उल्का पिंड गिरने से बना राजस्थान का रामगढ़ क्रेटर, है तीन किमी. से भी ज्यादा बड़ा
राजस्थान के बारां जिले में वैज्ञानिकों और पर्यटकों के लिए कौतूहल के साथ आकर्षण का केंद्र रहे रामगढ़ क्रेटर के बारे में विशेषज्ञों का दावा है कि यह उल्का पिंड गिरने से ही बना है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 11 Jun 2018 10:46 PM (IST)
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। राजस्थान के बारां जिले में वैज्ञानिकों और पर्यटकों के लिए कौतूहल के साथ आकर्षण का केंद्र रहे रामगढ़ क्रेटर के बारे में विशेषज्ञों का दावा है कि यह उल्का पिंड गिरने से ही बना है। यह क्रेटर 3.2 किलोमीटर के दायरे में फैला है और सबसे पहले इसकी खोज जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने वर्ष 1869 में की थी। करीब एक सदी बाद 1960 में जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन ने इसे क्रेटर तो घोषित किया, लेकिन इसके बनने के बारे में हमेशा ही अलग-अलग विचार सामने आते रहे हैं। अब हाल ही में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरिटेज (इंटेक) के केंद्रीय कार्यालय के चार विशेषज्ञों की टीम ने इसका दौरा किया और इसके बनने से संबंधी प्रमाण एकत्र किए हैं।
अभी देश में दो क्रेटर, एक मप्र, दूसरा महाराष्ट्र में
टीम के सदस्य प्रोफेसर विनोद अग्रवाल का दावा है कि करीब 75 हजार करोड़ वर्ष पूर्व तीन किलोमीटर लंबा एक उल्का पिंड यहां गिरा होगा और इसी से यहां चार किलोमीटर डाइमीटर की खाई बन गई। विशेषज्ञों के अनुसार हमारे देश में दो ही क्रेटर हैं। इनमें से एक महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में और दूसरा मध्य प्रदेश के शिवपुरी में है। अग्रवाल का कहना है कि रामगढ़ क्रेटर के बीच का भाग उठा हुआ है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के मापदंडों के अनुसार यह बताता है कि यह उल्का पिंड से बना है। टीम के समन्वयक और जियोलॉजिस्ट पुष्पेंद्र सिंह राणावत का कहना है कि यह भारत का दुर्लभ स्थान है, जो कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि जब कोई चीज नीचे गिरती है तो उसका समान असर दूसरी तरफ पड़ता है। इस क्रेटर में बीच का उठा हुआ हिस्सा इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि यह उल्का पिंड से बना है।
टीम के सदस्य प्रोफेसर विनोद अग्रवाल का दावा है कि करीब 75 हजार करोड़ वर्ष पूर्व तीन किलोमीटर लंबा एक उल्का पिंड यहां गिरा होगा और इसी से यहां चार किलोमीटर डाइमीटर की खाई बन गई। विशेषज्ञों के अनुसार हमारे देश में दो ही क्रेटर हैं। इनमें से एक महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में और दूसरा मध्य प्रदेश के शिवपुरी में है। अग्रवाल का कहना है कि रामगढ़ क्रेटर के बीच का भाग उठा हुआ है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के मापदंडों के अनुसार यह बताता है कि यह उल्का पिंड से बना है। टीम के समन्वयक और जियोलॉजिस्ट पुष्पेंद्र सिंह राणावत का कहना है कि यह भारत का दुर्लभ स्थान है, जो कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि जब कोई चीज नीचे गिरती है तो उसका समान असर दूसरी तरफ पड़ता है। इस क्रेटर में बीच का उठा हुआ हिस्सा इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि यह उल्का पिंड से बना है।
मान्यता की प्रक्रिया शुरू
राणावत ने कहा कि कनाडा स्थित ग्लोबल एजेंसी जल्द ही इसे दुनिया के 191 और भारत के तीसरे क्रेटर के रूप में मान्यता देगी। इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है। इंटेक के बारां चैप्टर से जुड़े जितेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि इसके बाद राजस्थान और बारां जियोलॉजिकल ग्लोबल मैप पर आ जाएंगे। उन्हें उम्मीद है कि 2020 में हो रही वल्र्ड जियोलॉजिकल सेमिनार में रामगढ़ क्रेटर को मान्यता मिल जाएगी। बोत्सवाना में गिरा क्षुद्रग्रह
हालांकि पत्थर के आकार का यह क्षुद्रग्रह धरती से टकराने से पहले वातावरण में दाखिल होते ही टूटकर बिखर गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक यह क्षुद्रग्रह करीब दो मीटर चौड़ा था। इस क्षुद्रग्रह का पता पहली बार कैतालिना स्काई सर्वे द्वारा दो जून को लगाया गया था। इस क्षुद्रग्रह को 2018 एलए के तौर पर चिह्न्ति किया गया था। इसका आकार इतना छोटा था कि माना जा रहा था कि यह धरती के वातावरण में सुरक्षित तरीके से टूटकर बिखरेगा। हालांकि इसके टूट के बिखरने का सटीक अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं था, लेकिन हिंद महासागर के आस-पास दक्षिण अफ्रीका से लेकर न्यू गिनी के बीच इसके बिखरने की संभावना जताई गई थी।
राणावत ने कहा कि कनाडा स्थित ग्लोबल एजेंसी जल्द ही इसे दुनिया के 191 और भारत के तीसरे क्रेटर के रूप में मान्यता देगी। इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है। इंटेक के बारां चैप्टर से जुड़े जितेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि इसके बाद राजस्थान और बारां जियोलॉजिकल ग्लोबल मैप पर आ जाएंगे। उन्हें उम्मीद है कि 2020 में हो रही वल्र्ड जियोलॉजिकल सेमिनार में रामगढ़ क्रेटर को मान्यता मिल जाएगी। बोत्सवाना में गिरा क्षुद्रग्रह
हालांकि पत्थर के आकार का यह क्षुद्रग्रह धरती से टकराने से पहले वातावरण में दाखिल होते ही टूटकर बिखर गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक यह क्षुद्रग्रह करीब दो मीटर चौड़ा था। इस क्षुद्रग्रह का पता पहली बार कैतालिना स्काई सर्वे द्वारा दो जून को लगाया गया था। इस क्षुद्रग्रह को 2018 एलए के तौर पर चिह्न्ति किया गया था। इसका आकार इतना छोटा था कि माना जा रहा था कि यह धरती के वातावरण में सुरक्षित तरीके से टूटकर बिखरेगा। हालांकि इसके टूट के बिखरने का सटीक अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं था, लेकिन हिंद महासागर के आस-पास दक्षिण अफ्रीका से लेकर न्यू गिनी के बीच इसके बिखरने की संभावना जताई गई थी।
रात में ही निकला दिन
शनिवार की शाम अफ्रीका के बोत्सवाना में आग के एक चमकीले गोले का नजारा इस अनुमान से मेल खा गया। यह क्षुद्रग्रह 17 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से धरती के वातावरण में शाम करीब पौने सात बजे बोत्सवाना स्थानीय समयानुसार प्रवेश किया। शाम का समय होने के कारण आग का चमकता गोला साफ तौर पर देखा गया। इससे पहले जब इस क्षुद्रग्रह का पता चला था तब यह लगभी चांद की कक्षा जितनी दूरी पर था, हालांकि उस समय इसकी पहचान नहीं हो सकी थी। चीन में रात में सूरज से अधिक रोशनी
धरती पर इस तरह का नजारा पहली बार देखने को नहीं मिला है। बोत्सवाना से एक दिन पहले चीन में भी एक क्षुद्रग्रह ने रात के अंधेरे में सूरज की तरह चमक कर कुछ सैकेंड के लिए दिन निकाल दिया था। कुछ लोगों ने इन दोनों जगहों के नजारे को अपने कैमरे में भी रिकॉर्ड किया था। हालांकि ये दोनों ही आकार में बेहद छोटे थे, जिसकी वजह से इन दोनों जगहों पर जान-मान की हानि नहीं हो सकी। लेकिन कई बार यह इससे कहीं बड़े होते हैं। इसलिए यह हमेशा से ही धरती पर अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए चिंता का सबब बने रहे हैं। जानकार मानते हैं कि हर साल इस आकार के करीब छह क्षुद्रग्रह धरती के विभिन्न हिस्सों से टकराते हैं। धरती के करीब से गुजरा क्षुद्रग्रह
आपको बता दें कि इसी वर्ष अप्रेल में भी एक क्षुद्रग्रह धरती के बेहद करीब से गुजरा था। यह क्षुद्रग्रह करीब फुटबाल के मैदान के आकार का था। इसका पता नासा के वैज्ञानिकों को महज 21 घंटे पहले चला था। स्पेस डॉट कॉम के अनुसार, 2018 जीई 3 नामक यह क्षुद्रग्रह हमारी धरती से करीब दो लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरा था। धरती के पास से गुजरने पर इसकी स्पीड़ एक लाख छह हजार किलोमीटर प्रति घंटे की थी। आकार की बात करें तो यह क्षुद्रग्रह करीब 47 से 100 मीटर चौड़ा था। वैज्ञानिकों की मानें तो यदि 2018 जीई 3 धरती से टकराता, तो इससे क्षेत्रीय स्तर पर ही नुकसान होता लेकिन इसके कण पूरे वातावरण में फैल जाते।50 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार
2011 में भी एक एक बड़ा क्षुद्रग्रह हमारी पृथ्वी के पास से गुजरा था। इसका नाम 2005 YU55 था। यह धरती से लगभग उसी दूरी पर से गुजरा था जिस दूरी पर चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाया करता है। यह करीब 400 मीटर व्यास वाली किसी चट्टान जैसा था। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह धरती से करीब 3 24 600 किलोमीटर दूर होकर गुजरा था। संख्या के हिसाब से यह दूरी काफी होती है। लेकिन इसकी रफ्तार को सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। जिस वक्त यह पृथ्वी के पास से गुजरा था उस वक्त इसकी रफ्तार करीब 50 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की थी। 1976 के बाद यह पहला मौका था जब कोई इतना बड़ा क्षुद्रग्रह धरती के इतने करीब से गुजरा था। विध्वंसक होता इसका टकराना
YU55 को दिसंबर 2005 में पहली बार देखा गया। इसके धरती से टकराने की संभावना न के ही बराबर थी, लेकिन यदि यह पृथ्वी से टकराता तो 1945 में हिरोशिमा या नागासाकी पर गिराये गये अमेरिकी परमाणु बमों से कई हजार गुणा शक्तिशाली बम के बराबर विध्वंसक होता। ऐसी कोई भी टक्कर धरती पर जबरदस्त भूकंप ला सकती है और समुद्रों में त्सुनामी लहरें भी उठ सकती हैं। खगोलविदों की गणनाओं के अनुसार "2005 YU55" जैसे अपेक्षाकृत बड़े क्षुद्रग्रह भी औसतन हर 30 वर्षों पर पृथ्वी के पास से गुज़रते हैं। इस तरह का अगला क्षुद्रग्रह, जिसका वैज्ञानिकों को पता है, 27 साल बाद, 2028 में पृथ्वी के पास से गुज़रेगा। खत्म हो गए डायनासोर
गौरतलब है कि करीब डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व एक क्षुद्रग्रह जर्मनी में श्वैबिश अल्ब नामक इलाके में गिरा था। उससे वहाँ जो क्रेटर (गड्ढा) बना है, उसे आज ''नौएर्डलिंगर रीस'' के नाम से जाना जाता है। यह करीब एक किलोमीटर चौड़ा था। इतना ही नहीं करीब साढ़े 6 करोड़ साल पहले करीब 10 किलोमीटर चौड़ा एक क्षुद्रग्रह मेक्सिको के आज के यूकातान प्रायद्वीप पर गिरा था। माना जाता है कि इसकी ही वजह से उस समय की डायनॉसर प्रजातियों का धरती से पूरी तरह से विनाश हो गया था। साइबेरिया की घटना
आधुनिक इतिहास में 30 जून, 1908 को, रूसी साइबेरिया की तुंगुस्का नदी वाले वीरान इलाके में ऐसी ही एक घटना हुई थी, जो वर्षों तक एक अबूझ पहेली बनी रही। उस दिन वहां 70 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से कोई क्षुद्रग्रह या उल्का पिंड जमीन से टकराया था। टक्कर से हुए विस्फोट से जो शॉक वेव फैली, उनमें हिरोशिमा वाले कई सौ परमाणु बमों जितनी शक्ति छिपी थी, जबकि वह पिंड मुश्किल से केवल 50 मीटर ही बड़ा था।8321 क्षुद्रग्रह सूचीबद्ध
अंतरिक्ष में अब भी हज़ारों, शायद लाखों ऐसे पिंड हो सकते हैं, जो पृथ्वी के निकट आ सकते हैं, पर जिनका अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इसीलिए अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वैज्ञानिक उनकी टोह लेने, उन पर नजर रखने और उनकी सूची बनाने में लगे रहते हैं। पृथ्वी के निकटवर्ती अंतरिक्ष में इस तरह के अब तक कुल 8321 ऐसे क्षुद्रग्रह सूचीबद्ध किये जा चुके हैं, जिनमें से 830 ऐसे हैं, जो कम से कम एक किलोमीटर बड़े हैं। वैज्ञानिकों की गणनाओं के अनुसार, कम से कम 30 मीटर बड़े पिंड ही पृथ्वी पर कोई नुकसान पैदा कर सकते हैं। सिद्धांततः हर कुछ सौ वर्षों पर ऐसी कोई टक्कर हो सकती है। रूस में गिरा उल्कापिंड
फरवरी 2013 में रूस में यूराल में आंखें चुंधिया देने वाली रोशनी छोड़ते एक उल्कापिंड गिरा था। इसके धरती से टकराने की वजह से रूस में करीब एक हजार लोग घायल हो गए थे। इसके चलते कई इमारतों की खिड़कियां टूट गई और लोगों में दहशत फैल गई थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस उल्कापिंड का वजन करीब 10 टन रहा था। यह सुपरसोनिक गति से रूस में यूराल की धरती पर टकराया था। टकराते ही इसमें जबरदस्त धमका हुआ था जिसकी वजह से सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।54 हजार किमी प्रति घंटे की थी रफ्तार
इस घटना के बाद रूसी विज्ञान अकादमी के विशेषज्ञों ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि इस उल्कापिंड ने चिल्याबिंक्स इलाके में धरती के वायुमंडल में करीब 54,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से प्रवेश किया था। जब यह धरती से लगभग 50 किलोमीटर दूर था, तभी कई छोटे टुकड़ों में बिखर गया था। इसके टुकड़ों के गिरने से धमाका हुआ और आस पास के घरों की खिड़कियां चटक गईं। उल्कापिंडें जब धरती के वातावरण में प्रवेश करती हैं तो भयंकर आवाज करती हैं क्योंकि वे आवाज की गति से भी तेजी से आती हैं।क्या होते हैं क्षुद्रग्रह
अंतरिक्ष में मौजूद टूटे हुए तारों और क्षुद्रग्रहों के छोटे छोटे हिस्सों को उल्कापिंड कहते हैं। ये कचरे की तरह अंतरिक्ष में बिखरे रहते हैं। जब ये धरती के माहौल में प्रवेश करते हैं, तो उल्कापिंड कहलाते हैं। ज्यादातर उल्कापिंड पर्यावरण में घुसने के बाद ही बिखर जाते हैं, जबकि कुछ घर्षण को बर्दाश्त कर लेते हैं और एक ही टुकड़े में गिरते हैं। धरती पर गिरते हुए इनका तापमान 3 हजार डिग्री से भी अधिक तक पहुंच जाता है। आपको बता दें कि 2000 से 2013 के बीच ही धरती से 26 ऐसे क्षुद्रग्रह टकराए जिनकी विस्फोटक क्षमता 1 से 600 किलोटन टीएनटी के बीच थी।खत्म हो सकता है देश और महाद्वीप
कैलिफोर्निया में स्थित बी-612 फाउंडेशन के संस्थापक और सीईओ एड लू मानते हैं कि कई क्षुद्रग्रहों का पता समय रहते लगा लिया जाता है। उनका यह भी कहना है कि कुछ क्षुद्रग्रह न सिर्फ किसी देश को तबाह कर सकते हैं बल्कि पूरे महाद्वीप का भी अंत कर सकते हैं। उनके मुताबिक हम नहीं जानते कि अगली टक्कर कहां और कब हो सकती है इसलिए अगर हम अब तक शहरों को तबाह करने वाले प्रलयंकारी क्षुद्रग्रहों की टक्कर से बचे हुए हैं तो यह सिर्फ संयोग की बात है।
शनिवार की शाम अफ्रीका के बोत्सवाना में आग के एक चमकीले गोले का नजारा इस अनुमान से मेल खा गया। यह क्षुद्रग्रह 17 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से धरती के वातावरण में शाम करीब पौने सात बजे बोत्सवाना स्थानीय समयानुसार प्रवेश किया। शाम का समय होने के कारण आग का चमकता गोला साफ तौर पर देखा गया। इससे पहले जब इस क्षुद्रग्रह का पता चला था तब यह लगभी चांद की कक्षा जितनी दूरी पर था, हालांकि उस समय इसकी पहचान नहीं हो सकी थी। चीन में रात में सूरज से अधिक रोशनी
धरती पर इस तरह का नजारा पहली बार देखने को नहीं मिला है। बोत्सवाना से एक दिन पहले चीन में भी एक क्षुद्रग्रह ने रात के अंधेरे में सूरज की तरह चमक कर कुछ सैकेंड के लिए दिन निकाल दिया था। कुछ लोगों ने इन दोनों जगहों के नजारे को अपने कैमरे में भी रिकॉर्ड किया था। हालांकि ये दोनों ही आकार में बेहद छोटे थे, जिसकी वजह से इन दोनों जगहों पर जान-मान की हानि नहीं हो सकी। लेकिन कई बार यह इससे कहीं बड़े होते हैं। इसलिए यह हमेशा से ही धरती पर अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए चिंता का सबब बने रहे हैं। जानकार मानते हैं कि हर साल इस आकार के करीब छह क्षुद्रग्रह धरती के विभिन्न हिस्सों से टकराते हैं। धरती के करीब से गुजरा क्षुद्रग्रह
आपको बता दें कि इसी वर्ष अप्रेल में भी एक क्षुद्रग्रह धरती के बेहद करीब से गुजरा था। यह क्षुद्रग्रह करीब फुटबाल के मैदान के आकार का था। इसका पता नासा के वैज्ञानिकों को महज 21 घंटे पहले चला था। स्पेस डॉट कॉम के अनुसार, 2018 जीई 3 नामक यह क्षुद्रग्रह हमारी धरती से करीब दो लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरा था। धरती के पास से गुजरने पर इसकी स्पीड़ एक लाख छह हजार किलोमीटर प्रति घंटे की थी। आकार की बात करें तो यह क्षुद्रग्रह करीब 47 से 100 मीटर चौड़ा था। वैज्ञानिकों की मानें तो यदि 2018 जीई 3 धरती से टकराता, तो इससे क्षेत्रीय स्तर पर ही नुकसान होता लेकिन इसके कण पूरे वातावरण में फैल जाते।50 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार
2011 में भी एक एक बड़ा क्षुद्रग्रह हमारी पृथ्वी के पास से गुजरा था। इसका नाम 2005 YU55 था। यह धरती से लगभग उसी दूरी पर से गुजरा था जिस दूरी पर चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाया करता है। यह करीब 400 मीटर व्यास वाली किसी चट्टान जैसा था। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह धरती से करीब 3 24 600 किलोमीटर दूर होकर गुजरा था। संख्या के हिसाब से यह दूरी काफी होती है। लेकिन इसकी रफ्तार को सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। जिस वक्त यह पृथ्वी के पास से गुजरा था उस वक्त इसकी रफ्तार करीब 50 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की थी। 1976 के बाद यह पहला मौका था जब कोई इतना बड़ा क्षुद्रग्रह धरती के इतने करीब से गुजरा था। विध्वंसक होता इसका टकराना
YU55 को दिसंबर 2005 में पहली बार देखा गया। इसके धरती से टकराने की संभावना न के ही बराबर थी, लेकिन यदि यह पृथ्वी से टकराता तो 1945 में हिरोशिमा या नागासाकी पर गिराये गये अमेरिकी परमाणु बमों से कई हजार गुणा शक्तिशाली बम के बराबर विध्वंसक होता। ऐसी कोई भी टक्कर धरती पर जबरदस्त भूकंप ला सकती है और समुद्रों में त्सुनामी लहरें भी उठ सकती हैं। खगोलविदों की गणनाओं के अनुसार "2005 YU55" जैसे अपेक्षाकृत बड़े क्षुद्रग्रह भी औसतन हर 30 वर्षों पर पृथ्वी के पास से गुज़रते हैं। इस तरह का अगला क्षुद्रग्रह, जिसका वैज्ञानिकों को पता है, 27 साल बाद, 2028 में पृथ्वी के पास से गुज़रेगा। खत्म हो गए डायनासोर
गौरतलब है कि करीब डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व एक क्षुद्रग्रह जर्मनी में श्वैबिश अल्ब नामक इलाके में गिरा था। उससे वहाँ जो क्रेटर (गड्ढा) बना है, उसे आज ''नौएर्डलिंगर रीस'' के नाम से जाना जाता है। यह करीब एक किलोमीटर चौड़ा था। इतना ही नहीं करीब साढ़े 6 करोड़ साल पहले करीब 10 किलोमीटर चौड़ा एक क्षुद्रग्रह मेक्सिको के आज के यूकातान प्रायद्वीप पर गिरा था। माना जाता है कि इसकी ही वजह से उस समय की डायनॉसर प्रजातियों का धरती से पूरी तरह से विनाश हो गया था। साइबेरिया की घटना
आधुनिक इतिहास में 30 जून, 1908 को, रूसी साइबेरिया की तुंगुस्का नदी वाले वीरान इलाके में ऐसी ही एक घटना हुई थी, जो वर्षों तक एक अबूझ पहेली बनी रही। उस दिन वहां 70 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से कोई क्षुद्रग्रह या उल्का पिंड जमीन से टकराया था। टक्कर से हुए विस्फोट से जो शॉक वेव फैली, उनमें हिरोशिमा वाले कई सौ परमाणु बमों जितनी शक्ति छिपी थी, जबकि वह पिंड मुश्किल से केवल 50 मीटर ही बड़ा था।8321 क्षुद्रग्रह सूचीबद्ध
अंतरिक्ष में अब भी हज़ारों, शायद लाखों ऐसे पिंड हो सकते हैं, जो पृथ्वी के निकट आ सकते हैं, पर जिनका अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इसीलिए अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वैज्ञानिक उनकी टोह लेने, उन पर नजर रखने और उनकी सूची बनाने में लगे रहते हैं। पृथ्वी के निकटवर्ती अंतरिक्ष में इस तरह के अब तक कुल 8321 ऐसे क्षुद्रग्रह सूचीबद्ध किये जा चुके हैं, जिनमें से 830 ऐसे हैं, जो कम से कम एक किलोमीटर बड़े हैं। वैज्ञानिकों की गणनाओं के अनुसार, कम से कम 30 मीटर बड़े पिंड ही पृथ्वी पर कोई नुकसान पैदा कर सकते हैं। सिद्धांततः हर कुछ सौ वर्षों पर ऐसी कोई टक्कर हो सकती है। रूस में गिरा उल्कापिंड
फरवरी 2013 में रूस में यूराल में आंखें चुंधिया देने वाली रोशनी छोड़ते एक उल्कापिंड गिरा था। इसके धरती से टकराने की वजह से रूस में करीब एक हजार लोग घायल हो गए थे। इसके चलते कई इमारतों की खिड़कियां टूट गई और लोगों में दहशत फैल गई थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस उल्कापिंड का वजन करीब 10 टन रहा था। यह सुपरसोनिक गति से रूस में यूराल की धरती पर टकराया था। टकराते ही इसमें जबरदस्त धमका हुआ था जिसकी वजह से सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।54 हजार किमी प्रति घंटे की थी रफ्तार
इस घटना के बाद रूसी विज्ञान अकादमी के विशेषज्ञों ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि इस उल्कापिंड ने चिल्याबिंक्स इलाके में धरती के वायुमंडल में करीब 54,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से प्रवेश किया था। जब यह धरती से लगभग 50 किलोमीटर दूर था, तभी कई छोटे टुकड़ों में बिखर गया था। इसके टुकड़ों के गिरने से धमाका हुआ और आस पास के घरों की खिड़कियां चटक गईं। उल्कापिंडें जब धरती के वातावरण में प्रवेश करती हैं तो भयंकर आवाज करती हैं क्योंकि वे आवाज की गति से भी तेजी से आती हैं।क्या होते हैं क्षुद्रग्रह
अंतरिक्ष में मौजूद टूटे हुए तारों और क्षुद्रग्रहों के छोटे छोटे हिस्सों को उल्कापिंड कहते हैं। ये कचरे की तरह अंतरिक्ष में बिखरे रहते हैं। जब ये धरती के माहौल में प्रवेश करते हैं, तो उल्कापिंड कहलाते हैं। ज्यादातर उल्कापिंड पर्यावरण में घुसने के बाद ही बिखर जाते हैं, जबकि कुछ घर्षण को बर्दाश्त कर लेते हैं और एक ही टुकड़े में गिरते हैं। धरती पर गिरते हुए इनका तापमान 3 हजार डिग्री से भी अधिक तक पहुंच जाता है। आपको बता दें कि 2000 से 2013 के बीच ही धरती से 26 ऐसे क्षुद्रग्रह टकराए जिनकी विस्फोटक क्षमता 1 से 600 किलोटन टीएनटी के बीच थी।खत्म हो सकता है देश और महाद्वीप
कैलिफोर्निया में स्थित बी-612 फाउंडेशन के संस्थापक और सीईओ एड लू मानते हैं कि कई क्षुद्रग्रहों का पता समय रहते लगा लिया जाता है। उनका यह भी कहना है कि कुछ क्षुद्रग्रह न सिर्फ किसी देश को तबाह कर सकते हैं बल्कि पूरे महाद्वीप का भी अंत कर सकते हैं। उनके मुताबिक हम नहीं जानते कि अगली टक्कर कहां और कब हो सकती है इसलिए अगर हम अब तक शहरों को तबाह करने वाले प्रलयंकारी क्षुद्रग्रहों की टक्कर से बचे हुए हैं तो यह सिर्फ संयोग की बात है।