जानें क्यों सालों से रुका है इसरो का मानव यान मिशन..
निगरानी, संचार और नैविगेशन क्षमताओं को मजबूत करना है प्राथमिकता
हैदराबाद (प्रेट्र)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का मानव अंतरिक्ष यान बनाने का कार्यक्रम पिछले एक दशक से धूल फांक रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण संसाधन की कमी है। इस कारण यह कार्यक्रम इसरो की शीर्ष प्राथमिकता सूची से नदारद है। इसरो के चेयरमैन पद से इस माह सेवानिवृत्त हुए एएस किरण कुमार ने बताया कि संगठन की प्राथमिकता निगरानी, संचार और नैविगेशन क्षमताओं को मजबूत करना है।
ऐसे में इस वक्त मानव अंतरिक्ष यान अभियान एजेंसी की प्राथमिकता में नहीं है। करीब एक दशक पहले इसरो द्वारा बुलाई गई बैठक में इसे लेकर वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन की अत्यधिक सराहना की गई थी। वैज्ञानिकों का मत था कि इस कार्यक्रम पर काम करने का यह सही समय है। कई अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का यह भी कहना था कि ऐसा कार्यक्रम नई प्रतिभाओं को आकर्षित करेगा और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को अलग स्तर पर ले जाएगा। इसके अलावा प्राइड फैक्टर तो रहेगा ही।
कुमार भी मानते हैं कि इसका काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिलता, लेकिन पर्याप्त संसाधन का अभाव एक महत्वपूर्ण बाधा है। यह पूछे जाने पर कि इस प्रोजेक्ट की लागत करीब आठ से दस हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी, उन्होंने कहा यह रकम इससे काफी अधिक है। क्या इसकी लागत बीस हजार करोड़ रुपये तक हो सकती है तो कुमार ने बताया कि एक दशक पहले इस पर करीब इतनी रकम खर्च होने का अनुमान था। इस बारे में और पूछे जाने पर उन्होंने किसी तरह का आकलन करने से साफ इन्कार कर दिया।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष ने यह भी कहा कि फिलहाल मानव अंतरिक्ष यान के लिए दो महत्वपूर्ण काम क्रू मॉड्यूल और जलवायु नियंत्रित कक्ष को बनाने पर काम चल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस कार्यक्रम पर लागत इसलिए ज्यादा है, क्योंकि इसमें किसी का जीवन दांव पर लगा होता है। ऐसे में किसी तरह का जोखिम लेना ठीक नहीं रहेगा। यही वजह है कि पूरी सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी।
युवाओं को खगोल विज्ञान के प्रति जागरूक करने पर जोर प्रेट्र, कोलकाता: इसरो के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन का कहना है कि भारतीय छात्र आसमान तक पहुंच सकते हैं, लेकिन इसके लिए स्कूल के दिनों से ही उनमें खगोल विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ानी होगी।
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