Same Sex Marriage: जस्टिस चंद्रचूड़ का बड़ा बयान, कहा विषमलिंगीय किन्नरों को शादी का अधिकार
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि विषमलिंगीय किन्नरों को मौजूदा कानून में शादी करने का अधिकार है। यहां तक कि पर्सनल ला में भी है जो शादी को रेगुलेट करते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में आदेश दिया है कि राज्यों को क्वीर (एलजीबीटीक्यू) को अपने अधिकारों का उपयोग करने में सक्षम बनाना चाहिए। उन्हें उनके परिवारों पुलिस या अन्य एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Wed, 18 Oct 2023 06:47 AM (IST)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि विषमलिंगीय किन्नरों को मौजूदा कानून में शादी करने का अधिकार है। यहां तक कि पर्सनल ला में भी है जो शादी को रेगुलेट करते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में आदेश दिया है कि राज्यों को क्वीर (एलजीबीटीक्यू) को अपने अधिकारों का उपयोग करने में सक्षम बनाना चाहिए। उन्हें उनके परिवारों, पुलिस या अन्य एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति गठित किए जाने के आश्वासन को आदेश में दर्ज करते हुए कहा है कि समिति में विशेषज्ञ और सभी हितधारक भी शामिल होंगे। यह समिति समलैंगिक साथी को राशन कार्ड, संयुक्त खाता और साथी को नामिनी के तौर पर शामिल करने के लिहाज से परिवार का सदस्य माने जाने पर विचार करेगी।यहां तक कि जेल में मिलने का अधिकार और मरने पर बाडी प्राप्त करने और अंतिम संस्कार के अधिकार पर भी विचार करेगी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने और भी बहुत सी बातें कहीं। जस्टिस कौल ने समलैंगिकों को कुछ और अधिकार देने के जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले से सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि समलिंगीय और विषमलिंगियों को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए।
जस्टिस भट ने कुछ पहलुओं पर जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले से असहमति जताई। हालांकि वे इससे सहमत थे कि शादी मौलिक अधिकार नहीं है। जस्टिस कोहली और जस्टिस नरसिम्हा ने भी जस्टिस भट के फैसले से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम भेदभावपूर्ण नहीं है। विवाह के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। यह एक ऐसा मामला है जिसे विधायिका पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
जस्टिस भट ने विवाह संस्था को रेगुलेट करने वाले विभिन्न कानूनों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सिर्फ कानून के जरिये ही शादी को मान्यता या कानूनी दर्जा हो सकता है। अदालत ऐसा आदेश नहीं दे सकती। शक्ति वाहिनी व शफीन जहां के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे मामले राज्य में दंपतियों को हिंसा से बचाने के लिए उठाया गया कदम था।हालांकि उन्होंने समलैंगिकों को हिंसा से बचाने की राज्य की जिम्मेदारी पर जोर दिया है। जस्टिस भट ने भी उच्च स्तरीय समिति की बात आदेश में दर्ज की है और कहा है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की राय भी ली जानी चाहिए। जस्टिस भट ने कई निर्देश जारी किए। जस्टिस नरसिम्हा ने जस्टिस भट से सहमति जताने वाला अलग फैसला दिया है। उन्होंने भी कहा कि विवाह का कोई मौलिक या बिना शर्त वाला अधिकार नहीं है। उन्होंने भी कुछ मुद्दों पर चीफ जस्टिस से असहमति जताई है।