कोटा के अंदर कोटा: 1960 से उठ रही थी मांग, SC के फैसले से किसे मिलेगा सबसे अधिक फायदा? पढ़ें पूरी Timeline
SC on Quota within quota अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बनाने का मार्ग प्रशस्त कर बीते दिन एक एतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कोटे में कोटा यानी रिजर्वेशन में सब कैटेगरी बनाने पर मुहर लगाई है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कई सालों की कानूनी लड़ाई के बाद आया है। आइए जानें कोर्ट के फैसले से पहले की पूरी टाइमलाइन...
जागरण डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। SC on Quota within quota सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के उपवर्गीकरण का मार्ग प्रशस्त कर बीते दिन एक एतिहासिक फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कोटे में कोटा यानी रिजर्वेशन में सब कैटेगरी बनाने पर मुहर लगाई है। शीर्ष कोर्ट ने एससी-एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर भी बल दिया है। शीर्ष कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि इन जातियों में ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य सरकारें इसमें सब कैटेगरी बना सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कई सालों की कानूनी लड़ाई के बाद आया है।
आंध्र प्रदेश ने सबसे पहले बनाया था कानून
अनुसूचित जातियों में सबसे पिछड़े लोगों की यह शिकायत थी कि उनको सामाजिक-आर्थिक रूप से उन्नत लोगों द्वारा आरक्षण के लाभ से वंचित किया जाता है। यह कानूनी लड़ाई 1960 के दशक से शुरू हुई थी, जिसमें पिछड़े लोगों ने अलग कैटेगरी की मांग की। आंध्र प्रदेश में एपी अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम 2000 के अधिनियमन के साथ इसने पहली बार एक कानून का रूप लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था फैसला
कानून में एससी वर्ग को चार श्रेणियों में विभाजित किया और उनके बीच आरक्षण के बंटवारे का प्रावधान किया। इसमें समूह ए के लिए 1 फीसद, समूह बी के लिए 7 फीसद, समूह सी के लिए 6 फीसद और समूह डी के लिए 1 फीसद।इस कानून को हाईकोर्ट ने तो बरकरार रखा, लेकिन ईवी चिन्नैया मामले में 2004 में सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि एससी एक समरूप समूह है और इसे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।
सब कैटेगरी की मांग का दशकों पुराना है इतिहास
अनुसूचित जाति समूह के भीतर जातियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने का इतिहास दशकों पुराना है।- वर्ष 1960 में कोटे के अंदर कोटा की मांग आंध्र प्रदेश में उठी थी, जो कई सालों तक चली।
- इसके बाद 1997 में तब की आंध्र प्रदेश सरकार ने न्यायमूर्ति पी रामचंद्र राजू आयोग का गठन किया, जिसने कहा था कि आरक्षण का लाभ बड़े पैमाने पर अनुसूचित जातियों के बीच एक विशेष जाति के पास गया है और इसलिए, एससी को चार समूहों में वर्गीकृत करने की सिफारिश की।
- 1998 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार ने अनुसूचित जातियों में एक सब कैटेगरी बनाने का एक प्रस्ताव पास किया।
- 2001 में यूपी सरकार ने हुकम सिंह समिति का गठन किया, जिसने कहा कि आरक्षण का लाभ सबसे अधिक वंचित वर्गों के लोगों तक नहीं पहुंचा है। इसमें कहा गया कि यादवों को अकेले नौकरियों का अधिकतम हिस्सा मिला है। इस समिति ने भी एससी/ओबीसी की सूची की सब कैटेगरी बनाने की सिफारिश की थी।
- 2005 में कर्नाटक सरकार ने न्यायमूर्ति एजे सदाशिव पैनल की स्थापना की, जिसमें SC जातियों के बीच उन जातियों की पहचान करने पर जोर दिया गया, जिन्हें कोटा से लाभ नहीं मिला। पैनल ने 101 जातियों को चार श्रेणियों में विभाजित करने की सिफारिश की।
- 2006 में तब की केंद्र सरकार ने सब कैटेगरी के लिए एक पैनल बनाने का निर्णय लिया।
- 2007 में ऊषा मेहरा को इस पैनल का अध्यक्ष बनाया गया।
- 2007 में ही बिहार के महादलित पैनल ने भी ऐसी सिफारिशें की। इसमें कहा गया कि एससी की 18 जातियों को अत्यंत कमजोर जातियों के रूप में माना जाना चाहिए।
- 2008 में ऊषा मेहरा ने केंद्र को रिपोर्ट सौंपी।
- 2009 में यूनाइटिड आंध्र प्रदेश से सीएम वाईएस राजाशेखर रेड्डी ने केंद्र को पत्र लिख इसे संविधानिक गारंटी देने की मांग की।
- 2014 में तेलंगाना के बनने के बाद केसीआर ने एक प्रस्ताव पास कर केंद्र से सब कैटेगरी बनाने की मांग की।
- 2023 में सिकंदराबाद की एक सभा में पीएम मोदी ने कहा कि वो कोटे के अंदर कोटे को सपोर्ट करेंगे।
- 1 अगस्त 2024 को एतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्य सरकार कोटे के अंदर कोटा बना सकते हैं।