Move to Jagran APP

जब तक समाज में भेदभाव है, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए: संघ प्रमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि जब तक समाज में भेदभाव है तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए। भेदभाव अदृश्य होते हुए भी समाज में मौजूद है। उन्होंने कहा कि जब तक ऐसा भेदभाव बना हुआ है संविधान में प्रदत्त आरक्षण का हम पूरा समर्थन करते हैं। सतही रूप से भेदभाव भले ही नजर न आये लेकिन यह समाज में व्याप्त है।

By AgencyEdited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 07 Sep 2023 12:05 AM (IST)
Hero Image
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत (फाइल फोटो)
नागपुर, पीटीआई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने बुधवार को कहा कि जब तक समाज में भेदभाव है, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए। भेदभाव अदृश्य होते हुए भी समाज में मौजूद है।

क्या कुछ बोले आरएसएस प्रमुख?

उन्होंने यह भी कहा कि अखंड भारत आज के युवाओं के बूढ़े होने से पहले एक वास्तविकता बन जाएगा। वह नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में लोगों को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान संघ प्रमुख ने कहा,

सामाजिक व्यवस्था में हमने अपने बंधुओं को पीछे रखा। हमने उनकी परवाह नहीं की। यह सिलसिला दो हजार साल तक चलता रहा। जब तक हम उन्हें समानता प्रदान नहीं कर देते, तब तक कुछ विशेष उपाय करने होंगे।

इसे भी पढ़ें: संविधान से हटेगा 'INDIA' शब्द? भाजपा सांसद बोले- इंडिया शब्द अंग्रेजों की दी गई एक गाली

उन्होंने कहा कि जब तक ऐसा भेदभाव बना हुआ है, संविधान में प्रदत्त आरक्षण का हम पूरा समर्थन करते हैं। सतही रूप से भेदभाव भले ही नजर न आये, लेकिन यह समाज में व्याप्त है। भागवत ने कहा कि यह केवल वित्तीय या राजनीतिक समानता सुनिश्चित करने के लिए नहीं, बल्कि सम्मान देने के लिए भी है।

इसे भी पढ़ें: दुनिया में खत्म हो रही परिवार व्यवस्था, लेकिन भारत इससे..., 'इंडिया बनाम भारत' पर क्या बोले RSS प्रमुख भागवत

एक छात्र के सवाल का जवाब देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि यदि आप इसी तरह से काम करते रहेंगे, तो आपके बूढ़े होने से पहले ही यह साकार हो जाएगा। उन्होंने कहा,

अब स्थिति ऐसी बन रही है कि जो लोग भारत से अलग हुए उन्हें लगने लगा है कि उन्होंने गलती कर दी है। उन सभी को लगता है कि उन्हें फिर से भारत में होना चाहिए। उन्हें लगता है कि ऐसा करने के लिए उन्हें नक्शे पर मौजूद रेखाओं को मिटाना होगा। लेकिन, ऐसा नहीं है। भारत में होने का अर्थ भारत की प्रकृति (स्वभाव) को स्वीकार करना है।