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RSS मानहानि मामले में राहुल गांधी को राहत, बॉम्बे HC ने भिवंडी कोर्ट के आदेश को किया रद्द

Rahul Gandhi RSS defamation Case बॉम्बे हाईकोर्ट ने भिवंडी कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक कार्यकर्ता द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि मामले में सबूत के तौर पर कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों को अनुमति दी गई थी। न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण ने राहुल की याचिका पर यह आदेश पारित किया है।

By Agency Edited By: Mahen Khanna Updated: Fri, 12 Jul 2024 12:08 PM (IST)
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Rahul Gandhi RSS defamation Case राहुल को राहत।

एजेंसी, मुंबई। Rahul Gandhi RSS defamation Case कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को बॉम्बे हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने भिवंडी कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक कार्यकर्ता द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि मामले में सबूत के तौर पर कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों को अनुमति दी गई थी।

राहुल की याचिका पर आदेश पारित

न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण ने राहुल की याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि ट्रायल कोर्ट ने आरएसएस पदाधिकारी राजेश कुंटे को तय समय के बाद भी कुछ दस्तावेज पेश करने की अनुमति दी थी।

याचिका में की गई थी ये मांग

बीते तीन जून को ठाणे स्थित भिवंडी मजिस्ट्रेट अदालत ने आरएसएस कार्यकर्ता द्वारा प्रस्तुत कुछ दस्तावेजों को रिकॉर्ड में लिया था। मजिस्ट्रेट अदालत ने कथित मानहानिकारक भाषण की प्रतिलिपि को साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर लिया था, जिसके आधार पर मानहानि का मामला दायर किया गया था।

गांधी ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि मजिस्ट्रेट का आदेश, कुंटे द्वारा दायर एक अन्य याचिका में उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के आदेश का उल्लंघन है।

कुंटे की याचिका पहले हो चुकी खारिज

बता दें कि 2021 में एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने कुंटे द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें मांग की गई थी कि राहुल गांधी कथित अपमानजनक भाषण को या तो स्वीकार करें या अस्वीकार करें।

न्यायमूर्ति डेरे ने तर्क दिया था कि किसी आरोपी व्यक्ति को उक्त याचिका के अनुलग्नकों को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

गांधी ने वर्तमान याचिका में दावा किया है कि उच्च न्यायालय के 2021 के आदेश के बावजूद, मजिस्ट्रेट ने उन्हीं दस्तावेजों को रिकॉर्ड में ले लिया।