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Rahat Indori : जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते, मंच की तरह मौत पर भी चौंका गए राहत इंदौरी

जैसे वह शायरी में चौंकाते रहे हैं वैसे ही उन्होंने इस तरह अलविदा कह कर चौंकाया है। पहले कोरोना पॉजिटिव होने का ट्वीट फिर अचानक हृदयाघात और इस तरह इंतकाल फर्माना।

By Tilak RajEdited By: Updated: Tue, 11 Aug 2020 07:44 PM (IST)
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Rahat Indori : जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते, मंच की तरह मौत पर भी चौंका गए राहत इंदौरी
नई दिल्‍ली, नवनीत शर्मा। एक अच्छा शायर उसे माना जाता है जिसके शे'र सुनने वाले को छू लें। यह छूना, रुलाना भी हो सकता है, हंसाना भी हो सकता है और गहरी उदासी में भेजना भी हो सकता है। एक शे'र में दो मिसरे या पंक्तियां होती हैं। मंजा हुआ शायर वह होता है, जिसके पहले मिसरे को सुन कर यह आभास कतई न हो कि वह दूसरे मिसरे में क्या कहने वाला है। कौतूहल! यानी सामने की शायरी न हो। दूसरे शब्दों में कहें तो दूसरा मिसरा पूरा होते ही शे'र मुकम्मल हो। अर्थ विस्फोट के कारण रहस्य से पर्दा उठे और लोग वाह-वाह कह उठें या आह भर दें। जैसे वह शायरी में चौंकाते रहे हैं, वैसे ही उन्होंने इस तरह अलविदा कह कर चौंकाया है। पहले कोरोना पॉजिटिव होने का ट्वीट, फिर अचानक हृदयाघात और इस तरह इंतकाल फर्माना। जैसे राहत ने आज के लिए ही लिख रखा हो :

हाथ खाली हैं तिरे शहर से जाते जाते

जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते

क्या नहीं था राहत के पास? आवाज थी, अंदाज था और थी शायरी। इसके साथ ही सुनने वालों की बेहद लंबी फेहरिस्त। मंच पर इतने वर्षों तक बने रहना आसान नहीं होता। कुछ शायर मशहूर होते हैं, कुछ मकबूल होते हैं। राहत इंदौरी के हिस्से में ये दोनों विशेषण आए। दोनों का अर्थ लोकप्रियता के साथ ही जुड़ा है।

राहत की गजलों के विशेष वही थे जो आम तौर पर होते हैं। इश्क, मोहब्बत, समाज, सियासत और अध्यात्म वगैरह। लेकिन कुछ चीजें थी जो उन्हें राहत बनाती थी। एक थी, आमतौर पर सरल शब्दों का प्रयोग और दूसरी खासियत थी उनका शे'र को इस तरह बार-बार सुनाना कि श्रोता के सामने शे'र के सारे रंग खुल जाएं। यही उनकी लोकप्रियता का कारण भी था।

इश्क के विषय पर अनगिन गजलें लिखी गई हैं, लेकिन यह शे'र किस तरह विरोधाभास प्रकट करता हुआ सुनने वाले तक जा पहुंचता है, देखिए :

मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था

तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते

इसी गजल में समाजी रंग का यह शे'र बताता है कि वह कितना अलग संदेश देना चाहते हैं :

हम से पहले भी मुसाफिर कई गुजरे होंगे

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

अना से भरपूर शायरी में उनके कई रंग दिखते हैं। यह राहत ही कह सके कि उन्हें दुश्मन भी खानदानी चाहिए। कैसा खानदानी? यह देखिए :

सिर्फ खंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए

ऐ खुदा दुश्मन भी मुझ को खानदानी चाहिए

राहत इंदौरी ने इतने लंबे अर्से में शायरी में आते हुए बदलाव भी देखे, विषय वस्तु के गतिशील आयाम भी देखे लेकिन मंच पर उनका जलवा बना रहा। जाहिर है कि वह श्रोताओं की नब्ज को परखने की सलाहियत रखते थे। श्रोताओं ने जो चाहा वह उन्होंने लिखा। यह सलाहियत जितनी बढ़ती गई, उतने ही वह जमते गए। यकीनन इसमें उस खूबी की भी देन रही कि पहला मिसरा पढ़ते हुए टोन कुछ और होती थी, अगले मिसरे में कुछ और।

कुछ बिंब शायरों को विशेष रूप से पसंद होते हैं। सूरज एक ऐसा बिंब है जिसे लगभग हर शायर ने इस्तेमाल किया। शबाब मेरठी ने कहा :

मेरे छप्पर के मुकाबिल आठ मंजिल का मकान

तुम मेरे हिस्से की शायद धूप भी खा जाओगे।

सूरज पर ही जावेद अख्तर ने कहा :

ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया

कुछ लोग मेरे हिस्से की सूरज भी खा गए

लेकिन अब देखिए सूरज पर राहत इंदौरी का लहजा और उनके शब्द :

मैं ने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है

मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए

सूरज पर ही राहत के दो और अश्आर देखिए :

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ

सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार

आईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गए

राहत इंदौरी के जाने से देश ने एक ऐसा शायर खो दिया है जिसे पढऩे वालों से अधिक सुनने वाले मिले। इंतकाल तो राहत के जिस्म ने फर्माया है, राहत का शायर देश को याद रहेगा। राहत का यह शे'र आज उनके कई प्रशंसकों का बयान हो सकता है :

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूंगा उसे

जहां-जहां से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे

अब राहत दिखाई नहीं देंगे बस उनकी आवाज सुनाई देती रहेगा। उन्हें दो गज जमीं के सत्य का भान था शायद इसीलिए बहुत पहले लिखा था :

दो गज सही ये मेरी मिल्कियत तो है

ऐ मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया।