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किसानों के सामने बड़ा संकट, हाउती विद्रोहियों की वजह से देश में डीएपी की किल्लत; लाल सागर में बढ़ी टेंशन

रबी फसलों की बुआई का मौसम चल रहा है लेकिन लाल सागर में संकट की वजह से किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट डीएपी का है। देश को प्रत्येक वर्ष खरीफ एवं रबी दोनों फसलों के लिए 90 से सौ लाख टन डीएपी की जरूरत पड़ती है जिसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। बाकी के लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 04 Nov 2024 05:00 AM (IST)
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लाल सागर में टेंशन का डीएपी की आपूर्ति पर असर। ( फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गेहूं समेत रबी फसलों की बुआई का मौसम चल रहा है, लेकिन लाल सागर में संकट की वजह से किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट डीएपी का है। देश को प्रत्येक वर्ष खरीफ एवं रबी दोनों फसलों के लिए 90 से सौ लाख टन डीएपी की जरूरत पड़ती है, जिसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। बाकी के लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस वर्ष भी देश में लगभग 93 लाख डीएपी की जरूरत बताई गई है, लेकिन घरेलू उत्पादन एवं आयात दोनों को मिलाकर उपलब्धता लगभग 75 लाख टन डीएपी की है।

इन देशों से आती है डीएपी

संकट दिख रहा है, लेकिन केंद्र सरकार ने किसानों को आश्वस्त किया है कि उर्वरकों की कमी नहीं होने दी जाएगी। तरल संस्करण नैनो डीएपी के भी इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। डीएपी संकट के बारे में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि हमारी निर्भरता दूसरे देशों पर ज्यादा है। मुख्य रूप से रूस, जार्डन एवं इजरायल से आयात करना पड़ता है।

हाउती विद्रोहियों ने बढ़ाई टेंशन

डीएपी के कच्चे माल के रूप में म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का आयात जार्डन से करीब 30 प्रतिशत और इजरायल से 15 प्रतिशत होता है। हाल के दिनों में हाउती विद्रोहियों के आक्रमण के चलते लाल सागर का मार्ग अवरुद्ध होने से उर्वरक के जहाजों को दक्षिण अफ्रीका के रास्ते भेजना पड़ रहा है। इसके चलते पहले की तुलना में लगभग 6,500 किलोमीटर की दूरी अधिक तय करनी पड़ रही है। इसमें लगभग तीन सप्ताह का समय ज्यादा लग रहा है। दूरी और समय बढ़ने से उर्वरकों की आयात लागत बढ़ गई है। अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में भी वृद्धि हुई है।

बढ़ती जा रही डीएपी की मांग

तमाम चुनौतियों के बावजूद केंद्र सरकार ने किसानों को सस्ती दर पर उर्वरकों की उपलब्धता जारी रखते हुए कीमतों को भी स्थिर बनाए रखा है। किसानों को प्रत्येक 50 किलोग्राम डीएपी बैग के लिए 1,350 रुपये देने पड़ते हैं। कृषि के आधुनिकीकरण एवं उच्च उत्पादकता दर की जरूरत के हिसाब से डीएपी का आयात भी बढ़ता जा रहा है। 2019-2020 में 48.70 लाख टन डीएपी का आयात हुआ था, जो 2023-24 में बढ़कर 55.67 लाख टन तक पहुंच गया। इसी तरह 2023-24 में में डीएपी का घरेलू उत्पादन मात्र 42.93 लाख टन था।

पंजाब-हरियाणा से ज्यादा मांग

डीएपी की ज्यादा मांग पंजाब एवं हरियाणा से आ रही है, जहां रबी फसलों की बुआई प्रारंभ हो चुकी है। बाकी राज्यों में अभी धान की फसलें पूरी तरह नहीं कटी हैं। मध्य नवंबर और दिसंबर से अन्य राज्यों में भी मांग बढ़ने वाली है। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने दावा किया है कि खाद की कमी नहीं होने दी जाएगी। पंजाब में डीएपी की कमी के आरोपों को खारिज करते हुए ब्योरा भी दिया है कि केंद्र ने अक्टूबर में पंजाब को 92 हजार टन डीएपी एवं 18 हजार टन एनपीके की आपूर्ति की है।

नवंबर के पहले हफ्ते में भी केंद्र द्वारा 50 हजार टन डीएपी पंजाब को भेजा जाना है। हरियाणा का भी ऐसा ही हाल है। केंद्र की रिपोर्ट बताती है कि सितंबर में हरियाणा की ओर से 60 हजार टन डीएपी की मांग आई थी। मगर केंद्र की तरफ से 64 हजार 708 टन डीएपी की आपूर्ति की गई, जो मांग से ज्यादा है।

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