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Literacy in India: भारत के समक्ष राष्ट्रीय साक्षरता दर के अंतर को कम करना एक बड़ी चुनौती

Literacy in India भारत के समक्ष राष्ट्रीय साक्षरता दर को सौ फीसद तक पहुंचाने के अलावा स्त्री-पुरुष साक्षरता के अंतर को कम करना भी एक बड़ी चुनौती है। पिछली जनगणना के अनुसार स्त्री-पुरुष साक्षरता दर में 17 फीसद का अंतर है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 14 Oct 2020 12:00 PM (IST)
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यह अभियान ‘साक्षर भारत-आत्मनिर्भर भारत’ के ध्येय को भी चरितार्थ करेगा।
सुधीर कुमार। Literacy in India केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने वयस्क शिक्षा को बढ़ावा देने तथा निरक्षरता के उन्मूलन के लिए ‘पढ़ना-लिखना अभियान’ की शुरुआत की है। इस अभियान का मकसद 2030 तक देश में साक्षरता दर को सौ फीसद तक हासिल करना, महिला साक्षरता को बढ़ावा देना तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति सहित दूसरे वंचित समूहों के बीच शिक्षा को लेकर अलख जगाना है।

खास बात यह है कि इस अभियान के जरिये लोगों को साक्षर बनाने के साथ-साथ उनके कौशल विकास पर भी ध्यान दिया जाना है। यह अभियान ‘साक्षर भारत-आत्मनिर्भर भारत’ के ध्येय को भी चरितार्थ करेगा। संपूर्ण साक्षरता को हासिल करने के लिए 2009 में देश में ‘साक्षर भारत कार्यक्रम’ की शुरुआत की गई थी, जिसके तहत राष्ट्रीय स्तर पर साक्षरता दर को 80 फीसद तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में साक्षरता दर 74 फीसद थी। वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के हाल के सर्वेक्षण में वर्तमान में देश की कुल साक्षरता दर करीब 77.7 प्रतिशत आंकी गई। उस अभियान की कमियों को सुधार कर तथा लक्ष्य को बड़ा करते हुए इस नूतन कार्यक्रम के जरिये मोदी सरकार ने संपूर्ण साक्षरता का रोडमैप तैयार किया है।

यूनेस्को के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा अनपढ़ लोग भारत में हैं। वहीं भारत की मौजूदा साक्षरता दर विश्व की साक्षरता दर (84) से कम है। ऐसे में यह कार्यक्रम निरक्षरता के उन्मूलन की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।एक प्रगतिशील समाज में निरक्षरता को अभिशाप समझा जाता है। गरिमामयी तथा उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्ति को कम से कम साक्षर होना बहुत जरूरी है। साक्षरता के अभाव में व्यक्ति अपनी प्रच्छन्न क्षमताओं से अनभिज्ञ होता है, जिससे एक कुशल मानव संसाधन के रूप में स्वयं को समाज में स्थापित नहीं कर पाता है। वह अपने कर्तव्य और अधिकारों के प्रति भी सचेत नहीं होता। इस तरह वह समाज में उपेक्षित जीवन जीने को विवश होता है। चूंकि साक्षर एवं जागरूक समाज ही देश को उन्नति की राह पर अग्रसर रखता है।

अत: यह आवश्यक है कि बाधा एवं भेदभाव रहित शिक्षा तक सबों की समान पहुंच हो। साक्षरता दर के मामले में केरल, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और असम जैसे राज्यों के आंकड़े जहां उत्साहित करते हैं, वहीं आंध्र प्रदेश, राजस्थान, बिहार, तेलंगना और उत्तर प्रदेश के आंकड़े निराश करते हैं। इन राज्यों में साक्षरता का स्तर बढ़ाने के लिए कड़े प्रयत्न करने होंगे। तभी जाकर सौ फीसद साक्षरता के लक्ष्य को हासिल करना मुमकिन हो पाएगा। बहरहाल भारत के समक्ष राष्ट्रीय साक्षरता दर को सौ फीसद तक पहुंचाने के अलावा स्त्री-पुरुष साक्षरता के अंतर को कम करना भी एक बड़ी चुनौती है। पिछली जनगणना के अनुसार स्त्री-पुरुष साक्षरता दर में 17 फीसद का अंतर है।

(लेखक बीएचयू में अध्येता हैं)