स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह नहीं होता प्रभावी, SC ने सोन चिड़िया के संरक्षण मामले में की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान और गुजरात में लुप्तप्राय पक्षी सोन चिड़िया (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा के बुनियादी ढांचे के बीच संतुलन के उपाय सुझाने के लिए एक समिति का गठन करते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह प्रभावी नहीं होता।शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2021 के अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया
कोर्ट ने अपने इस आदेश को लिया वापस
जलवायु परिवर्तन समानता के अधिकार की संवैधानिक गारंटी को प्रभावित कर सकता है। जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से स्थिर और अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होता। स्वास्थ्य का अधिकार (जो अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है) वायु प्रदूषण, वेक्टर जनित बीमारियों (संक्रामक बीमारियों) में बदलाव, बढ़ते तापमान, सूखा, फसल खराब होने के कारण खाद्य आपूर्ति में कमी, तूफान एवं बाढ़ जैसे कारकों से प्रभावित होता है।- पीठ
राजस्थान और गुजरात में पाई जाती हैं सोन चिड़िया
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में पाई जाती हैं और उनकी संख्या में चिंताजनक कमी का कारण उनके निवास स्थान के पास सौर ऊर्जा संयंत्रों सहित ओवरहेड पारेषण लाइनों से उनका अक्सर टकराना है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कई नागरिकों के लिए विश्वसनीय बिजली आपूर्ति की कमी न केवल आर्थिक विकास में बाधा डालती है, बल्कि महिलाओं एवं कम आय वाले परिवारों सहित समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, जिससे असमानताएं और बढ़ती हैं।स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार में यह सिद्धांत समाहित है कि प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे वातावरण में रहने का अधिकार है जो स्वच्छ, सुरक्षित और उसके लिए अनुकूल हो। स्वस्थ पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को मान्यता देकर राज्य पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को प्राथमिकता देने के लिए बाध्य हैं जिससे जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों से निपटा जा सके और वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा की जा सके।- शीर्ष अदालत