दोबारा जी उठी विलुप्त होने के शोक में ‘डूबी’ एक नदी, साल भर की मेहनत से बदल गई तस्वीर
दूसरी नदियों को पुनर्जीवन की राह दिखाएगी अयोध्या की ऐतिहासिक तमसा साल भर की मेहनत से बदल गई तस्वीर।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 16 Mar 2020 09:32 AM (IST)
नवनीत श्रीवास्तव, अयोध्या। सरकारी प्रयास सिर्फ कागजों का पेट भरने के लिए नहीं होते। सही मंशा से उनका उपयोग हो तो व्यवस्था की तस्वीर बदल जाती है...। कुछ समय पहले तक विलुप्त होने के शोक में ‘डूबी’ त्रेतायुग की तमसा नदी अब गवाह के रूप में प्रवाहमान है। जिस सरकारी मद यानी मनरेगा को ‘नाकामी के स्मारक’ का तमगा मिला, भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है, उसी के दम पर तमसा नदी में नई जान फूंक दी गई। पुनरुद्धार के बाद आज तमसा न केवल दोबारा कल-कल करती बह रही है बल्कि जलीय जीवों, परिंदों को भी पोष रही है।
सिंचाई का बेहतरीन साधन बन चुकी है। यही नहीं, अयोध्या में हुए इस प्रयास से केंद्र सरकार भी गदगद है। ऐसे में राष्ट्रीय पुरस्कार की दौड़ में शामिल करने के साथ ही तमसा के पुनर्जीवन को दम तोड़ती देश की अन्य नदियों के लिए नजीर बनाने के बारे में भी शिद्दत से सोचा जा रहा है।जानें तमसा के बारे में : अयोध्या में पौराणिक तमसा नदी की कुल लंबाई 151 किलोमीटर है। इसमें करीब 25 किलोमीटर दायरा ऐसा था, जो करीबकरीब विलुप्त था और मैदान के रूप में तब्दील हो चुका था। मवई विकासखंड के लखनीपुर गांव के सरोवर को नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। तमसा नदी जिले में कुल दस ब्लॉकों से होकर गुजरती है। रास्ते में करीब 77 गांव भी पड़ते हैं।
आजमगढ़ स्थित सरयू में होता है संगम : तमसा नदी बाराबंकी जिले के कुछ हिस्सों से होती हुई अयोध्या के रुदौली, अमानीगंज, सोहावल, मिल्कीपुर, मसौधा, बीकापुर, तारुन आदि ब्लॉक क्षेत्र से गुजरती हुई अंबेडकरनगर में जाती है। तमसा कुल 264 किलोमीटर का सफर तय कर आजमगढ़ तक पहुंच कर पुण्य सलिला सरयू से मिलती हैं।प्रशासन ने मन बनाया, मनरेगा से जी उठी तमसा : तमसा नदी को नवजीवन प्रदान करने की मुहिम पिछले साल जनवरी में आरंभ की गई। इस दौरान जीर्णोद्धार पर करीब सवा सात करोड़ रुपये खर्च हुए। वर्तमान में 149.11 किमी की खोदाई का काम पूरा कर लिया गया है। इस प्रयास से जहां श्रमिकों को रोजगार मिल रहा है, वहीं स्थाई परिसंपत्ति का भी सृजन हुआ। साल भर पहले तक तमसा का जो स्थान खेत में तब्दील हो चुका था, अब वहां भी नाव चल रही है।
पुरस्कार के लिए हुआ था आवेदन : भारत सरकार का जल शक्ति मंत्रालय जल संरक्षण व जल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार देता है। इसी कड़ी में जिला प्रशासन ने आवेदन भेजा। मंत्रालय ने तमसा के जीर्णोद्धार का भौतिक सत्यापन किया और काम से संतुष्टि जताई।तट पर रोपे गए दो लाख पौधे : तमसा न केवल पुनरुद्धार की नजीर है, बल्कि जल के साथ पर्यावरण संरक्षण की भी अद्भुत मिसाल बन रही है। वन विभाग ने तमसा नदी के किनारे 10 सार्वजनिक स्थलों पर लगभग 70 हजार पौधों का रोपण किया जा चुका है। ग्राम पंचायतों के स्तर से लगभग एक लाख 23 हजार पौधे रोपित किए जा चुके हैं।
राम ने बिताई थी वनवास की पहली रात : तमसा के बारे में मान्यता है कि भगवान राम ने वन जाते समय पहली रात इसी नदी के तट पर गुजारी थी। यह सच्चाई न केवल रामचरितमानस सहित रामकथा से जुड़े ग्रंथों से पुष्ट होती है, बल्कि बीकापुर तहसील अंतर्गत तमसा नदी का गौराघाट तट आज भी पौराणिक स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है।पूर्व डीएम बने तमसा के भागीरथ : तमसा के भागीरथ पूर्व डीएम डॉ. अनिल पाठक बने। उन्होंने ही तमसा को जीवित करने के लिए मनरेगा को चुना। योजना में तमसा नदी के पांच किलोमीटर की परिधि के बरसाती नालों, तालाबों, झीलों एवं कुंओं को भी शामिल किया गया। नतीजा यह हुआ कि साल भर की मुहिम में ही तमसा नदी पानी से लबालब हो गई।
यह बड़ी बात है कि तमसा नदी राष्ट्रीय पुरस्कार की दौड़ में शामिल हुई है। यह मंडल की पहली नदी है, जिसे मनरेगा से नवजीवन मिला है।- नागेंद्र मोहन राम त्रिपाठी, उपायुक्त मनरेगाये भी पढ़ें:-76 साल की प्रभा सेमवाल की सोच और प्रयास से बदल गई बंजर भूमि की तकदीर
रक्षा विभाग में प्रशासनिक अधिकारी थीं, गरीब श्रमिकों के बच्चों का भविष्य गढ़ने में जुटीं भारती