Saddam Hussein: इराक के लिए देखा सुनहरा सपना,अपने खून से लिखवाई कुरान; लेकिन कुवैत के साथ युद्ध में हुआ बर्बाद
Dictator Saddam Hussein सद्दाम हुसैन ने 1979 से 2003 तक इराक का नेतृत्व किया। उसने खुद को इराक का सबसे प्रभावशाली नेता और देश को आधुनिकता की ओर ले जाने वाले साहसी लीडर के रूप में पेश किया। हालांकि उसके दमनकारी शासन ने हजारों लोगों की जान भी ली। अप्रैल 2003 में अमेरिका ने सद्दाम को सत्ता से उखाड़ फेंका और उसे मानवता के खिलाफ अपराधों की कीमत चुकानी पड़ी।
28 अप्रैल 1937 को जन्मे बगदाद के इस कसाई का नाम सद्दाम हुसैन था। इसके जन्म से 6 महीने पहले ही इसके पिता लापता हो गए थे जो कभी वापस नहीं आए। उसके बाद इसके 13 वर्षीय बड़े भाई की भी कैंसर से मृत्यु हो गई। इन घटनाओं के दुख से निराश सद्दाम की मां डिप्रेशन में चली गई और कुछ सालों बाद उसने दूसरी शादी कर ली। सद्दाम के दूसरे पिता इब्राहिम अल हसन इसे काफी प्रताड़ित किया, जिसका असर इसकी परवरिश पर पड़ा। इस सबसे परेशान होकर सद्दाम हुसैन अपने मामा के साथ रहने लगा। अपनी वकालत की पढ़ाई अधूरी छोड़कर यह 1957 में 'Pan-Arab Ba'ath Party', जो कि एक प्रो-इराकी नेशनलिस्ट पार्टी थी, में शामिल हो गया।तानाशाह सद्दाम हुसैन ने अपने देश के प्रति अमेरिका तक को ललकारा था जिससे उनकी देशभक्ति, अपने देश के प्रति प्यार और समर्पण दिखता है। सद्दाम ने कहा था, "हम इराक को न छोड़ने के लिए अपनी आत्मा, अपने बच्चों और अपने परिवारों का बलिदान देने के लिए तैयार हैं। हम ऐसा इसलिए कहते हैं ताकि कोई यह न सोचे कि अमेरिका अपने हथियारों से इराकियों के संकल्प को तोड़ने में सक्षम है।"
ऐसे की इराक की राजनीति में एंट्री
सद्दाम हुसैन ने कैसे खोई सत्ता?
संयुक्त राष्ट्र की पाबंदियों की वजह से इराकी जनता की हालत खराब हो चुकी थी। इन पाबंदियों के दबाव में आकर 9 दिसम्बर 1996 को इराकी सरकार ने 'ऑयल फॉर फूड प्रोग्राम' के आग्रह को स्वीकार कर लिया। इस बीच नासूर बना सद्दाम अमेरिका को फूटी आंख नहीं सुहा रहा था। 2001 में हुए हमले ने अमेरिका को और भी सचेत कर दिया था। नवंबर 2002 में, संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 1441 पारित किया, जिसमें गैर-पारंपरिक हथियारों के निरस्त्रीकरण के संबंध में इराक पर सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया और चेतावनी दी गई कि इराक को "अपने दायित्वों के निरंतर उल्लंघन के परिणामस्वरूप गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।" जब सद्दाम ने इन चेतावनियों की अवहेलना जारी रखी, तब एक बार फिर संयुक्त राज्य अमेरिका ने कई सहयोगियों के साथ मिलकर इराक पर एक हमला किया जिसने इराक के बाथ पार्टी के शासन को उखाड़ फेंका। अमेरिका खुद अपने ही बनाए कातिल के हमले से एक बार घायल हो चुका था और दूसरा हमला बर्दाश्त नहीं कर सकता था। अमेरिका के इसी डर ने 2003 में सद्दाम के लिए शामत ला दी। अब तक जो देश उसके हर किए को नजरंदाज कर रहा था, अमेरिका ने उसके घर में घुसकर उसे बता रहा था कि उसे क्या करना है और क्या नहीं। कुछ ही हफ्तों बाद अमेरिका ने ऑपरेशन रेड डॉन के जरिए सद्दाम को तिरकित के उसके फार्म हाउस से दबोचा लिया। 2 साल के बाद इंसानियत के खिलाफ तबाही और जुर्म के लिए सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा सुनाई गई। सद्दाम की आखिरी ख्वाहिश थी कि उसे गोली मार दी जाए।क्रूर शासक को ऐसे मिली मौत
अक्टूबर 2005 में, सद्दाम पर अल-दुजय शहर के लोगों की हत्या के आरोप में इराकी उच्च न्यायाधिकरण द्वारा मुकदमा चलाया गया था। 1982 अल-दुजय हत्याओं के हिस्से के रूप में, उनके द्वारा इराक के 148 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर शिया थे। नौ महीने की नाटकीय सुनवाई के बाद, उन्हें हत्या और यातना सहित मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी पाया गया और मौत की सजा सुनाई गई। 30 दिसम्बर 2006 को सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटका दिया गया; बाद में उसके शव को एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया।इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन के तानाशाही के किस्से-
- सद्दाम हुसैन ने सत्ता में बने रहने के लिए भय और आतंक का इस्तेमाल करते हुए क्रूर तरीके से इराक पर शासन किया।
- सद्दाम ने वर्ष 1980 में नई इस्लामिक क्रांति के प्रभावों को कमज़ोर करने के लिए पश्चिमी ईरान की सीमाओं में अपनी सेनाएं उतार दीं। इसके बाद आठ वर्षों तक चले युद्ध में लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
- वर्ष 2003 में अमरिका और ब्रिटेन ने इराक पर सामूहिक विनाशकारी हथियार रखने का आरोप लगाया लेकिन इराक ने इसका खंडन किया। जब संयुक्त राष्ट्र में इस मसले पर आम राय नहीं बन पाई तो अमेरिका और ब्रिटेन के नेतृत्व वाली सेनाओं ने इराक पर हमला किया और अप्रैल 2003 में सद्दाम हुसैन को सत्ता से बाहर कर दिया।
- सद्दाम 1980 में ईरान से शट्ट-अल-अरब जलमार्ग लेना चाहता था। उसने सशस्त्र और पश्चिम द्वारा समर्थित तेहरान पर युद्ध की घोषणा की। 'अरब दुनिया के रक्षक' ने नागरिकों के खिलाफ मस्टर्ड गैस और तंत्रिका एजेंटों जैसे रासायनिक हथियारों का खुलकर इस्तेमाल किया। आठ साल तक चली इस लड़ाई में लाखों लोगों की मौत हुई।
- 1990 में, सद्दाम ने इराकी सैनिकों को कुवैत पर कब्जा करने का आदेश दिया। जवाब में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुवैत का बचाव किया।
- अपने 60वें जन्मदिन पर, सद्दाम ने इस्लामी पवित्र पुस्तक कुरान की एक प्रति अपने खून से लिखवाई। इसके पीछे का कारण बताया जाता है कि उस पर नजर रखने और कई 'साजिशों और खतरों' से उसे सुरक्षित रखने के लिए भगवान को उसने धन्यवाद दिया। इस कुरान के विशेष संस्करण को तैयार करने में लेखकों की एक टीम को तीन साल लगे, जिसमें 6,000 से अधिक छंद और 336,000 शब्द शामिल थे। हालांकि, यह कोई नहीं जानता कि सद्दाम ने वास्तव में कुरान लिखवाने के लिए अपना कितना खून दिया।