों का असर पड़ता है। यही नहीं चेयरमेन के फैसलों के कारण प्रदेश भर के कर्मचारी प्रभावित हैं। हालत ये है कि प्रदेश भर में 1500 कर्मचारी पदस्थ हैं, लेकिन इन कर्मचारियों के 12 हजार तबादले हो चुके हैं। यानि किसी भी बैंक में कर्मचारी टिककर काम ही नहीं कर पा रहा। इस नीति के कारण न सिर्फ कर्मचारियों में नाराजगी है, बल्कि वो मानसिक रूप से प्रातड़ित हैं।

तबादले में भी एक कर्मचारी कई बार स्थानांतरित होने के बाद भी उसकी मनपसंद जगह नहीं पदस्थ हो सका। शिवपुर के बैंक में तो सात करोड़ का फर्जीवाड़ा सामने आ चुका है, लेकिन इसे लेकर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

इसे लेकर सेंट्रल मध्य प्रदेश मध्य ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के शरद पटेल ने कहा कि उनका संगठन इसे लेकर आंदोलन करेगा। ऑडिट की स्थिति ये है कि डेढ़ साल तक ऑडिट नहीं होते हैं। इस बीच कर्मचारी का तबादला हो जाता है, तो नए कर्मचारी को हिसाब ही नहीं मिलता। बैंक में जब कोई उपभोक्ता जाता है तो उसे सही एंट्री ही नहीं मिलती।

ट्रांसफर ने लिया उद्योग का रूप
बैंक में ट्रांसफर ने उद्योग का रूप ले लिया है। हालत ये है कि बैंककर्मियों के 15 सौ पद हैं, जबकि 12 हजार से ज्यादा ट्रांसफर हैं। ट्रांसफर के नाम पर भारी मनमानी भी की जा रही है। नियम के मुताबिक किसी भी कर्मचारी को 6 सौ किमी से ज्यादा की दूरी पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता, लेकिन तबादले किए गए। एक महिला का पांच से सात बार ट्रांसफर कर दिया गया। एक महिला कर्मचारी की शादी भोपाल में हो गई, इस आधार पर उसने तबादला मांगा, लेकिन उसकी जगह भोपाल में दूसरे कर्मचारी को पोस्टिंग दे दी गई। यही नहीं तीन सालों से नई भर्ती भी नहीं हुई है।

नीतियों पर उठे सवाल
बैंक प्रबंधन की नीतियों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। एग्रीकल्चर टर्म लोन में पहले दबाव बनाया जाता है कि लोन दो , लेकिन प्रक्रिया के नाम पर किसान को उलझाकर लोन नहीं लेने दिया जाता। किसान जब केसीसी जमा कर देता है, तो ब्याज का रिनीवल ही नहीं होता। ऑडिट नहीं होने के कारण हाल में अफरा तफरी देखी गई। ऑडिट लेट होने के कारण 30 अप्रैल तक का ब्याज निकाल दिया, फिर उसे रिवर्स किया गया।

इस तरह की अनियमितता आम बात हो चुकी है। थक हार कर 25 हजार किसानों ने खाते ही बंद कर दिए। इसके कारण अब बैंक घाटे में चल रहा है। हाल ही में हाउसिंग लोन के जरिए लोन दिए गए, जिसके बाद रकम चुकाने का दबाव बनाया गया, 10 हजार घरों में अब तक ताले लग चुके हैं। छिंदवाड़ा में चेयरमेन विवेक कुमार के अलावा भोपाल में बैठा संचालक मंडल भी आंख बंद किए बैठा है, जिसके कारण कर्मचारियों की समस्या का निराकरण नहीं हो रहा है।

आंदोलन करेंगे
कर्मचारियों को ट्रांसफर के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है, हम इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे
-शरद पटेल, सेंट्रल मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन

कोई समस्या नहीं है
बैंक में वैसे ही स्टॉफ की कमी है, जो आंकड़ा आप बता रहे हैं, वो अव्यवहारिक है। ऑडिट को लेकर भी कोई समस्या नहीं है
-सांकला कुमार, जनरल मैनेजर, सेंट्रल मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक