बाघों के संरक्षण के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध इस राज्य में बनेगा चौथा टाइगर रिजर्व
बाघों के संरक्षण के लिए तैयार किया गया विजन-2030। ये राज्य बाघों के संरक्षण के लिए देश ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसलिए दूर-दूर से यहां सैलानी आते हैं।
By Amit SinghEdited By: Updated: Sat, 11 May 2019 05:19 PM (IST)
जयपुर, जेएनएन। सरिस्का, रणथंबोर और मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध राजस्थान में अब एक और टाइगर रिजर्व बनाने की तैयारी चल रही है। राजस्थान में टाइगर कंजर्वेशन को तेजी देते हुए एक नया रोडमैप तैयार किया गया है। इसे विजन 2030 नाम दिया गया है।
टाइगर कंजर्वेशन योजना के तहत उदयपुर संभाग में पहाड़ियों के बीच कुंभलगड़ में बाघों को बसाने की तैयारी की जा रही है । करीब 1500 स्क्वायर किलोमीटर के कुंभलगढ़ क्षेत्र में पहले से कई वन्यजीव मौजूद है। कुंभलगढ़ में टाइगर बसाने के लिए दो दिन पूर्व दुनिया के प्रमुख वन्यजीव विशेषज्ञों एवं वन विभाग के अधिाकरियों की कार्यशाला आयोजित की गई।इस कार्यशाला में कुंभलगढ़ को प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व बनाने और टाइगर संरक्षण को लेकर चर्चा हुई। इसके साथ ही रणथंभौर,सरिस्कर और मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के संरक्षण को लेकर भी रोडमैप तैयार किया गया।
कुंभलगढ़ में टाइगर का इतिहास
मेवाड़ के कुंभलगढ़ में टाइगर बसाने की योजना को लेकर चल रही चर्चा के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि मेवाड़ राजपरिवार के पास रियासतकाल में यहां टाइगर की उपस्थिति के रिकॉर्ड उपलब्ध है। मेवाड़ में टाइगर के इतिहास को देखें तो 1882 में कोडियात में टाइगर का रिकॉर्ड है। इसके बाद 1925 में जयसमंद में टाइगर की उपस्थिति दर्ज की गई, फिर 1939 में बाघदडा में एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा टाइगर को मारने की बात एक किताब में पब्लिश हुई है। इसके बाद 1945 में दोबारा जयसमंद में टाइगर की उपस्थिति को दर्ज किया गया। 1952 कुआं खेडा चित्तोड़ में फिर टाइगर की उपस्थिति दर्ज की गयी। इसके साथ ही 1943-44 में पानरवा में टाइगर को मारे जाने की जानकारी रिकॉर्ड में है। आजादी के बाद 1952 में एक आदमखोर टाइगर को मारने के लिए वन विभाग द्वारा उस समय के एक व्यक्ति को पत्र लिखा गया था। इसके बाद ओगणा, डेढ़ मारिया फारेस्ट ब्लॉक सभी जगह समय समय पर टाइगर की उपस्तिथि दर्ज होती रही। इसे बाद 1982 में एक टाइगर भटक कर बस्ती में आ गया था। फिर 1993 में एक टाइगर डूंगरपुर के फारेस्ट में मरा हुआ मिला था। साथ ही रावली ताड़गढ़ एवं कुम्भलगढ़ में भी टाइगर की उपस्तिथि का रिकॉर्ड दर्ज है। वहीँ घाणे राव सादड़ी में भी टाइगर को मारे जाने का रिकॉर्ड उपलब्ध है। प्रदेश के वन मंत्री सुखराम विश्नोई ने बताया कि टाइगर के साथ ही अन्य वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर विभाग विशेषज्ञों से सलाह कर रहा है।
मेवाड़ के कुंभलगढ़ में टाइगर बसाने की योजना को लेकर चल रही चर्चा के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि मेवाड़ राजपरिवार के पास रियासतकाल में यहां टाइगर की उपस्थिति के रिकॉर्ड उपलब्ध है। मेवाड़ में टाइगर के इतिहास को देखें तो 1882 में कोडियात में टाइगर का रिकॉर्ड है। इसके बाद 1925 में जयसमंद में टाइगर की उपस्थिति दर्ज की गई, फिर 1939 में बाघदडा में एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा टाइगर को मारने की बात एक किताब में पब्लिश हुई है। इसके बाद 1945 में दोबारा जयसमंद में टाइगर की उपस्थिति को दर्ज किया गया। 1952 कुआं खेडा चित्तोड़ में फिर टाइगर की उपस्थिति दर्ज की गयी। इसके साथ ही 1943-44 में पानरवा में टाइगर को मारे जाने की जानकारी रिकॉर्ड में है। आजादी के बाद 1952 में एक आदमखोर टाइगर को मारने के लिए वन विभाग द्वारा उस समय के एक व्यक्ति को पत्र लिखा गया था। इसके बाद ओगणा, डेढ़ मारिया फारेस्ट ब्लॉक सभी जगह समय समय पर टाइगर की उपस्तिथि दर्ज होती रही। इसे बाद 1982 में एक टाइगर भटक कर बस्ती में आ गया था। फिर 1993 में एक टाइगर डूंगरपुर के फारेस्ट में मरा हुआ मिला था। साथ ही रावली ताड़गढ़ एवं कुम्भलगढ़ में भी टाइगर की उपस्तिथि का रिकॉर्ड दर्ज है। वहीँ घाणे राव सादड़ी में भी टाइगर को मारे जाने का रिकॉर्ड उपलब्ध है। प्रदेश के वन मंत्री सुखराम विश्नोई ने बताया कि टाइगर के साथ ही अन्य वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर विभाग विशेषज्ञों से सलाह कर रहा है।