सिलक्यारा टनल हादसे के बाद अलर्ट मोड पर सड़क परिवहन मंत्रालय, विशेषज्ञ पैनल की मंजूरी के बाद बनेगी 1.5 किमी से लंबी सुरंग
उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल हादसे से सबक लेते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय टनल निर्माण की परियोजनाओं को लेकर सतर्क हो गया है। विशेषज्ञ पैनल गठित कर राज्यों और एनएचएआइ तथा एनएचआइडीसीएल जैसी अपनी एजेंसियों से कहा गया है कि डेढ़ किलोमीटर से अधिक लंबाई वाली टनल निर्माण परियोजनाओं का प्रस्ताव पैनल को भेजना होगा।राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइंस का पालन भी सुनिश्चित कराए जाने की जरूरत है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल हादसे से सबक लेते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय टनल निर्माण की परियोजनाओं को लेकर सतर्क हो गया है। विशेषज्ञ पैनल गठित कर राज्यों और एनएचएआइ तथा एनएचआइडीसीएल जैसी अपनी एजेंसियों से कहा गया है कि डेढ़ किलोमीटर से अधिक लंबाई वाली टनल निर्माण परियोजनाओं का प्रस्ताव पैनल को भेजना होगा।
विशेषज्ञ द्वारा विभिन्न मानकों और तकनीकी पहलुओं का परीक्षण कर जो सलाह या दिशा-निर्देश दिए जाएंगे, उसी आधार पर टनल का निर्माण किया जा सकेगा। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को इस आशय की चिट्ठी जारी की गई। इसमें कहा गया है कि टनल निर्माण के दौरान होने वाले हादसे, खास कर सिलक्यारा हादसे को ध्यान में रखते हुए ऐसी परियोजनाओं के डिजाइन और निर्माण की गुणवत्ता जांच की प्रक्रिया की समीक्षा की तत्काल आवश्यकता है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइंस का पालन
डीपीआर बनाते समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइंस का पालन भी सुनिश्चित कराए जाने की जरूरत है। इसे देखते हुए सरकार ने व्यवस्था की है कि डीपीआर बनाते समय ही टनल परियोजनाओं के जियोलाजिकल, जियो-टेक्निकल, जियो-फिजीकल इन्वेस्टिगेशन, डिजाइन, सेफ्टी आडिट और निगरानी प्रक्रिया का परीक्षण कर लिया जाए। इसके लिए अकादमिक संस्थानों और सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर फ्रेमवर्क तैयार किया है।सरकार ने विशेषज्ञों का एडवाइजरी पैनल भी गठित किया है, जो डेढ़ किलोमीटर से अधिक लंबाई वाली टनल परियोजनाओं के निर्माण के लिए तकनीकी व अन्य सलाह देगा। राष्ट्रीय राजमार्गों पर प्रस्तावित ऐसी टनल परियोजनाओं का प्रस्ताव तकनीकी समीक्षा के लिए एडवाइजरी पैनल को भेजना अनिवार्य होगा। उल्लेखनीय है कि उत्तरकाशी में नवंबर, 2023 में सिलक्यारा टनल निर्माण के दौरान भूस्खलन की वजह से 41 मजदूर उसमें फंस गए थे, जिन्हें बचाने के लिए 17 दिन तक रेस्क्यू आपरेशन चलाना पड़ा। अपने आदेश में मंत्रालय ने उस हादसे का उल्लेख खास तौर पर किया है।