Move to Jagran APP

अब जी भर कर लीजिये इस ‘वेज मटन’ का स्वाद

शोध: मशरूम प्रजाति का ‘रुगड़ा’ चार महीने तक भी रहेगा सुरक्षित, शोध से निकला संरक्षण का रास्ता

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 30 Nov 2017 09:07 AM (IST)
अब जी भर कर लीजिये इस ‘वेज मटन’ का स्वाद

रांची (अनुज मिश्रा)। मटन और वह भी वेज! दरअसल रुगड़ा को झारखंड में इसी रूप में जाना जाता है। मशरूम प्रजाति का रुगड़ा झारखंड में बहुतायत में होता है। इसका स्वाद बिलकुल मटन जैसा ही होता है। अब तक झारखंड के लोग ही इसका स्वाद लिया करते थे, लेकिन अब इसे देश के अन्य हिस्सों में भी चखा जा सकेगा। जल्दी खराब हो जाने के कारण इसे बाहर नहीं भेजा जा सकता था। रांची स्थित बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (बीआइटी, मेसरा) के वैज्ञानिकों ने रुगड़ा को चार माह तक सुरक्षित रखने का रास्ता खोज निकाला है। वहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भी इस दुर्लभ मशरूम के व्यावसायिक उत्पादन के लिए प्रयास कर रहा है। इसका लाभ यहां के स्थानीय आदिवासियों और लघु किसानों को मिल सकेगा।

साल के वृक्ष के नीचे होता है पैदा

मशरूम प्रजाति का रुगड़ा दिखने में छोटे आकार के आलू की तरह होता है। आम मशरूम के विपरीत यह जमीन के भीतर पैदा होता है। वह भी हर जगह नहीं बल्कि साल के वृक्ष के नीचे। बारिश के मौसम में जंगलों में साल के वृक्ष के नीचे पड़ जाने वाली दरारों में पानी पड़ते ही इसका पनपना शुरू हो जाता है। परिपक्व हो जाने पर ग्रामीण इन्हें एकत्र कर लेते हैं और बेचते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अब इसकी खेती की तकनीक विकसित कर रहा है ताकि इसका व्यावसायिक तौर पर उत्पादन किया जा सके। रुगड़ा में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है, जबकि कैलोरी और वसा नाम मात्र का। बारिश के मौसम में इसकी जबर्दस्त डिमांड रहती है। लेकिन समस्या यह थी कि जमीन से निकलने के बाद अधिकतम तीन दिन में यह खराब हो जाता है। बीआइटी ने इसे चार माह तक सुरक्षित रखने का फार्मूला ईजाद कर लिया है। ऐसे में इसे देश के दूसरे हिस्सों और विदेश तक भी भेजा जा सकता है। बरसात के मौसम में पाया जाने वाला रुगड़ा 200 से 400 रुपये प्रति किलो बिकता है। 

पेटेंट की तैयारी में बीआइटी 

बीआइटी मेसरा के वैज्ञानिक डॉ. रमेश चंद्र के दिशा निर्देशन में तीन साल तक इस पर शोध किया। अंतत: सफलता हाथ लगी। अब यह चार माह तक भी सुरक्षित रहेगा। बीआइटी का बायोटेक्निकल विभाग इस तकनीक को पेटेंट कराने की तैयारी कर रहा है। विभाग ने इस तकनीक के बारे में विस्तार से जानकारी देने में फिलहाल असमर्थता जताई।

जागरण विशेष

- अब झारखंड के बाहर भी भेजा जा सकेगा 

- 4 साल के वृक्ष के नीचे होता है खुद पैदा,

- प्रोटीन का माना जाता है उम्दा स्नोत

कई नामों से जाना जाता है 

इसे अंडरग्राउंड मशरूम के नाम से भी जाना जाता है। रुगड़ा का वैज्ञानिक नाम लाइपन पर्डन है। इसे पफ वाल्व भी कहा जाता है। इसे पुटो और पुटकल के नाम से जाना जाता है। मशरूम की प्रजाति होने के बावजूद इसमें अंतर यह है कि यह जमीन के अंदर पाया जाता है। रुगड़ा की 12 प्रजातियां हैं। सफेद रंग का रुगड़ा सर्वाधिक पौष्टिक माना जाता है। रुगड़ा मुख्यतया झारखंड और आंशिक तौर पर उत्तराखंड, बंगाल और ओडिशा में होता है। रुगड़ा में सामान्य मशरूम से कहीं ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं।

यह भी पढ़ें: तेज भागती जिंदगी में मोबाइल बना दोस्त, बचपना खो रहा 'बचपन'