Sabarimala case: धार्मिक स्थलों पर महिलाओं से भेदभाव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तय किए 7 सवाल
धार्मिक स्थलों मेंं प्रवेश मेंं महिलाओं से भेदभाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विचार के लिए 7 कानूनी सवाल तय किए।
By Monika MinalEdited By: Updated: Mon, 10 Feb 2020 07:20 PM (IST)
नई दिल्ली, माला दीक्षित। सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट कानूनी प्रश्न विचार के लिए बड़ी पीठ को भेज सकता है। कोर्ट ने पक्षकारों की आपत्तियां खारिज कर दीं जिसमें सबरीमाला मामले में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से जुड़े व्यापक कानूनी प्रश्न नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेजने पर आपत्ति उठाई गई थी। कोर्ट ने नौ न्यायाधीशों के विचार के लिए सात कानूनी प्रश्न तय कर दिये हैं। जिनमे कोर्ट धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के दायरे और मायने परखेगा। 17 फरवरी से मामले पर रोजाना सुनवाई होगी।
कई मामलों पर पड़ेगा असर इस मामले की सुनवाई का असर सबरीमाला में हर आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश, मस्जिद और मजार में महिलाओं के प्रवेश पर रोक, दाउदी बोहरा मुसलमानों में महिलाओं का खतना और पारसी महिला के गैर पारसी से विवाह करने पर अग्रहारी में प्रवेश पर रोक का मुद्दा उठाने वाली लंबित याचिकाओं पर भी पड़ेगा हालांकि कोर्ट फिलहाल सीधे तौर पर इन याचिकाओं पर विचार नहीं करेगा बल्कि ये याचिकाएं सुनवाई के दौरान कोर्ट में उपलब्ध होंगी और कोर्ट कानून का विस्तृत मुद्दा उठाने वाले धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से जुड़े सात सवालों पर विचार करेगा। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि मामले पर 17 फरवरी से रोजाना सुनवाई होगी जिसमें दोनों पक्षों को बहस के लिए सात सात दिन दिये जाएंगे। सोमवार को बहस की शुरूआत केन्द्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता करेंगे। इसके अलावा कोर्ट ने धार्मिक मान्यताओं की तरफदारी करने वाले पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ वकील के. परासरन से कहा है कि वह तय करेंगे कि उनकी ओर से कौन किस मुद्दे पर बहस करेगा। जबकि धार्मिक मान्यताओं के आधार पर महिलाओं से भेदभाव का विरोध करने वाले पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह तय करेंगी कि उनकी ओर से कौन वकील बहस करेगा।
इस मामले में कोर्ट ने श्वेतांबर जैन कम्युनिटी को भी पक्षकार बनने की इजाजत दे दी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट मे एक मामला जैन धर्म में प्रचलित संथारा प्रथा का भी लंबित है। इसके अलावा वरिष्ठ वकील राजीव धवन, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन दरगाह के एक पीरजादे अल्तमश निजामी को भी पक्ष रखने की कोर्ट ने इजाजत दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने से रोकी गईं दो महिलाओं को भी कोर्ट ने बहस के दौरान पक्ष रखने की इजाजत दी है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट नें महिलाओं से भेदभाव के उपरोक्त लंबित मामलों के पक्षकार भी बहस करेंगे।
पांच न्यायाधीशों की पीठ ने तीन -दो के बहुमत से गत 14 नवंबर को सबरीमाला केस में पुनर्विचार याचिकाओं पर आदेश देते हुए विभिन्न धर्मो में महिलाओं के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव का मामला विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा था। मामले पर विचार के लिए नौ न्यायाधीशों की संविधानपीठ गठित हुई थी लेकिन पक्षकारों ने आपत्ति उठाई थी जिस पर कोर्ट ने यह व्यवस्था दी।
इन सात प्रश्नों पर कोर्ट करेगा विचार
- संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दायरा और मायने क्या हैं- अनुच्छेद 25 के तहत व्यक्ति को मिली धार्मिक स्वतंत्रता और अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संस्थान को मिले अधिकार के बीच क्या संबंध और संतुलन होगा- अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संस्थान को मिला अधिकार क्या संविधान के भाग तीन मे दिये गए अन्य मौलिक अधिकारों के प्रावधानों के आधीन है
- अनुच्छेद 25 और 26 के तहत दिये गए शब्द नैतिकता (मोरेलिटी) का क्या दायरा और मायने हैं और क्या इसमें संवैधानिक नैतिकता शामिल है- अनुच्छेद 25 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता में दी गई धार्मिक परंपरा को किस हद तक कोर्ट परख सकता है या दखल दे सकता है- अनुच्छेद 25(2)(बी) के तहत दिए गये शब्द सेक्शन आफ हिन्दू का क्या मतलब है- क्या किसी धार्मिक समूह या धार्मिक संस्था से संबंध न रखने वाला व्यक्ति जनहित याचिका के जरिए उस धार्मिक समूह या धार्मिक संस्था में प्रचलित परंपरा पर सवाल उठा सकता है।
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