एससी-एसटी में उपवर्गीकरण का फैसला रद्द करने की उठी मांग, पुनर्विचार याचिका पर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
सुप्रीम कोर्ट में एससी-एसटी के उपवर्गीकरण की अनुमति देने वाले फैसले के विरुद्ध दो दर्जन से अधिक पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई थीं। कोर्ट ने इस पर कहा कि फैसले में ऐसी कोई खामी नहीं है। गौरतलब है कि अदालत ने एससी-एसटी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्यों को एससी-एसटी वर्ग में उपवर्गीकरण करने की अनुमति दी थी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोटे में कोटा यानी आरक्षण के भीतर आरक्षण की इजाजत देने वाले फैसले पर एक बार फिर अपनी मुहर लगा दी है। कोर्ट ने एससी-एसटी के उपवर्गीकरण की अनुमति देने वाले फैसले के विरुद्ध दाखिल दो दर्जन से अधिक पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
कोर्ट ने कहा कि फैसले में ऐसी कोई खामी नहीं है, जिसके लिए फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत हो। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की संविधान पीठ ने एक अगस्त के फैसले के विरुद्ध दाखिल थुमति रवि समेत विभिन्न पुनर्विचार याचिकाएं खारिज करते हुए अपने 24 सितंबर के आदेश में यह बात कही।
शीर्ष अदालत ने खारिच की याचिकाएं
इसे शुक्रवार को अपलोड किया गया। शीर्ष अदालत ने उन याचिकाओं को भी खारिज कर दिया जिसमें पुनर्विचार याचिकाओं को खुली अदालत में सूचीबद्ध करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने एक अगस्त को 6-1 के बहुमत से दिए फैसले में कहा था कि एससी-एसटी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य एससी-एसटी वर्ग में उपवर्गीकरण कर सकते हैं।शीर्ष अदालत ने 20 वर्ष पुराने पांच न्यायाधीशों के ईवी चिनैया (2004) मामले में दी गई व्यवस्था को गलत ठहरा दिया था। ईवी चिनैया फैसले में पांच न्यायाधीशों ने कहा था कि एससी-एसटी एक समान समूह वर्ग हैं और इनका उपवर्गीकरण नहीं हो सकता। एक अगस्त के फैसले में कोर्ट ने आरक्षण के भीतर आरक्षण पर तो मुहर लगाई ही थी, साथ ही एससी-एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर भी बल दिया था।