Move to Jagran APP

देश-दुनिया को ग्लोबल वार्मिग की समस्या से मुक्ति दिलाएगी अक्षय ऊर्जा

Renewable Energy Sector In India अक्षय ऊर्जा हमारे तेल के आयात को कम करने एक स्थायी अर्थव्यवस्था बनाने और भारत को कार्बन मुक्त राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे उत्पादित बिजली की लागत भी कम होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 06 May 2022 05:29 PM (IST)
Hero Image
पीछे छूटता अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य। फाइल
नई दिल्ली, संजीव गुप्ता। भारत वर्ष 2022 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 175 गीगावाट और 2030 तक 500 गीगावाट करने का लक्ष्य हासिल करने में पिछड़ रहा है। वजह उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों का इस मोर्चे पर तय लक्ष्य के अनुरूप अपनी रफ्तार बरकरार नहीं रख पाना है। इन हालात में यह विचार करना बहुत जरूरी हो गया है कि भारत किस तरह ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में अपना योगदान कर सकता है।

देश के दक्षिणी क्षेत्र में तेलंगाना ने अपना अक्षय ऊर्जा लक्ष्य हासिल कर लिया है। उत्तरी क्षेत्र में सिर्फ राजस्थान ही इसमें आगे है। उसने 2022 का लक्ष्य हासिल किया है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने अपने लक्ष्य का 30 प्रतिशत भी हासिल नहीं किया है। इन दोनों राज्यों के पास 2022 के लिए 14 गीगावाट का लक्ष्य है। राजस्थान ने तो वर्तमान में 17 गीगावाट उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर लिया है, जबकि उत्तर प्रदेश चार गीगावाट के स्तर पर ही ठिठका हुआ है। उत्तराखंड (एक गीगावाट), पंजाब (दो गीगावाट) और हरियाणा (एक गीगावाट) में भी कहानी समान है। अक्षय ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी रहने वाले राज्य मुनाफा भी कमा रहे हैं। जैसे राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम लिमिटेड ने पिछले साल अक्षय ऊर्जा अपनाने के कारण 65 करोड़ रुपये का लाभ कमाया था।

इंटर गवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेंट चेंज (आइपीसीसी) का साफ कहना है कि ग्लोबल वार्मिग के दायरे को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए दुनिया को 2030 तक वार्षिक कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन 48 प्रतिशत तक कम करना ही होगा। साथ ही 2050 तक इसे नेट जीरो तक भी पहुंचाना होगा। मतलब यह कि सरकारों को अपनी नीतियों और उपायों को तेजी से पेश करने की आवश्यकता होगी। ग्लासगो में पिछले जलवायु शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के लिए जलवायु संबंधी लक्ष्यों को बढ़ाने की घोषणा की थी, जिसमें गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 2030 तक 500 गीगावाट तक बढ़ाना और अक्षय ऊर्जा के माध्यम से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत पूरा करना शामिल है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को हर साल 42 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादित करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपने इस लक्ष्य से चूक सकता है, क्योंकि वह रूफटाप सौर प्रतिष्ठानों को स्थापित करने में पिछड़ रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि विभिन्न राज्यों ने लक्ष्य के लिए अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं। भारत ने सौर ऊर्जा के माध्यम से 100 गीगावाट बिजली बनाने के लक्ष्य में से अब तक केवल 54 गीगावाट ही हासिल किया है। पिछले कुछ वर्षो में पवन ऊर्जा के माध्यम से बिजली उत्पादन की प्रक्रिया भी धीमी हो गई है। इसका मुख्य कारण यह है कि कुछ राज्यों मसलन उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक में निजी वितरण कंपनियों द्वारा बिजली खरीद समझौते रद कर दिए गए हैं।

आइपीसीसी की हालिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अधिकांश बिजली गैर जीवाश्म ईंधन से आनी चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि स्थिरता प्रदान करने और अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत को पहले सभी राज्यों के लिए एक सुसंगत नीति बनाने की आवश्यकता है। इसके बाद राज्य सरकारों को अपनी स्थानीय समस्याओं को हल करने की भी जरूरत है। ऐसी अर्थव्यवस्था बनाने की जरूरत है जहां निजी क्षेत्र को अवसर मिले। इसके लिए भारत को मांग और आपूर्ति, दोनों स्तरों पर समाधानों और नीतिगत परिवर्तनों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी। अगर उत्तरी ग्रिड को कार्बन मुक्त करना है तो उत्तर प्रदेश जैसे आसपास के राज्यों को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाना होगा, जो देश की बिजली हिस्सेदारी का लगभग 10 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। भारत में हमने राज्यों के बीच उभरता हुआ एक बड़ा अंतर भी देखा है। विकसित राज्य अक्षय ऊर्जा उत्पादन के मामले में आगे बढ़ रहे हैं। जबकि कई उत्तर भारतीय राज्यों ने इसमें अभी तक पकड़ नहीं बनाई है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में काफी संभावनाएं हैं, लेकिन राज्य स्तर पर इसे बढ़ावा देने की जरूरत है। इसमें दिल्ली की भी एक बड़ी भूमिका हो सकती है, क्योंकि उसके पास उच्चतम मांग है।

देखा जाए तो तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्य पवन ऊर्जा और स्वच्छ हाइड्रोजन में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं, जो पवन ऊर्जा उद्योग के लिए सदैव अग्रणी रहे हैं। भारतीय पवन ऊर्जा उद्योग 10,000 मेगावाट वार्षिक निर्माण क्षमता रखता है, जिसे आने वाले समय में सही नीति और वित्तीय सहायता के साथ 15,000 मेगावाट तक बढ़ाया जा सकता है। भारतीय पवन ऊर्जा क्षेत्र ने 80 प्रतिशत तक स्वदेशीकरण भी हासिल किया है, जो ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अनुरूप है। इसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विशेष लाभकारी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में पवन ऊर्जा का अहम योगदान है। पवन ऊर्जा से ग्रामीण क्षेत्रों में दो मिलियन से अधिक रोजगार प्राप्त होंगे, जिससे ग्रामीण इलाकों के विकास को भी एक नई दिशा मिलेगी। कुल मिलाकर अक्षय ऊर्जा हमारे तेल के आयात को कम करने, एक स्थायी अर्थव्यवस्था बनाने और भारत को कार्बन मुक्त राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे उत्पादित बिजली की लागत भी कम होगी।