Caste Census: जातिवार गणना की सत्यता पर सवाल भी बढ़ा सकता है बवाल, आंकड़ों को लेकर अविश्वास के स्वर होने लगे मुखर
जातियों की संख्या से असहमत लोगों के विरोध के स्वर के मुखर होने के पीछे राहुल गांधी और लालू प्रसाद का वह नारा है जिसमें कहा गया है कि जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी ही हिस्सेदारी। लोगों का मानना है कि भविष्य में इसी आधार पर अगर आरक्षण का विभाजन किया जाएगा तो उनकी जाति की हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। बिहार में जातिवार गणना की रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही उसकी सत्यता एवं विसंगतियों पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। विभिन्न जाति एवं दलों के प्रतिनिधि नेताओं को लग रहा है कि उनकी जाति की संख्या को रणनीति के तहत कम करके बताया गया है या समूहों में बांट दिया गया है।
सवाल उठाने वाले नेताओं में दलित और पिछड़े अधिक हैं, जिनकी प्रतिक्रिया से आगे चलकर बवाल में बढ़ सकता है। हालांकि, जातिवार गणना की सत्यता पर प्रश्न खड़ा करने वालों को उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नसीहत दी है कि ऐसे लोगों को प्रधानमंत्री से आग्रह करना चाहिए कि पूरे देश में जातिवार गणना करा दें। इससे बिहार का सच भी सामने आ जाएगा।
जातिवार गणना का विरोध नहीं
एक बड़ा सच यह भी है कि आंकड़ों की सच्चाई पर सवाल उठाने वाले बिहार के किसी भी दल ने जातिवार गणना का विरोध नहीं किया है। केंद्र सरकार की जातिवार गणना से असहमति के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल में भाजपा की भी मौजूदगी थी, लेकिन रिपोर्ट की विसंगतियों की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने में भी पीछे नहीं है।
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सरकार की मंशा पर सवाल
प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी से लेकर सांसद संजय जायसवाल तक ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है। सवाल उठाने वालों की सूची में सत्ताधारी दल के नेता भी पीछे नहीं हैं। जदयू के प्रदेश महासचिव प्रगति मेहता ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिख कर धानुक जाति की वास्तविक संख्या से कम दिखाने पर आपत्ति जताई है।
उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने तो संख्या के आधार पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कुर्सी छोड़ने का भी आग्रह कर रखा है। यह अलग बात है कि कांग्रेस में वर्तमान में प्रमोद किसी पद पर नहीं हैं। जदयू सांसद सुनील कुमार पिंटू ने भी तेली जाति की कम संख्या पर हैरानी जताते हुए दावा किया है कि उनके समर्थकों के फोन आ रहे हैं कि आंकड़े मनगढ़ंत हैं।
अन्य जातियों की संख्या घट कैसे गई?
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने राज्य सरकार से सीधे पूछ लिया है कि यादवों की संख्या बढ़ गई, लेकिन अन्य जातियों की संख्या घट कैसे गई? मांझी का कहना है कि यादवों की संख्या ज्यादा दिखाने के लिए सरकार ने 8-10 जातियों को एक साथ मिला दिया है।
विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को भी रिपोर्ट में निषादों की संख्या कम दिखाने पर नाराजगी है। उन्होंने तो अखबारों में विज्ञापन देकर दावा किया है कि निषाद जाति की संख्या नौ प्रतिशत है। किंतु रिपोर्ट में 2.60 प्रतिशत के भीतर ही समेट दिया गया है।
विरोध के स्वर के मुखर
दरअसल, जातियों की संख्या से असहमत लोगों के विरोध के स्वर के मुखर होने के पीछे कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद प्रमुख लालू प्रसाद का वह नारा है, जिसमें कहा गया है कि जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी ही हिस्सेदारी।
लोगों का मानना है कि भविष्य में इसी आधार पर अगर आरक्षण का विभाजन किया जाएगा तो उनकी जाति की हिस्सेदारी कम हो जाएगी। संकेत है कि अभी आग और सुलग सकती है। मंडल पार्ट-2 के दूसरे चरण में संख्या के अनुपात में जब आरक्षण की बात होने लगेगी तो विरोध के स्वर तेज हो सकते हैं।